बोटयूलिनम टॉक्सिन (बोटोक्स, न्यूरोनोक्स, डिसपोर्ट) जो कुछ सालों पहले केवल फैशन और ब्यूटी ट्रिटमेन्ट के लिए जाना जाता था। असल में यह एक दवा है, जो बहुत बड़े स्तर पर करीब एक दशक से महानगरों में शिशु रोग, अस्थि रोग विशेषज्ञ एवं अस्थि रोग चिकित्सकों द्वारा मांसपेशियों से जुडी बीमारी जैसे सेरीब्रल पाल्सी में इलाज के लिए दिया जाता है। इससे मस्तिष्क की नसों में शिथिलता लाई जाती है। सेरीब्रल पाल्सी में दिमाग का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिसके लिए गर्भावस्था में कोई समस्या, प्रीमैच्योरिटी, जन्म के समय दिमाग में ऑक्सीजन की कमी एवं सिर पर चोट लगना इत्यादि जिम्मेदार है।
ऐसे बच्चों का विकास धीमा होता है और वे बैठना, चलना और अन्य काम काफी देर से शुरू करते है या नहीं कर पाते हैं। बच्चों के शरीर में कड़कपन आ जाता है, जिसमें जोड़ों में अकड़न पैदा हो जाती है। हाथों तथा पैरों को ताकत कम प्रतीत होती है तथा बच्चे कुछ पकड़ने, चलने तथा बैठने में असमर्थ होते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि बच्चे को अतिरिक्त करीब ३० प्रतिशत ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है, जिससे निराश होकर वे निढाल हो जाते हैं।
स्पासटिसिटी का कारण एक द्रव्य है, जो एसीटलकोलीन के नाम से जाना जाता है, यह द्रव्य दिमाग के क्षतिग्रस्त होने के कारण मांसपेशियों में इकट्ठा हो जाता है तथा कड़कपन लाता है। उम्र के विकास से यह बढ़ता जाता है तथा शरीर में विकृति पैदा कर देता है, जैसे पंजे बाहर की और मुड़ने लगते हैं, बच्चा एड़ी के बजाय पैरों पर चलने लगता है, घुटने झुक जाते हैं, घुटने की कटोरी ऊपर चढ़ जाती है, कमर झुकने लगती है, रीढ़ की हड्डी तिरछी होने लगती है तथा बच्चा पैरों को कैंची की तरह रखता है, जिससे कूल्हे की हड्डी खिसकने लगती है। हाथों में विकृति होने के करण बच्चा कुछ भी पकड़ने में असमर्थ हो जाता है। इन विकृतियों के कारण बच्चे का चलना, बैठना कम होता जाता है।
*बोटोक्स का इंजेक्शन अस्तित्व में आने से पहले चिकित्सक उन्हें बार-बार सर्जरी की सलाह देते थे, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी, शल्यक्रिया का निशान रह जाना, अस्पताल में रहना, दवाइयों इत्यादि पर अधिक रुपए खर्च होते थे।
*बोटोक्स के इंजेक्शन से बच्चों के इलाज में क्रांति आ गई है। अब शिशु अस्थिरोग विशेषज्ञ तथा अन्य अस्थिरोग विशेषज्ञ ऐसे बच्चों का इंजेक्शन द्वारा इलाज करने में सक्षम हैं। बोटोक्स के इंजेक्शन के बाद अब सिरेब्रल पॉल्सी से मरीज हमेशा के लिए बिस्तर पर रहने के लिए विवश नहीं होगा।
*बोटोक्स का इंजेक्शन मांसपेशियों में एसिटलकोलीन को इकट्ठा होने से रोकती है तथा सर्जरी के बिना ही उन्हे शिथिल कर देती है। हड्डी रोग विशेषज्ञ तब इन बच्चों को विकृति से बचा देते हैं, जिससे बच्चा बैठना, चलना तथा हाथों से पकड़ना चालू कर देता है।
*बोटोक्स के इंजेक्शन का असर करीब ६ महीने रहता है तथा हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह एवं फिजियोथेरेपि की मदद से इसका असर लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।
*इंजेक्शन की मात्रा प्रत्येक बच्चे के वजन से तय की जाती है तथा प्लॉस्टर या स्प्लिंट साथ में लगना है या नहीं यह जाँच के समय बता दिया जाता है। इसका असर आने में १-२ दिन लगते हैं तथा संपूर्ण असर १-२ हफ्ते में आता है।
*अब बोटोक्स का इंजेक्शन पूरे देश में उपलब्ध है।
*बोटुलिनम टॉक्सीन को सॉसेज टॉक्सीन भी कहा जाता है।
*१८९७ में एमिली वॉन इर्मेंन्जेम ने सबसे पहले इसे पहचाना था और बताया था कि यह एक बैक्टेरिया द्वारा उत्पन्न किया जाता है। इसके दशकों बाद १९२८ में इसे वैज्ञानिक तरीकों से फिल्टर किया गया था।
*वैज्ञानिक बर्जन्स और उनके दल ने १९४९ में यह खोज निकाला था कि शुद्ध किया हुआ बोटुलिनम टॉक्सीन न्यूरोमस्क्यूलर ट्रांसमिशन को रोक देता है।
*1960 में सैन् फ्रांसिस्को के एक चिकित्सक डॉ. एलन स्कॉट ने इलाज़ के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले शुद्ध बोटुलिनम के लिए दिशा निर्देश तय किए।
वर्षों तक,बंदरों पर प्रयोग करने के बाद,1980 में इंसानों पर भैंगी आंखों के इलाज़ के लिए पहली बार बीटीएक्स का प्रयोग किया गया।
*1993 में,डॉ. पसरीचा और अन्य चिकित्सकों ने प्रतिपादित किया कि बोटुलिनम टॉक्सीन का प्रयोग इसोफीगल स्पिंक्टर के झटकों के इलाज़ के लिए किया जा सकता है(डॉ. विवेक श्रीवास्तव,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2011)।
*बोटुलिनम टॉक्सीन को सॉसेज टॉक्सीन भी कहा जाता है।
*१८९७ में एमिली वॉन इर्मेंन्जेम ने सबसे पहले इसे पहचाना था और बताया था कि यह एक बैक्टेरिया द्वारा उत्पन्न किया जाता है। इसके दशकों बाद १९२८ में इसे वैज्ञानिक तरीकों से फिल्टर किया गया था।
*वैज्ञानिक बर्जन्स और उनके दल ने १९४९ में यह खोज निकाला था कि शुद्ध किया हुआ बोटुलिनम टॉक्सीन न्यूरोमस्क्यूलर ट्रांसमिशन को रोक देता है।
*1960 में सैन् फ्रांसिस्को के एक चिकित्सक डॉ. एलन स्कॉट ने इलाज़ के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले शुद्ध बोटुलिनम के लिए दिशा निर्देश तय किए।
वर्षों तक,बंदरों पर प्रयोग करने के बाद,1980 में इंसानों पर भैंगी आंखों के इलाज़ के लिए पहली बार बीटीएक्स का प्रयोग किया गया।
*1993 में,डॉ. पसरीचा और अन्य चिकित्सकों ने प्रतिपादित किया कि बोटुलिनम टॉक्सीन का प्रयोग इसोफीगल स्पिंक्टर के झटकों के इलाज़ के लिए किया जा सकता है(डॉ. विवेक श्रीवास्तव,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2011)।
हमेशा की तरह जानकारी से भरी उपयोगी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर अच्छी जानकारी मिलती है..
जवाब देंहटाएंआभार।
जवाब देंहटाएं---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?