रविवार, 10 अप्रैल 2011

वरुण और वायु मुद्रा

हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है। शरीर में जल और वायु तत्व का संतुलन बिगड़ने से वात और कफ संबंधी रोग होते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए ही योग में कई मुद्राओं के महत्व को बताया गया है। यहाँ प्रस्तुत है वरुण और वायु मुद्रा का संक्षिप्त परिचय।

(1) वरुण मुद्रा
यह मुद्रा जल की कमी से होने वाले सभी तरह के रोगों से बचाती है। इस मुद्रा का आप कभी भी और कहीं भी अभ्यास कर सकते हैं।

विधि : छोटी या चीठी अँगुली के सिरे को अँगूठे के सिरे से स्पर्श करते हुए दबाएँ। बाकी की तीन अँगुलियों को सीधा करके रखें। इसे वरुण मुद्रा कहते हैं।


लाभ : यह शरीर के जल तत्व के संतुलन को बनाए रखती है। आँत्रशोथ तथा स्नायु के दर्द और संकोचन को रोकती है। तीस दिनों के लिए पाँच से तीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करने से यह मुद्रा अत्यधिक पसीना आने और त्वचा रोग के इलाज में सहायक सिद्ध हो सकती है। यह खून शुद्ध कर उसके सुचारु संचालन में लाभदायक है। शरीर को लचीला बनाने हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।

(4) वायु मुद्रा 
यह वायु के असंतुलन से होने वाले सभी रोगों से बचाती है। दो माह तक लगातार इसका अभ्यास करने से वायु विकार दूर हो जाता है। सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है।

विधि : इंडेक्स अर्थात तर्जनी को हथेली की ओर मोड़ते हुए उसके प्रथम पोरे को अँगूठे से दबाएँ। बाकी बची तीनों अँगुलियों को ऊपर तान दें। इसे वायु मुद्रा कहते हैं।

लाभ: प्रतिदिन 5 से 15 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास 15 दिनों तक करने से जोड़ों, पक्षाघात, एसिडिटी, दर्द, दस्त, कब्ज, अम्लता, अल्सर और उदर विकार आदि में राहत मिल सकती हैं(अनिरूद्ध जोशी,वेबदुनिया)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों मुद्राओं का अभ्यास अभी से शुरू करता हूँ. और इस प्रकार जल की कमी और वायु की अधिकता पर नियंत्रण करता हूँ.

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  2. मेरा आप सभी ब्लॉग साथियों से निवेदन हे की योग जरुर करें और उन लोगों से तो खास तोर पर जिनका अधिक समय नेट पर गुजरता हे मेने अपने ब्लॉग पर ध्यान के बारे में जानकारी डाली हे मुझे खुसी होगी अगर मेरी जानकारी आपके कुछ काम आएतो http://bharatyogi.blogspot.com/p/blog-page_10.html

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