हमारा चिकित्सा संबंधी खर्च लगातार बढ़ रहा है। एक ग्लोबल कंसलटेंसी फर्म ने अपने सर्वेक्षण में यह खुलासा किया है कि इसके बढ़ने की रफ्तार देश की मुद्रास्फीति से भी ज्यादा है। सर्वे के अनुसार पिछले चार सालों में मेडिकल खर्च की मुद्रास्फीति हमेशा दो अंकों में रही है, जबकि सामान्य मुद्रास्फीति इससे कम रही।
न सिर्फ मध्यवर्ग का बल्कि गरीब तबके का मेडिकल बिल भी बढ़ा है। इसका एक संकेत तो यह है कि सरकार सबको समान स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में असफल रही है। स्वास्थ्य सेवा के विकास के बावजूद आज भी न तो पर्याप्त संख्या में अस्पताल हैं, न ही उनमें पर्याप्त डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी। नतीजतन लोगों की निजी क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ी है। हाल में खासतौर से शहरों में प्राइवेट मेडिकल सेक्टर का तेजी से विस्तार हुआ है, जिसने लोगों को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं।
लेकिन, प्राइवेट सेक्टर पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं है, इसलिए समय के साथ इसकी फीस भी लगातार बढ़ती जा रही है। इसका दूसरा पहलू यह है कि ऐसे कई संस्थान सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने का वादा कर सरकार से सारी सहूलियतें लेते रहे हैं। हेल्थ केयर के क्षेत्र में बीमा कंपनियों के प्रवेश ने मेडिकल बिल को और बढ़ाया है।
गौरतलब है कि हमारे देश में निजी स्वास्थ्य बीमा सेवा 40 प्रतिशत वार्षिक की गति से बढ़ रही है। हालांकि जागरूकता की कमी और ऊंची प्रीमियम दर जैसे कारणों से देश की ज्यादातर आबादी इन सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाती। फिलहाल देश की करीब 12 फीसदी जनसंख्या ही स्वास्थ्य बीमा सुविधा ले रही है। इस मामले में निजी चिकित्सा संस्थानों का रवैया बड़ा विचित्र है। कुछ समय पहले अपनी एक रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा था कि प्राइवेट हॉस्पिटल उन लोगों से ज्यादा पैसे वसूलते हैं, जिन्हें हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा प्राप्त होती है।
यानी एक ही तरह के इलाज में वे दो तरह से शुल्क लेते हैं। इस कारण भी चिकित्सा में मुद्रास्फीति बढ़ी है। लेकिन इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। वर्ष 2011-12 के बजट में उसने हेल्थकेयर पर 5 पर्सेंट सर्विस टैक्स लगा दिया है जिससे मेडिकल बिल और बढ़ेगा। अगर सरकार को वाकई आम आदमी की चिंता है तो उसे मेडिकल सेक्टर में एक संतुलन स्थापित करना होगा। ऐसे रास्ते ढूंढने होंगे जिनसे हर वर्ग को सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,4.3.11)।
यानी एक ही तरह के इलाज में वे दो तरह से शुल्क लेते हैं। इस कारण भी चिकित्सा में मुद्रास्फीति बढ़ी है। लेकिन इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। वर्ष 2011-12 के बजट में उसने हेल्थकेयर पर 5 पर्सेंट सर्विस टैक्स लगा दिया है जिससे मेडिकल बिल और बढ़ेगा। अगर सरकार को वाकई आम आदमी की चिंता है तो उसे मेडिकल सेक्टर में एक संतुलन स्थापित करना होगा। ऐसे रास्ते ढूंढने होंगे जिनसे हर वर्ग को सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,4.3.11)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।