हो सकता है, आप इस तथ्य से वाकिफ न हों कि तकिया अस्थमा के उत्प्रेरकों से भरा हो सकता है, लेकिन यह सच है। जिन लोगों को अस्थमा है उन्हें अपने रहवास के सभी साजो-सामान पर नजर रखना चाहिए। तकिया और बिस्तर गादी उनमें सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारी रात इसी के साथ बिताई जाती है।
अस्थमा के कई मरीजों को तकिए का खोल रोज तक बदलने की सलाह दी जाती है। इसकी वजह यह है कि इसमें शरीर से खिरने वाली त्वचा पर पलने वाले अति सूक्ष्म जीव (डस्ट स्माइट्स) जमा हो जाते हैं। मरीज अक्सर तकिए का खोल बदलकर ही संतुष्ट हो जाते हैं जबकि इतना ही काफी नहीं है। अक्सर तकिया सालों साल नहीं बदला जाता क्योंकि उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता। कई मरीज खुशनसीब होते हैं जिनके परिजन तकिए को एकाध बार धूप दिखा देते हैं। तकिया बदला भी जाना चाहिए इस पर बहुत कम लोग सहमत होते हैं।
गंभीर है यह समस्या
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हैल्थ साइंसेस के एक सर्वेक्षण के मुताबिक ४५ प्रतिशत घरों में डस्ट स्माइट्स भरे हैं। इनमें अस्थमा कारक उत्प्रेरकों की इतनी अधिक सघनता होती है कि इलाज चलते रहने के बावजूद मरीज को रह-रहकर अस्थमा के दौरे पड़ते हैं। इसकी वजह यही डस्ट स्माइट्स हैं। मासूम से तकिए और गादी में ठसाठस भरे जीवों पर किसी का ध्यान नहीं जाता। हो सकता है,सामान्य मरीज़ों को इनसे बहुत फर्क न पड़ता हो,मगर जो असाध्य अस्थमा,एलर्जी और श्वास संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं,उन मरीज़ों को पड़ता है। व्यक्तिगत साफ-सफाई की ओर ध्यान देकर इन मरीज़ों को दमा के दौरों से बचाया जा सकता है।
हर साल बदलें
विशेषज्ञों का मानना है कि अस्थमा के मरीज़ का तकिया हर साल बदला जाना चाहिए। सामान्य जन दो साल में तकिया बदल सकते हैं। इस्तेमाल हो रहे तकियों को हफ्ते में एक बार धूप में रख सकते हैं। बिस्तर-गादी और तकियों के अलावा,शयनकक्ष के गलीचों में भी इन्हीं सूक्ष्म जीवों की भरी-पूरी कॉलोनियां निवास करती हैं। गलीचों को धूप दिखाने के साथ ही इन्हें 130-160 डिग्री तक गर्म किए पानी में भी धोया जा सकता है।
हाइपो एलर्जिक तकिया
हाइपो एलर्जिक तकिए पोलिएस्टर फाइबर से बने होते हैं जो बेहतर विकल्प के रूप में सामने आते हैं। पोलियूरेथ्रीन चढ़े हुए बिस्तर-गादी और तकियों में एलर्जन्स का जमावड़ा नहीं होने पाता लेकिन पसीना सोख लिया जाता है। इससे शरीर नियमत रूप से "सांस" ले पाता है।
एक्यूट ब्रोंकाइटिस
आमतौर पर एक्यूट ब्रोंकाइटिस यानी श्वास नलिका की सूजन के कारण होने वाली तीव्र खाँसी का दौरा कुछ दिनों से कुछ हफ्तों तक जारी रहता है। हो सकता है इसके साथ सर्दी-जुकाम और बुखार भी आ जाए। यह पहले सूखी खाँसी के रूप में शुरू होता है बाद में इतना तीव्र हो जाता है।
मरीज गहरी नींद में से उठ बैठता है। कुछ ही दिनों में बलगम निकलने लगता है। इसी के साथ सिरदर्द,बदन दर्द,बुखार और थकावट रहने लगती है। बुखार भले ही जल्दी उतर जाए,लेकिन खांसी कई हफ्तों तक जारी रहती है। यदि खांसी के साथ बलगम निकलना भी एक महीने तक जारी रहे तो विशेषज्ञ को दिखाना ठीक रहता है। यदि खांसी के साथ बलगम और खून भी निकलने लगे,तो स्थिति को गंभीर समझना चाहिए। इस परिस्थिति में टीबी अथवा फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
बच्चों पर असर
बच्चों पर एलर्जन्स का बहुत जल्दी असर पड़ता है। बच्चों को इस्तेमाल के लिए एलर्जी प्रुफ कवरिंग वाले बिस्तर गादी और तकिए दिए जा सकते हैं। इससे वे घरेलू डस्ट माइट्स से होने वाले संक्रमण से बच सकते हैं। इसकी पुष्टि "द जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्युनोलॉजी" में प्रकाशित एक अध्ययन से भी हुई है।
घर भी रखें साफ
आपके घर का वातावरण और माहौल भी अस्थमा के उत्प्रेरकों को बिस्तर गादी और तकिए में जमा करने के लिए जिम्मेदार है। उदाहरण के तौर पर आपका घर बहुत खुला-खुला है और बाहर धूल भरी हवाएँ भी आती रहती हैं, तब घर में धूल अधिक रहेगी साथ ही डस्ट स्माइट्स भी अधिक मात्रा में रहेंगे। इसी तरह यदि एअर टाइट घर में रहेंगे तब भी अस्थमा उत्प्रेरकों से घिरे रहेंगे क्योंकि डस्ट एलर्जन्स बाहर नहीं निकल पाएँगे। इसलिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि बिस्तर-गादी और तकिए तो नियमित रूप से धूप दिखाते रहें। छः महीने से दो साल के भीतर तकिए बदल दें(डॉ. सलिल भार्गव,सेहत,नई दुनिया,मार्च चतुर्थांक 2011)
सही कहा । अच्छी जानकारी ।
जवाब देंहटाएंबहुत उचित जानकारी...
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