आलथी-पालथी मारकर और उक़ड़ू बैठकर भले ही आप भारतीय संस्कृति के अनुरूप बैठ रहे हों, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इससे आपके घुटने खराब हो रहे हैं। भारतीय पद्घति का शौचालय हो या फिर खाना खाने का ढंग, यह लंबे समय में घुटने को खराब कर रहा है। अमेरिका व ब्रिटेन की अपेक्षा भारतीय लोगों के घुटने जल्दी और अधिक संख्या में खराब हो रहे हैं। जरूरी नहीं कि आपके घुटने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह बु़ढ़ापे में खराब हों, युवा पी़ढ़ी भी इस समस्या की चपेट में आ रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में घुटना प्रत्यारोपण कराने वालों में ब़ड़ी संख्या युवाओं की है।
एम्स के सहयोगी प्रोफेसर (आर्थोपेडिक्स) और हिप व नी रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ चंद्रशेखर यादव के अनुसार भारत के लोगों में आर्थराइटिस और गठिया की बीमारी तेजी से ब़ढ़ रही है। यहां पालथी मारकर और उक़ड़ू बैठने की लोगों में आदत है। पूजा करने, खाना खाने, स्नान करने, शौचालय आदि सब में लोग या तो पालथी मारकर बैठते हैं या फिर उक़ड़ू। इससे जो़ड़ों, खासकर घुटने पर लगातार जोर प़ड़ता रहता है। इससे घुटने की हड्डियां घिसती है। इसके उलट अमेरिका, ब्रिटेन आदि में लोग घर या दफ्तर से जु़ड़े अपने तमाम कामकाज या तो कुर्सी-टेबल पर बैठकर करते हैं या फिर ख़ड़े होकर। वे लोग बैठने-उठने के पोश्चर का विशेष ध्यान रखते हैं। उनके घुटने व कुल्हे की हड्डियां कम घिसती है।
डॉ. यादव के अनुसार भारतीय समाज में तेजी से बदलती जीवनशैली और खानपान आग में घी का काम कर रहा है। लोगों में मोटापा ब़ढ़ रहा है, शारीरिक काम में निष्क्रियता आ रही है और व्यायाम के प्रति लोग उदासीन है, जिस कारण शरीर का सारा वजन कुल्हे, घुटने व हड्डियों के जो़ड़ पर प़ड़ रहा है। जीवनशैली व खानपान को बदलकर लोग अपनी हड्डियों को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं।
डॉ. चंद्रशेखर यादव के अनुसार एम्स में मैं प्रति वर्ष मैं २०० लोगों के घुटने और करीब १५० लोगों का नितंब बदलता हूं। इसमें उम्र दराज लोग तो होते ही हैं, ब़ड़ी संख्या में युवा पी़ढ़ी भी शामिल है। यदि डॉक्टर ने सही तरीके से घुटने बदले हैं तो वह २० से ३० साल तक चलता है। एम्स में बदले गए घुटने के ८० फीसदी मामलों में सफलता दर २० वर्ष से अधिक है(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,29.3.11)।
डॉ. चंद्रशेखर यादव के अनुसार एम्स में मैं प्रति वर्ष मैं २०० लोगों के घुटने और करीब १५० लोगों का नितंब बदलता हूं। इसमें उम्र दराज लोग तो होते ही हैं, ब़ड़ी संख्या में युवा पी़ढ़ी भी शामिल है। यदि डॉक्टर ने सही तरीके से घुटने बदले हैं तो वह २० से ३० साल तक चलता है। एम्स में बदले गए घुटने के ८० फीसदी मामलों में सफलता दर २० वर्ष से अधिक है(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,29.3.11)।
अरे ऐसा तो नहीं है. गांवों में लोग यूं ही रहते हैं, उनके तो घुटने और कूल्हे ताउम्र खराब नहीं होते..
जवाब देंहटाएंउकडू व आलथी-पालथी मारकर बैठें बगैर तो योग-क्रिया भी अधूरी होगी । विशेष परिस्थितियों में तो सही था किन्तु सामान्य स्थितियों में भी इस तरह घुटने खराब हो सकते हैं ये जानकारी यहीं से मिल रही है ।
जवाब देंहटाएंBilkul nayi si baat hai....
जवाब देंहटाएंसुनते थे कि यह तो स्वास्थयवर्धक है...नया लगा यह ज्ञान...
जवाब देंहटाएंहमें भी यह नई बात लगी...जीवन शैली सही न होने पर इस रोग का होना तो सुना है..जोड़ों के दर्द में या जोड़ बदलने के बाद आलथी पालथी में बैठना मना किया जाता है...
जवाब देंहटाएंAabhaar.
जवाब देंहटाएं---------------
जीवन की हरियाली के पक्ष में।
इस्लाम धर्म में चमत्कार।
यह बात गलत है कि उकुडू बैठने से घुटने खराब होते हैं
जवाब देंहटाएंक्या बकवास लेख है। उकड़ू बैठना कोई आज की खोज नहीं है। सदियों से आजमाई हुई, विकसित हुई पद्धति है। भारतीय या हिंदु सभ्यता के अनुसार ही लोग करोड़ो वर्षों से जीते आये हैं। इसे आज पूरे विश्व ने योग के रूप में मान्यता भी मिल चुकी है। ऐसा लगता है यह लेख हिन्दू संस्कृति सभ्यता को बेकार, व्यर्थ, मूर्खतापूर्ण दर्शाने के पश्चिम के एजेंडे के तहत लिखा गया है।
जवाब देंहटाएंये ऐलोपैथिक डाक्टर पहले अपना इलाज कर ले फिर हमें हमारी जीवनशैली बताऐ।
जवाब देंहटाएंहजारो साल से उकडू बैठकर जीवनशैली विकसित हुई है।
उकडू बैठकर भोजन करना सबसे उत्तम तरीका है। जिसमें
व्यक्ति भूख से ज्यादा भोजन नही कर सकता।
उकडू बैठकर भोजन करने वालो का कभी मोटापा नही आता और पेट हमेशा अंदर रहता है।