छात्रों में नशीली दवाओं के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता का विषय बनती जा रही है और इसे रोकने के प्रयासों को तेज करने की जरूरत है। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने मादक द्रव्य नियंत्रण ब्यूरो के रजत जयंती समारोह में कहा कि कॉलेज और स्कूल के छात्रों में नशीली दवा के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंता की बात है। पिछले कुछ बरसों में स्थिति काफी बिगड़ी है और इस प्रवृत्ति को रोकने के प्रयासों में तेजी लानी होगी। गृहमंत्री ने अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि देश में नशीली दवाओं के अवैध व्यापार में काफी बढ़ोतरी हुई है। छात्रों को इस तरह की दवाएं बेचा जाना आंतरिक सुरक्षा के लिए भी गंभीर समस्या है। पार्टियों में नशीली दवाओं का खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। कोकीन और नशीली दवाओं का प्रचलन बढऩा इस बात का संकेत है कि इसे रोकने के प्रयास नाकाफी रहे हैं।
व्हाइटनर पर प्रतिबंध के लिए इच्छाशक्ति जरूरी
नशे के लिए व्हाइटनर के बढ़ते प्रचलन पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है और कहा है कि चूंकि यह आसानी से उपलब्ध होती है इसलिए बच्चों के बीच इसका प्रयोग ज्यादा होता है और इसकी ब्रिकी पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। बेसहारा बच्चों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन चेतना के निदेशक संजय गुप्ता ने कहा किव्हाइटनर की बिक्री पर कोई नियंत्रण नहीं है। स्टेशनरी, पान और अन्य सामान्य दुकानों पर यह आसानी से उपलब्ध होती है।
बच्चे भी इसे आसानी से खरीद सकते हैं, क्योंकि उन्हें बढिय़ा जेबखर्च मिलता है। गौरतलब है कि साल 2008 में चेतना ने एक अध्ययन किया था जिसमें यह पाया गया था कि प्रतिदिन व्हाइटनर की बिक्री 27 लाख से 67 लाख तक है। यह अध्ययन सिर्फ सड़कों पर रहने वाले बच्चों पर किया गया था अगर इसमें स्कूली बच्चों को भी जोड़ दिया जाता तो यह संख्या और भी ज्यादा होती। दूसरी तरफ सलाम बालक ट्रस्ट की निदेशिका किरण ज्योति ने कहा कि एक बोतल व्हाइटनर की कीमत दिन में 25 रुपया प्रति शीशी होती है, लेकिन रात होते-होते इसकी मांग बढ़ जाती है और यह 35 से 40 रुपया प्रति शीशी बिकती है। यह साफ है कि व्हाइटनर के लती बच्चों के कारण ही इसकी मांग बढ़ती है(राज एक्सप्रेस,17.3.11)।
नशे के लिए व्हाइटनर के बढ़ते प्रचलन पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है और कहा है कि चूंकि यह आसानी से उपलब्ध होती है इसलिए बच्चों के बीच इसका प्रयोग ज्यादा होता है और इसकी ब्रिकी पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। बेसहारा बच्चों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन चेतना के निदेशक संजय गुप्ता ने कहा किव्हाइटनर की बिक्री पर कोई नियंत्रण नहीं है। स्टेशनरी, पान और अन्य सामान्य दुकानों पर यह आसानी से उपलब्ध होती है।
बच्चे भी इसे आसानी से खरीद सकते हैं, क्योंकि उन्हें बढिय़ा जेबखर्च मिलता है। गौरतलब है कि साल 2008 में चेतना ने एक अध्ययन किया था जिसमें यह पाया गया था कि प्रतिदिन व्हाइटनर की बिक्री 27 लाख से 67 लाख तक है। यह अध्ययन सिर्फ सड़कों पर रहने वाले बच्चों पर किया गया था अगर इसमें स्कूली बच्चों को भी जोड़ दिया जाता तो यह संख्या और भी ज्यादा होती। दूसरी तरफ सलाम बालक ट्रस्ट की निदेशिका किरण ज्योति ने कहा कि एक बोतल व्हाइटनर की कीमत दिन में 25 रुपया प्रति शीशी होती है, लेकिन रात होते-होते इसकी मांग बढ़ जाती है और यह 35 से 40 रुपया प्रति शीशी बिकती है। यह साफ है कि व्हाइटनर के लती बच्चों के कारण ही इसकी मांग बढ़ती है(राज एक्सप्रेस,17.3.11)।
अच्छी जानकारी.... कभी सोचा न था वैटनर का ये उपयोग भी होता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी....
जवाब देंहटाएंव्हाइटनर =white fluid ?
स्थिति चिंताजनक है।
जवाब देंहटाएंचिंताजनक बात है...
जवाब देंहटाएंइस देश में लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है लेकिन मौत का साधन उपलब्ध है....ये सब चिदम्बरम जैसे के गृहमंत्री और मादक द्रव्य नियंत्रण ब्यूरो के रजत जयंती समारोह का प्रभाव है......मादक द्रव्य नियंत्रण नहीं सर्व सुलभ व्यूरो कहिये....नियंत्रण होता तो ये हाल नहीं होता....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चिंतनशील प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं