शाकाहारी आहार में दालों की उपस्थिति अनिवार्य है क्योंकि प्रोटीन की आपूर्ति इसी से होती है। दालें जहां प्रोटीन उपलब्ध कराती हैं वहीं शरीर की अतिरिक्त वसा का भी नाश करती हैं। दालें दिल के रोगियों के लिए भी मुफीद मानी जाती हैं क्योंकि इनमें मौजूद एक रसायन कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करता है।
दालों में वह तासीर है जो शरीर में चर्बी जमा नहीं होने देती। दालों का रक्त शर्करा सूचकांक (ग्लायसेमिक इंडेक्स) कम होता है जो ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने में सहायक होता है। चूँकि ट्राइग्लिसराइड्स नियंत्रित रहते हैं इसलिए शरीर में वसा इकट्ठा नहीं होती। दालों की यही खासियत मोटे लोगों के लिए आदर्श आहार मानी जाती है। दालें रक्त नलिकाओं को वसा से अवरुद्ध होने से रोकती हैं इसलिए बुजुर्गों के आहार में नियमित रूप से शामिल की जानी चाहिए।
प्रोटीन व विटामिन
सभी तरह की दालें शरीर को प्रोटीन मुहैया कराती हैं। प्रोटीन के अलावा इनमें विटामिन-ए और विटामिन-बी भी होते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन तीनों पौष्टिक पदार्थों की जरूरत होती है। दालों में लौह तत्व भी होते हैं तथा कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट तथा नमक भी होता है। कोलेस्ट्रोल मुक्त होने के अलावा दालों में फोलिक एसिड भी होता है।
अनगिनत फायदे
दालों के अनगिनत फायदे हैं। दिल के रोगियों में बहुत कारगर तरीके से काम करती हैं। दालों में मौजूद रेशों, रेजिस्टेंट स्टार्च, जटिल कार्बोहाइड्रेट (ओलिगोसेकराइड्स) के कारण शरीर में कोलेस्ट्रोल का स्तर घट जाता है। इसी खासियत के कारण दालें दिल के रोगियों के लिए मुफीद मानी जाती हैं। दालों में रक्त शर्करा सूचकांक लगभग जीआई-५५ होता है। यह आहार में मौजूद कार्बोहाइड्रेट की मात्रा दर्शाता है। रक्त शर्करा सूचकांक जितना कम होगा,पचने में उतना ही अधिक वक्त लगेगा। इसलिए,जिन खाद्य पदार्थों का रक्त शर्करा सूचकांक कम होगा,वे बहुत धीमी गति से छिन्न-भिन्न होकर टूटेंगे। इस तरह,अत्यन्त धीमी से ही शरीर को शर्करा भी प्रदान करेंगे। यही वजह है कि मधुमेह के रोगियों को दालें ज़रूर खानी चाहिए।
आंतों की बीमारियों में फायदेमंद
आंतों की बीमारियों में दालें फायदा पहुंचाती हैं। ऐसा इसलिए है कि दालों में ग्लूटेन नहीं होता। ग्लूटेन नामक प्रोटीन गेहूं,ओट्स,जौ आदि में मौजूद रहता है। यदि शरीर ग्लूटेन के प्रति संवेदनशील हो जाए,तो वह इन खाद्यान्नों को ग्रहण नहीं कर पाता।
कितनी खाएं दाल
शाकाहारियों को प्रतिदिन दो कटोरी दाल खाना चाहिए। इनमें से एक सुबह और दूसरी शाम को खाना चाहिए। बुजुर्गों को चिकित्सक की सलाह के बाद प्रतिदिन कितनी दाल खाना है इसकी मात्रा तय कराना चाहिए। शुरुआत कम से करें, बाद में इसे बढ़ा सकते हैं। अध्ययन बताते हैं कि ६९-२०० ग्राम दाल प्रतिदिन खाने से ब्लड कोलेस्ट्रोल १० प्रतिशत तक कम हो सकता है। यह नतीजे तीन हफ्तों तक दाल खाने के बाद सामने आए हैं। कोलेस्ट्रोल का स्तर इतना घटने से दिल की बीमारी का जोखिम २० प्रतिशत तक कम हो सकता है। एक स्वस्थ वयस्क दिन में एक समय सिर्फ दालों पर आधारित भोजन करता है तो उसकी रक्त शर्करा का स्तर घट जाता है। इसी तरह रक्त शर्करा ३० से ६० मिनट के अंदर घट जाती है। साथ ही,120 मिनट की अवधि में प्लाज्मा इंसुलिन भी घट जाता है।
हफ्ते में चार बार
20 ग्राम सोयाबीन का प्रोटीन प्रतिदिन आहार में शामिल करने से दिल की बीमारियों का जोखिम कम हो जाता है। दस हज़ार स्त्री-पुरुषों पर हुए इस अध्ययन से मालूम हुआ कि एक हफ्ते में चार बार या इससे अधिक बार दालों पर आधारित आहार करने से दिल की बीमारी का जोखिम 22 प्रतिशत तक घट जाता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह अध्ययन अधिक मौजूं है क्योंकि हमारी अधिकांश आबादी शाकाहारी है और दाल किसी न किसी रूप में रोज़ाना खाई जाती ही है।
प्रति १०० ग्राम दाल में
लौह तत्व ५-१० मिलीग्राम
थायमिन ०.७२ मिलीग्राम
राइबोफ्लोविन ०.१५-०.८५ मिलीग्राम
नाइसिन १.३-३.५ मिलीग्राम
कुपोषणग्रस्त बच्चों को दाल और मूँगफली का घुटा हुआ मिश्रण दिया जा सकता है(डॉ. संगीता मालू,सेहत,नई दुनिया,मार्च चतुर्थांक 2011)।
Bahut Achchi Jankari...
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंअनमोल जानकारी!!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी..
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार |मुझे यह लेख रामबाण दवा सा प्रतीत हो रहा है क्यूँ कि मई इंसुलीन पर निर्भर रहती हूँ और बहुत कमजोरी का अहसास मुझे रहता |
जवाब देंहटाएंआशा