गुरुवार, 24 मार्च 2011

अतिभावुकता है ब्रेक डाउन की जड़

बात-बात में भावुक हो जाना आपको भले ही भोले और सीधे-सादे की संज्ञा दिला दे, मगर यह मत भूलिए कि यह भावुकता भी एक गंभीर रोग है। ‘मेंटल इमोशनल सिंड्रोम’ नामक यह समस्या आपके तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। युवा महिलाओं में पनपता यह रोग चरम सीमा पर पहुंचकर नर्वस ब्रेक-डाउन की स्थिति ले आता है। अति भावुकता का यह रोग विश्व स्तर पर अपनी जड़े जमा रहा है, हालांकि चिकित्सक वर्ग इस मस्तिष्कीय रोग पर परीक्षण कर उस पर काबू पाने के रास्ते तलाश रहा है, मगर इस पर काबू पाने के लिए जरूरत है इच्छाशक्ति की।

हार्मोंस का घटना-बढ़ना
महिलाओं के शरीर में हार्मोस का स्नव किसी प्रभाव के कारण घट-बढ़ होने लगता है। यह अक्सर गंभीर स्थिति पैदा करता है। चिकित्सकों की राय में महिलाओं में हार्मोस का असंतुलित हो जाना भी एक तरह से भावनाओं पर चोट करता है। चिड़चिड़ाना, खीझना, कुछ करने का दिल न करना इसकी शुरुआत है। मनोचिकित्सकों की राय में नर्वस ब्रेक-डाउन की शिकार युवतियां एक तरह से जीना ही भूल जाती हैं। उनके पोर-पोर में समाई भावुकता उन्हें कमजोर बना डालती है। भावुक महिलाएं आमतौर पर बिना कारण गुमसुम हो जाती हैं, अकेला समझ बस यूं ही रोने लगती हैं। गुस्सा भी इस हद तक करने लगती है कि सामने वाले पर हमला ही कर डालती हैं।

कैसे निपटा जाए
अति भावुकता यानी नर्वस ब्रेक-डाउन का रोग विश्वव्यापी है, इसलिए इसके उपचार के उपाय भी हर देश में आम हैं। रोचक बात यह है कि सभी में कमोबेश समानता नजर आती है। चिकित्सकों की सलाह है कि इससे निपटने के लिए प्रयास भी रोगी को ही करने होंगे। दूसरों की सुनें, अपनी सुनाएं, मगर सकारात्मक रूप से। आज इसे टॉकिंग ट्रीटमेंट यानी बातचीत से रोगों का इलाज कहा जा रहा है।

नर्वस ब्रेक-डाउन की समस्या आपसी बातचीत से मन हल्का कर लेने पर उड़नछू हो जाती है और उसके दुष्परिणामों पर रोक लगाती है। इसी कड़ी में बिहेवियर थेरेपी यानी व्यवहार सुधार की चिकित्सा पद्धति भी कारगर सिद्ध हुई है। हंसी-मजाक, एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करना भी इस दिशा में सफल परिणाम लाता है। ‘मेरी तो कोई सुनता ही नहीं’ की समस्या है तो समाधान है।

दूसरों की तारीफ करें, बदले में तारीफ मिलेगी। यह मांसपेशियों में पैदा तनाव कम करती है। जब भी ऐसी स्थिति का अंदेशा हो तो तत्काल किसी से बात करें। जहां एक बार मन हटा, समस्या समाप्त हो जाएगी। स्थान, आहार और संपूर्ण विचार परिवर्तन भी इसका इलाज है।

स्विट्जरलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिक के वैज्ञानिकों ने ऐसा असरकारी हार्मोन ढूंढ़ निकाला है जो न केवल दूसरों पर विश्वास कराता है बल्कि पर विश्वास करने लायक बनाता है। इससे भावुकता में ठेस लगने की गुंजाइश नहीं रहती। ऑब्सीरोसीन को आधार बनाकर एक ऐसा स्प्रे तैयार किया है जिसे नाक में छिड़काव किया जाए तो वह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में उठे तनाव को ठिकाने लगाता है।

पाश्चात्य मनोचिकित्सक डॉ. मार्क विलियम्स की सलाह है कि इस दशा से में पीड़ित को उसके सुखद अनुभव की यादें बार-बार याद दिलाई जाएं। यादों से जुड़े उसके प्रिय व्यक्ति को भी उसे मिलाएं। अवसाद के क्षणों को मिठास भरी बातों से दूर किया जाए।
 
गांठ बांध लें
- अपनी बेचारगी न दिखाएं।
- एक बात को देर तक न सालते रहें।
- बातचीत करें, दूसरों की सुनें।
- दूसरों की तारीफ करें।
- मेल-जोल बढ़ाएं, संगीत सुनें।
- खान-पान सही रखें, जीवनशैली बदलें।
(दुर्गेश शर्मा,हिंदुस्तान,दिल्ली,23.3.11)

5 टिप्‍पणियां:

  1. आद. राधारमण जी,
    महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा आपका पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी होती है !
    आभार !

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  2. आज का आलेख मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है.. क्योंकि मैं इस स्थिति से गुजरा हूँ... राधारमण जी, धन्यवाद!

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  3. Now I can forecast the reason for my death. :-(I m dead sure if being emotional can be a reason for a break-down, no other thing can kill me.

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  4. bahut mahatvpoor lekh...khas taur se kavi lekhko ke liye kyuki sabse adhik bhaavuk hote hain. :)

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