शनिवार, 5 मार्च 2011

आयुर्वेद और कैंसर

कैंसर पर फतह पाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को आयुर्वेद ने एक नई दिशा दी है। आयुर्वेदाचार्यों के दावों पर यकीन करें तो कैंसर प्रभावित कोशिकाओं पर औषधियों के असर से अब आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है। इलाहाबाद के राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, हंडिया में किए गए शोध के दौरान यह पता लगा है कि कैंसर प्रभावित अंगों पर किस तरह औषधियों का त्वरित और सीधा असर पहुंचाया जा सकता है। आयुर्वेदाचार्यों ने इस विधि को मॉलिकुलरली टारगेटेड थिरैपी का नाम दिया है। शोध के उत्साहजनक परिणामों के बाद आयुर्वेदाचार्यो का दावा तो यह भी है कि कैंसर के दूसरे और तीसरे चरण में पहुंच चुके ऐसे मरीज जो इलाज के लिए सर्जरी और कीमोथिरैपी कराने में असमर्थ हैं, उनका इलाज इस इस थिरैपी से सफलतापूर्वक किया जा सकता है। महाविद्यालय के काय चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ.जीएस तोमर के मुताबिक शोध में इस बात का पता चला कि जिस अंग में कैंसर है, यदि उससे संबंधित बीमारी में दी जाने वाली औषधि के साथ ही कैंसर की औषधियां दी जाती हैं, तो वे प्रभावित अंगों तक जल्दी पहुंचती हैं और त्वरित अपना असर दिखाती हैं। कालेज में किए गए इस शोध के दौरान मुख, फेफड़े और प्रॉस्टेट के कैंसर के 34 मरीजों पर मॉलिकुलरली टारगेटेड थिरैपी का प्रयोग किया गया। इनमें 24 मरीजों में बेहतर परिणाम देखने को मिले। हरदोई जिले से आए मुख कैंसर के एक मरीज में तो 98 प्रतिशत सुधार हुआ। डॉ.जीएस तोमर के मुताबिक इस थिरैपी के जरिए अब दूसरे और तीसरे चरण के मरीजों का भी इलाज बिना सर्जरी और कीमोथिरैपी के ही किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अभी तक आयुर्वेद में प्रथम चरण में ही आयुर्वेदिक औषधियों से कैंसर का इलाज संभव था। इसके अलावा अन्य चरणों में पहुंच चुके मरीजों में सर्जरी और कीमोथिरैपी के सिवा कोई और चारा नहीं था। हालांकि ऐसे मरीजों को आयुर्वेदिक औषध के जरिए कीमोथिरैपी के साइड इफैक्ट से बचाते हुए आयु के साथ ही जीवन गुणवत्ता बढ़ाया जा सकता है। डॉ.तोमर ने बताया कि इस शोध के तहत एक वैज्ञानिक प्रोजेक्ट बना वैज्ञानिक प्रमाणिकता के लिए भेजने की तैयारी चल रही है(अमित पांडेय,दैनिक जागरण,इलाहाबाद,5.3.11)।

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