यदि आप दिल्ली की दौड़भाग वाली जिंदगी में जी रहे हैं और 40 की उम्र पार कर चुके हैं तो आप ग्लूकोमा के प्रति सावधान रहें। डरने की नहीं, सतर्कता बरतने की जरूरत है। आंखों की बीमारियों में पांच फीसदी मरीज ग्लूकोमा के होते हैं। श्रॉफ आई सेंटर के डॉ. नौशीर श्रॉफ बताते हैं कि मधुमेह व थायराइड के मरीज में ग्लूकोमा का खतरा बना रहता है। गलत जीवन शैली के कारण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मधुमेह के मरीज ज्यादा हैं। स्टीरायड लेने से भी ग्लूकोमा का खतरा है। दिल्ली सहित अन्य मेट्रो शहरों में स्टीरायड का उपयोग ज्यादा हो रहा है। दूसरी ओर, मैक्स अस्पताल की डॉ. पारुल शर्मा बताती हैं कि देश भर में 1.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हैं। वह बताती हैं कि उनके पास आने वाले आंखों के सौ मरीजों में पांच ग्लूकोमा से ग्रस्त होते हैं। ग्लूकोमा आंखों के लिए साइलेंट किलर की तरह है। कब आंख इसकी चपेट में आती है, मरीज को पता ही नहीं चलता। जबआंखों में ग्लूकोमा के कारण समस्या महसूस होती है, तब तक ग्लूकोमा 50 फीसदी तक आंखों को अपनी चपेट में ले चुका होता है। 40 की उम्र के बाद ग्लूकोमा का खतरा शुरू हो जाता है। ग्लूकोमा को काला मोतिया के नाम से भी जाना जाता है। भारत में अंधेपन का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है। इसके शुरू होते ही इलाज कराने से आंखों की रोशनी खोने से बचा जा सकता है। लोगों को समय-समय पर आंखों की जांच कराते रहना चाहिए।
आंखों में क्या होता है बदलाव :
हमारी आंख एक तरल पदार्थ का निर्माण करती है, जो आंखों का पोषण करता है। यह तरल पदार्थ आंख के कोने से बाहर आता रहता है। आंखों में तरल पदार्थ बनने एवं उसके बाहर निकलने का संतुलन बिगड़ने के कारण बाहर निकलने के रास्ते अवरुद्ध होने लगते हैं, जिससे दिखाई देना कम होने लगता है।
ग्लूकोमा के लक्षण :
डॉक्टर बताते हैं कि ग्लूकोमा का लक्षण शुरू-शुरू में बिल्कुल ही नहीं पता चलता। इसलिए आंखों की सामान्य जांच में ग्लूकोमा की जांच जरूर कराएं। यदि विशेषज्ञ ग्लूकोमा की जानकारी देते हैं, तो समस्या न होने पर भी इलाज शुरू कर दें। इसके अलावा बीमारी में जल्दी-जल्दी चश्मे के पावर में बदलाव, सिर दर्द, रात को कम दिखाई देना, प्रकाश के चारों ओर बादलों जैसा दिखाई देना आदि लक्षण हैं।
क्या है इलाज :
ग्लूकोमा का इलाज नहीं हो सकता। इसे नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। इसलिए नेत्र जांच के दौरान ग्लूकोमा की जांच जरूर कराएं। ग्लूकोमा के मरीज को प्रत्येक माह दो सौ से पंद्रह सौ रुपये तक की दवाइयां खानी होती हैं। अन्यथा आपरेशन से बीमारी को बढ़ने से नियंत्रित किया जा सकता है। आपरेशन में 15 से 20 रुपये हजार तक खर्च आता है(ब्रजकिशोर मिश्र,दैनिक जागरण,दिल्ली,7.3.11)।
dhanyvaad uprokt jankari hetu....
जवाब देंहटाएंसचमुच बड़ी आँख लेवा बीमारी है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ।
Zaroori hai aankhon ki uchit dekhbhal..... sunder jankari
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं