शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का शोधःनैनो-पार्टिकल्स से बढ़ेगी एंटीबायोटिक दवाओं की क्षमता

शरीर में बायोफिल्म तैयार कर एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता हासिल करने वाले रोगाणुओं (माइक्रोव्स) के खिलाफ नैनो पार्टिकल्स एक कारगर उपाय साबित होंगे। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) के अप्लाइड मेकेनिक्स विभाग में तीन एंटीबायोटिक दवाओं पर किए गए शोध में इस बात का पता चला है कि नैनो पार्टिकल में दवा देकर हानिकारक रोगाणुओं के सुरक्षा चक्र को भेदना संभव है। रोगों के लिए जिम्मेदार माइक्रोव्स (सूक्ष्म अणु जिनमें बैक्टीरिया या विषाणु भी शामिल हैं) शरीर में अपनी संख्या को बढ़ा लेते हैं, जिससे उनकी बायोफिल्म बन जाती है। यह बायोफिल्म दरअसल शुगर और प्रोटीन का एक सुरक्षा चक्र होती है। इसे भेद पाने में सामान्य एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो जाती हैं। कई मामलों में तो सौ से हजार गुना ज्यादा पावर की एंटीबायोटिक देने के उदाहरण भी मिले हैं। शरीर में बायोफिल्म बना चुके इन माइक्रोव्स को भेद पाने में अक्षम एंटीबायोटिक दवाओं में बिना रासायनिक पदार्थ बढ़ाए हुए इनकी क्षमता बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए एमएनएनआइटी के वैज्ञानिक डॉ. विष्णु अग्रवाल और उनकी टीम ने नैनो पार्टिकल्स का उपयोग किया। इसके लिए जेंटामाइसिन, सिप्रोफ्लोक्सिन और ओफ्लाक्सिन को चुना गया। प्रारंभ में कुछ वाह्य इम्प्लांट उपकरण जैसे कैथेटर, कांटैक्ट लेंस, ग्लूकोज चढ़ाने वाली निडिल आदि में माइक्रोव्स की बायोफिल्म तैयार की गई। इसके बाद इनमें उक्त तीनों औषधियों को सामान्य ढंग से प्रयोग किया गया। माइक्रोव्स के सुरक्षा कवच को यह दवाएं भेद नहीं पाई। कुछ मामलों ने इन्होंने माइक्रोव्स के किसी कंपोनेंट के साथ अभिक्रिया करके विपरीत प्रभाव भी दिया। प्रयोग के अगले चरण में इन दवाओं को नैनो पार्टिकल्स में रखकर बायोफिल्म में डाला गया। इस बार माइक्रोव्स के किसी भी कंपोनेंट के साथ इन दवाओं की अभिक्रिया तो रुकी ही, ये दवाएं बराबर सक्रिय रहीं और इन्होंने बायोफिल्म के जाल के समान सुरक्षा चक्र को भेद दिया। संक्रमण की स्थिति में नैनोपार्टिकल में दवा देकर कम समय में दवा की कम मात्रा के प्रयोग से अच्छे परिणाम मिले(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,4.3.11)।

1 टिप्पणी:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।