रविवार, 20 मार्च 2011

आप मानेंगे नहीं,फिर भी.......

होली के त्योहार में वसंत के रंगों की निराली छटा बिखरी होती है। पर क्या कभी आपने महसूस किया है कि सुबह से दोपहर तक धुलेंडी की मस्ती मनाने के बाद शाम तक सिर घूमने लगता है और आँखें चढ़ जाती हैं? आपने कभी यह भी नहीं सोचा होगा कि निरापद और मासूम दिखाई दे रहे रंग शरीर के लिए घातक भी हो सकते हैं। वो दिन हवा हुए जब होली प्राकृतिक रंगों से ही खेली जाती थी, अब तो होली का भी बाजारीकरण हो चुका है। प्राकृतिक रंगों का स्थान रसायनों ने ले लिया है, जो घातक प्रभाव छोड़े बिना नहीं जाते।

एक जमाने में होली के रंग वसंत ऋतु में खिलने वाले फूलों से तैयार किए जाते थे। इनमें पारिजात, टेसू से लेकर गेंदा और गुलाब तक शामिल हैं। ज्यादा मस्ती चढ़ी तो मेहंदी की पत्तियाँ पिस ली जाती थीं। रसोईघर की हल्दी और श्रृंगारदान का सिंदूर भी इस्तेमाल होता था। अब पेंट और रसायन उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक रंगों की भरमार है। इनमें से शरीर पर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ने वाले रासायनिक रंग हैं-

सूखे गुलाल को निरापद समझना भी बड़ी भूल है। आमतौर पर गुलाल में दो तत्व होते हैं। एक होता है जहरीला रंग और दूसरा अभ्रक। इन दोनों से अधिक देर तक शरीर का संपर्क रहने पर भारी धातुएं विपरीत असर छोड़ती हैं। गुलाल से सिरदर्द होना,कई मामलों में मितली आना,दमा का दौरा पड़ना,त्वचा रोग होना तथा आंखें खराब होना आदि गंभीर किस्म की शारीरिक समस्याएँ होती हैं। बाज़ार में सूखे और गीले-दो तरह के रंग होते हैं। गीले रंगों में आम तौर पर जिनेशियन वायलेट नामक अधिक तीव्रता वाला रंग मिलाया जाता है जिससे त्वचा बदरंग हो जाती है,साथ ही असाध्य त्वचा रंग भी हो सकते हैं। अक्सर,सड़क किनारे खुले रंग बिकते हैं। हाथठेले वालों को तो यह भी मालूम नहीं होता कि इन रंगों का निर्माता कौन है। कुछ दुकानों पर ऐसे पैकिंग भी उपलब्ध होते हैं जिन पर औद्योगिक उपयोग के लिए लिखा होता है। इन रासायनिक रंगों का चमड़ा,वस्त्र एवं पेंट उद्योग में इस्तेमाल होता है।
होली में अस्थमा से पीड़ित लोगों को खास सावधानी बरतने की जरूरत है। होली के रंग अस्थमा रोगियों के लिए ट्रिगर (अटैक) का काम करते हैं। अस्थमा अटैक से बचने के लिए निर्धारित दवाएं समय से लेने के साथ ही रंगों और धूल से बचने का प्रयास करें। होली में अस्थमा रोगी सूखे रंगों से दूर रहना चाहिए और रासायनिक रंगों के सीधे सम्पर्क में आने से बचना चाहिए।

घर पर तैयार करें रंग
पीला रंग रसोईघर से हल्दी और बेसन लेकर मिलाने से हासिल हो सकता है। इसमें हल्दी और बेसन की मात्रा रंग की तीव्रता के मुताबिक मिलाएँ। इसे सूखा और गीला दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। टेसू के फूल पानी में उबालकर पीला रंग बनाया जा सकता है। इसी तरह अनार के छिलकों को रातभर पानी में भिगोकर रखें और सुबह इसे छानकर इस्तेमाल करें। गहरा पिंक रंग तैयार करने के लिए आपको चाहिए बीटरूट यानी लाल शलजम के बारीक टुकड़े या कद्दूकस पानी में उबाल सकते हैं। इसे रातभर के लिए पानी में भी भिगोकर रख सकते हैं। पिसी हुई मेहंदी की पत्तियाँ तो भूरे से लाल रंग की आभा बिखेर सकती हैं। इसके अलावा आँवले का कद्दूकस रातभर लोहे की बाल्टी में भिगोकर रखा जा सकता है। इससे प्राप्त रंग वाकई तसल्लीदायक होंगे। इनमें केवड़ा, गुलाब या चम्पा के फूलों का इत्र या एसेंस मिलाया जा सकता है। यह त्योहार मनाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दो ऋतुओं के संधिकाल की अवधि में माइक्रो ऑर्गेनिज्म (अति सूक्ष्म जीवाणुओं) को खूब फलने-फूलने के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है। होली के प्राकृतिक रंग प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे अति सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं।

क्या रखें सावधानियां
*होली खेलते समय सिर से पैर तक पूरे शरीर पर सरसों या खोपरे का तेल लगा लें।

*यह सुनिश्चित करें कि आँखों और कानों में रंग न जाए। इसके अलावा नाक और मुंह में भी रासायनिक रंग न पहुँचने पाए।

*अधिक देर तक रंग त्वचा के संपर्क में न रहने दें। तत्काल नहाने की कोशिश करें।

*रंग निकालने के लिए कपड़े धोने का साबुन शरीर पर न लगाएं। इसमें तीव्र सांद्रतायुक्त कॉस्टिक सोड़ा हो सकता है।

रंग-रसायन-प्रभाव
*काला-लेड ऑक्साइड-गुर्दे खराब

*सिल्वर-एल्युमीनियम ब्रोमाइड-कैंसरकारक

*नीला-पर्शियन ब्लू-मोतियाबिंद व खुजली होना

*लाल-मर्क्यूरी सल्फाइट-अत्यंत जहरीला व त्वचा कैंसरकारक

*हरा-कॉपर सल्फेट-आँखों की एलर्जी, पपोटों पर सूजन और अस्थायी अंधत्व
(डॉ. संजीव नाईक,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2011)।

बारीकी से देखें तो हमारे देश में लगभग सभी तीज-त्योहार सेहत के प्रति एक सजग दृष्टि के साथ संयोजित किए गए हैं। होली के रंग भी इससे अछूते नहीं थे पर अब सेहत से इनकी लंबी दूरी हो गई है। सर्दियाँ बीत रही हैं और गर्मियाँ शुरु हो रही हैं। ऋतुओं के इस संधिःकाल में अति सूक्ष्‌म जीवाणुओं (माइक्रो ऑर्गेनिज्म) को पनपने के लिए भरपूर माहौल मिल जाता है। मौसम भर इस्तेमाल हुई रजाइयाँ और कंबल शरीर से लगातार खिर रही त्वचा पर पलने वाले अति सूक्ष्‌म जीवाणुओं से भर जाते हैं। त्वचारोगों के लिए यह समय अनुकूलबारीकी से देखें तो हमारे देश में लगभग सभी तीज त्योहार सेहत के प्रति एक सजग दृष्टि के साथ संयोजित किए गए हैं। होली के रंग भी इससे अछूते नहीं थे पर अब सेहत से इनकी लंबी दूरी हो गई है। सर्दियाँ बीत रही हैं और गर्मियाँ शुरु हो रही हैं। ऋतुओं के इस संधिःकाल में अति सूक्ष्‌म जीवाणुओं (माइक्रो ऑर्गेनिज्म) को पनपने के लिए भरपूर माहौल मिल जाता है। मौसम भर इस्तेमाल हुई रजाइयाँ और कंबल शरीर से लगातार खिर रही त्वचा पर पलने वाले अति सूक्ष्‌म जीवाणुओं से भर जाते हैं। त्वचारोगों के लिए यह समय अनुकूल होता है। इनसे निपटने के लिए आदिकाल से रंगों के प्रयोग का प्रावधान किया गया है। अमेरिकी आदिवासियों की मान्यता है कि रात में आग तापने से आत्मा शुद्ध होती है और दिन की धूप से रक्त शुद्ध होता है। होलिका दहन को आग तापने के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। धुलेंडी के दिन सुबह से शरीर पर रंग लगाना भी त्वचा शुद्धि का ही दूसरा रूप है। प्राकृतिक रंग प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं। रंगों से त्वचा पर टिकने वाले अति सूक्ष्‌म जीवाणुओँ का खात्मा हो जाता है। होली पर प्राकृतिक रंगों के प्रयोग का चलन अब फिर बढ़ चला है। नए किस्म की जागरूकता फैल रही है। होलिका दहन में बेवजह पेड़ों को फूंकना कम हो चला है। संभवतः पुराने कबाड़ से मुक्ति पाने का फायदा भी इसीलिए इस प्रथा में शामिल किया गया होगा।

घातक औद्योगिक रसायनयुक्त रंग बाजार में आसानी से मिल जाते हैं जबकि प्राकृतिक रंग विशेष प्रयत्नों से हासिल करने की तकलीफ उठाना पड़ती है। लोग तर्क देते हैं कि हम तो दूसरों पर प्राकृतिक रंग डाल रहे हैं पर दूसरे रासायनिक रंग ही डालते हैं। इस तरह,प्राकृतिक रंग इस्तेमाल करके भी हम नुकसान में रहते हैं और जब हमें नुकसान ही होने वाला है तो प्राकृतिक रंगों को हासिल करने की जहमत क्यों उठाना चाहिए? लोग सामाजिक दायित्वों से बच निकलने वाले इन्हीं तर्कों का सहारा लेते आए हैं। लेकिन शुरूआत कहीं से तो करनी होगी। किसी को तो यह बीड़ा उठाना ही होगा। अच्छे काम की शुरूआत हम ही क्यों न करें औऱ इसी धुलेंडी से ही क्यों नहीं?(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक,2011)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक होली प्रस्तुति
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. क्यों मानेंगे।
    होली है!!

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  3. होली में चेहरा हुआ, नीला, पीला-लाल।
    श्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१।

    महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल।
    होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२।

    हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल।
    होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३।

    कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल।
    टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४।

    --

    रंगों के पर्व होली की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  4. बाकियां दियां गल्लां छड्डो , रंग साफ़ होना चाहिदा ।

    होली की हार्दिक शुभकामनायें राधारमण जी ।

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  5. नेह और अपनेपन के
    इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
    उमंग और उल्लास का गुलाल
    हमारे जीवनों मे उंडेल दे.

    आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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