हॉस्पिटल इनफेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया पिछले दो दशकों से सभी तरह के अस्पतालों से इनफेक्शन दूर करने के साथ-साथ उनमें सफाई के प्रति जागरूकता फैलाने में जुटी है। संस्था चाहती है कि वायरस, फंगस और बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबायोलॉजिस्ट एजेंट के प्रति जो रेजिस्टेंस बढ़ा है, वह कम हो। संस्था की भूमिका पर इसके सचिव डॉ. रमन सरदाना से नरेश तनेजा की बातचीत
आपकी संस्था का मुख्य उद्देश्य क्या है?
हमारा मुख्य उद्देश्य आम आदमी में जागरूकता लाना है। साथ ही हमारी कोशिश है कि हेल्थकेयर क्षेत्र में लगे हुए लोगों को सिखाया जाए कि कैसे अपनी, अपने साथियों और रोगियों की सेफ्टी की जाए। हम बताते हैं कि अपने रोजमर्रा के काम करते हुए इनफेक्शन की रोकथाम कैसे संभव है। कैसे उनका इनफेक्शन रोगी तक न पहुंचे और रोगी का उन तक। हमने अपने सदस्यों के लिए गाइडलाइंस जारी की हुई हैं।
इनमें बताया गया है कि कैसे आईसीयू में दाखिल और कृत्रिम सांस पर चल रहे मरीजों में इनफेक्शन कम किया जाए। अस्पतालों में सफाई और स्टर्लाइजेशन पर भी गाइडलाइंस हैं। अपनी वेबसाइट और पत्र-पत्रिकाओं द्वारा भी हम जागरूकता अभियान चलाते रहते हैं।
इनफेक्शन से हमारे देश में हर साल कितने लोग मारे जाते हैं?
हमारे देश का ऐसा कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है पर दुनिया भर में इनफेक्शन सबसे अधिक जानलेवा है। इससे बचाव पर बहुत बड़ी रकम खर्च होती है और लोगों को अस्पताल में अधिक समय तक रुकना पड़ता है। अगर इसकी रोकथाम की जाए तो न सिर्फ लोगों की जान बचाई जा सकती है बल्कि इलाज पर होने वाले बड़े खर्च को भी रोका जा सकता है।
विदेशों में इस मामले में क्या स्थिति है?
कुछ देशों ने इनफेक्शन से बचाव के उपाय सख्ती से लागू किए हैं जैसे नीदरलैंड्स और स्वीडन। अमेरिका में भी इंतजाम अच्छे हैं पर वहां जीरो इनफेक्शन वाली स्थिति नहीं कही जा सकती। दूसरे पश्चिमी देशों ने भी अपने-अपने प्रोटोकॉल लागू किए हैं। पर यह कहा जाए कि वहां हालात बहुत अच्छे हैं और भारत में ज्यादा खराब, तो ऐसी बात भी नहीं है। हमारे यहां भी कई हेल्थ केयर इंस्टीट्यूशन सामने आए हैं जहां इनफेक्शन की रोकथाम का काफी काम चल रहा है।
फिर भी विदेशों में बेहतर इंतजाम हैं...
हां, वह इसलिए कि उन्होंने यह कार्यक्रम कई साल पहले शुरू कर दिया था। हमारे यहां पिछले कुछ सालों से ही शुरू हुआ है जो अब जोर पकड़ रहा है। अब सरकार भी इस तरफ रुचि ले रही है।
अस्पतालों में इनफेक्शन के कारण क्या हैं?
एक तो अस्पतालों में आईसीयू के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। गुर्दे, लिवर ट्रांसप्लांट और कैंसर जैसे रोगियों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे मरीजों को इनफेक्शन जल्दी पकड़ता है। ऐसे मरीज पहले ज्यादा नहीं हुआ करते थे। ऐसे रोगियों की संख्या पिछले लगभग 15 सालों में काफी बढ़ी है। ऐसे मरीजों की कुछ दवाइयां भी इनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती हैं। फिर ज्यादा ऑपरेशन होने से भी इनफेक्शन होने के चांस बढ़ते हैं।
मरीजों से मिलने वाले भी बड़ी संख्या में आते हैं जो अपने साथ बाहरी इनफेक्शन लेकर आते हैं। यह इनफेक्शन का एक बड़ा कारण है।
इनफेक्शन रोकने के उपाय क्या हैं?
सबसे सस्ता और कारगर उपाय वही है जो हमारे बुजुर्ग हमें बताते आए हैं। वह है हाथ धोना। पेशेंट को छूने से पहले और छूने के बाद हाथ धोने चाहिए। मरीज पर जो भी काम कर रहे हैं पूरी तरह एसेप्सिस तरीके से करना चाहिए। स्टर्लाइज ग्लब्स पहनने हैं, नाक और मुंह को ढंककर रखना है। किसी तरह का मास्क इस्तेमाल करना है।
आपकी संस्था से सिर्फ प्राइवेट हॉस्पिटल ही जुड़े हुए हैं या सरकारी भी?
