देश में हर साल हेपेटाइटिस बी व सी से मरने वाले हजारों मरीजों व इससे ग्रस्त लोगों का डाटा जुटाने के लिए इंडियन नेशनल एसोसिएशन फार द स्टडी आफ लीवर विशेष अध्ययन शुरू करने जा रही है।
अभी तक कोई डाटा तैयार नहीं किया जाता रहा है। एसोसिएशन दो टीमों को गठन करने जा रही है। ये टीमें साल के अंत में अपनी रिपोर्ट देगी। यह जानकारी पीजीआई में शुरू हुए इंडियन नेशनल एसोसिएशन फार द स्टडी लीवर के प्रधान डा. एसी आनंद ने दी है।
डा. आनंद का कहना है कि देश में हेपेटाइटिस बी को रोकने के लिए इसे राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है। राष्ट्रीय टीकाकरण में शामिल करने इस रोग से ग्रस्त मरीजों की जान को बचाया जा सकता है। डा. आनंद के मुताबिक़, लीवर रोगो के उपचार के बारे में शोध कार्य चल रहे हैं लेकिन शोध के लिए देह व लीवर की जरूरत भी है लेकिन देशमें लोगों में जागरूकता की कमी से दान करने से घबराते हैं। यहां के लोगों के दिमाग में कई प्रकार की भ्रांतियां हैं । जैसे अगर शरीर का कोई अंग दान कर दिया तो अगले जन्म में वह लोग अपंग पैदा होंगे। लोगों को यह पता नहीं अगला जन्म किसने देखा है। दान करने से पुण्य मिलता है न कि विकलांगता मिलती है। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में 20 प्रतिशत लोग बाडी दान करते हैं। उन्होंने बताया कि ब्रेन डेड मरीज की बाडी दान में मिलने से 19 दूसरे जरूरतमंद मरीजों को जीवन मिल सकता है। उन्होंने बताया कि अब भारत से 19 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल यूके में यह सीखने के लिए भेजा है कि वहां किस प्रकार लोगों को मृतक के परिवार को देह दान करने के लिए मनाया जाता है।
इस प्रतिनिधिमंडल के स्वदेश लौटने पर अन्य लोगों को प्रशिक्षण देगा। उन्होंने कहा कि सरकार को भी इस दिशा में सकारात्मक सहयोग देना चाहिए। देहदान करने वालों को सम्मानित किया जाए तो ज्यादा से ज्यादा लोग आगे आएंगे। डा. आनंद ने बताया कि लीवर दो प्रकासर से ट्रांसप्लांट होता है। जिस रोगी का लीवर पूरी तरह से खराब हो जाए इसे बचाने केलिए ऐसे व्यक्ति से लीवर लिया जाता जिसका शरीर रोगग्रस्त है परंतु उसका लीवर ठीक है। उसके लीवर के दाएं भाग का हिस्सा ही लिया जाता है और खराब लीवर वाले मरीज में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
वहीं दूसरी विधि में रोगी के किसी रिश्तेदार के स्वस्थ होने के बावजूद लीवर लिया जाता है। इसमें दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को बिना बजह शल्य प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस स्थिति से बचने के लिए चिकित्सक बीमार मरीज के लीवर को लेना पसंद करते हैं। वहीं टोरंटो से आए डा. बैजामिन ने बताया कि बच्चों में लीवर रोग खतरनाक साबित होता है। छोटे बच्चों में लीवर के रोग वंशानुगत कारणों से होते हैं। कई बार लीवर पर अधिक मात्रा मे वसा जमा होने से लीवर मे परेशानी आती है। उन्होंने बताया कि बच्चे के जन्म लेने के कुछ समय बाद उसके शरीर से चंद खून की बूंदें लेने पर इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। वहीं एसोसिएशन के सचिव डा. एसपी सिंह ने बतायाकि लीवर रोगों का मुकाबला करने के लिए एसोसिएशन पिछले 20 सालों से काम कर रही है(राकेश कुमार,दैनिक ट्रिब्यून,चंडीगढ़,26.3.11)।
वहीं दूसरी विधि में रोगी के किसी रिश्तेदार के स्वस्थ होने के बावजूद लीवर लिया जाता है। इसमें दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को बिना बजह शल्य प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस स्थिति से बचने के लिए चिकित्सक बीमार मरीज के लीवर को लेना पसंद करते हैं। वहीं टोरंटो से आए डा. बैजामिन ने बताया कि बच्चों में लीवर रोग खतरनाक साबित होता है। छोटे बच्चों में लीवर के रोग वंशानुगत कारणों से होते हैं। कई बार लीवर पर अधिक मात्रा मे वसा जमा होने से लीवर मे परेशानी आती है। उन्होंने बताया कि बच्चे के जन्म लेने के कुछ समय बाद उसके शरीर से चंद खून की बूंदें लेने पर इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। वहीं एसोसिएशन के सचिव डा. एसपी सिंह ने बतायाकि लीवर रोगों का मुकाबला करने के लिए एसोसिएशन पिछले 20 सालों से काम कर रही है(राकेश कुमार,दैनिक ट्रिब्यून,चंडीगढ़,26.3.11)।
मैं अपना शरीर दान कर चुका हूँ ..शायद मरने के बाद कुछ लोगों के काम आ सकूं ! आभार आपका !
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