हमारी संस्था से प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह के हॉस्पिटल जुड़े हुए हैं। दरअसल हमारी संस्था के गठन में सरकारी और कॉरपोरेट दोनों सेक्टरों के लोगों का योगदान है। इसमें माइक्रो बायोलॉजिस्ट से लेकर हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर तक और सीएसडी मैनेजर्स से लेकर नसेर्ज तक, सभी स्ट्रीम के लोगों को हमने जोड़ने की कोशिश की है। दिल्ली और मुंबई में कई बड़े सरकारी अस्पताल हमारी संस्था से जुड़े हुए हैं और संस्था के कार्यों में भाग लेते हैं। किस तरह से इनफेक्शन पर काबू पाया जाए इस पर भी ये अस्पताल अपने सुझाव देते हैं।
जो अस्पताल या मेम्बर्स गाइडलाइंस का पालन नहीं करते, क्या उन पर आपकी संस्था कार्रवाई भी करती है?
जी नहीं, हमारा काम दंड देना नहीं है और न ही दंड देने से हमारा मकसद पूरा होता है। हमारा मकसद है कि हॉस्पिटलों और हेल्थकेयर से जुड़े हुए तबके में इनफेक्शन कम करना। हमारा प्लैटफॉर्म जागरूकता पैदा करने और ट्रेनिंग देने के लिए है। हमारी कोशिश है कि सदस्य अस्पतालों से जो भी आंकड़े इकट्ठे किए जाएं उनमें नैशनल लेवल के मापदंड बनाए जाएं। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा संस्थाओं को जोड़ा जाए ताकि भारत के कोने-कोने तक जागृति लाई जा सके। सिर्फ शहरी ही नहीं गांव के स्तर के जो क्लीनिक या नर्सिंग होम हैं वहां तक भी पहुंचा जा सके(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,5.3.11)।
एक तो अस्पतालों में आईसीयू के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। गुर्दे, लिवर ट्रांसप्लांट और कैंसर जैसे रोगियों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे मरीजों को इनफेक्शन जल्दी पकड़ता है। ऐसे मरीज पहले ज्यादा नहीं हुआ करते थे। ऐसे रोगियों की संख्या पिछले लगभग 15 सालों में काफी बढ़ी है। ऐसे मरीजों की कुछ दवाइयां भी इनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती हैं। फिर ज्यादा ऑपरेशन होने से भी इनफेक्शन होने के चांस बढ़ते हैं।
मरीजों से मिलने वाले भी बड़ी संख्या में आते हैं जो अपने साथ बाहरी इनफेक्शन लेकर आते हैं। यह इनफेक्शन का एक बड़ा कारण है।
इनफेक्शन रोकने के उपाय क्या हैं?
सबसे सस्ता और कारगर उपाय वही है जो हमारे बुजुर्ग हमें बताते आए हैं। वह है हाथ धोना। पेशेंट को छूने से पहले और छूने के बाद हाथ धोने चाहिए। मरीज पर जो भी काम कर रहे हैं पूरी तरह एसेप्सिस तरीके से करना चाहिए। स्टर्लाइज ग्लब्स पहनने हैं, नाक और मुंह को ढंककर रखना है। किसी तरह का मास्क इस्तेमाल करना है।
आपकी संस्था से सिर्फ प्राइवेट हॉस्पिटल ही जुड़े हुए हैं या सरकारी भी?
हमारी संस्था से प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह के हॉस्पिटल जुड़े हुए हैं। दरअसल हमारी संस्था के गठन में सरकारी और कॉरपोरेट दोनों सेक्टरों के लोगों का योगदान है। इसमें माइक्रो बायोलॉजिस्ट से लेकर हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर तक और सीएसडी मैनेजर्स से लेकर नसेर्ज तक, सभी स्ट्रीम के लोगों को हमने जोड़ने की कोशिश की है। दिल्ली और मुंबई में कई बड़े सरकारी अस्पताल हमारी संस्था से जुड़े हुए हैं और संस्था के कार्यों में भाग लेते हैं। किस तरह से इनफेक्शन पर काबू पाया जाए इस पर भी ये अस्पताल अपने सुझाव देते हैं।
जो अस्पताल या मेम्बर्स गाइडलाइंस का पालन नहीं करते, क्या उन पर आपकी संस्था कार्रवाई भी करती है?
जी नहीं, हमारा काम दंड देना नहीं है और न ही दंड देने से हमारा मकसद पूरा होता है। हमारा मकसद है कि हॉस्पिटलों और हेल्थकेयर से जुड़े हुए तबके में इनफेक्शन कम करना। हमारा प्लैटफॉर्म जागरूकता पैदा करने और ट्रेनिंग देने के लिए है। हमारी कोशिश है कि सदस्य अस्पतालों से जो भी आंकड़े इकट्ठे किए जाएं उनमें नैशनल लेवल के मापदंड बनाए जाएं। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा संस्थाओं को जोड़ा जाए ताकि भारत के कोने-कोने तक जागृति लाई जा सके। सिर्फ शहरी ही नहीं गांव के स्तर के जो क्लीनिक या नर्सिंग होम हैं वहां तक भी पहुंचा जा सके(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,5.3.11)।
Achchi jankari hai.... Dhanywad
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपने अच्छी जानकारी दी है....
जवाब देंहटाएंआप भी जरूर आएं....
Achchi jankari hetu Dhanywad .....
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