शुक्रवार, 18 मार्च 2011

प्रतिबंधित कीटनाशक हैं 12 रोगों की जड़

हाल ही में कंज्यूमर वॉयस नामक एक एनजीओ द्वारा तैयार अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया कि सब्जियों और फलों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधित पांच कीटनाशकों की मात्रा सब्जियों और फलों में पाई गई है। इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में बिक रही सब्जियों में प्रतिबंधित कीटनाशकों के प्रयोग के लिए सरकार को फलों और सब्जियों की जांच का आदेश दिया है। हमारी सरकार लोगों के स्वास्थ्य के प्रति कितनी लापरवाह है इसे दिल्ली के उदाहरण से समझा जा सकता है। दिल्ली सरकार के प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन (पीएफए) की जिम्मेदारी है कि वह मंडियों में फल-सब्जियों के नमूने ले और जांच में गड़बड़ी पाने पर दोषियों को पकड़े। लेकिन इस विभाग ने पिछले तीन साल में दिल्ली की मंडियों में जाकर एक भी नमूना नहीं लिया। इससे आम लोगों की सेहत के प्रति सरकारी विभागों की उदासीनता का पता चलता है। जब देश की राजधानी का यह हाल है तो पूरे देश की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। दरअसल सब्जियों और फलों के ज्यादा से ज्यादा उत्पादन और मुनाफा कमाने के उद्देश्य से रसायनों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। गर्भवती महिलाओं के आसान प्रसव के लिए प्रयोग किए जाने वाले ऑक्सीटोसिन नामक हारमोन का इस्तेमाल आज बहुत सारे पशुपालक और किसान पशुओं से अधिक दूध निकालने या अधिक मात्रा में सब्जियां उगाने के लिए करने लगे हैं। परीक्षणों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फलों या सब्जियों को अधिक ताजा दिखाने के लिए उन्हें रसायनों में डुबो कर रखा जाता है। चिकित्सकों के मुताबिक इस तरह के फल व सब्जियों के सेवन से कैंसर सहित 12 तरह की बीमारियां होती हैं। तंत्रिका तंत्र के अचानक फेल होने, हृदय की धड़कन बढ़ने, रक्तचाप, कैंसर, गुर्दे की खराबी, चर्म रोगों, नपुंसकता के मामले तेजी से बढ़ने के पीछे खान-पान के साथ शरीर में जा रहे जहरीले रसायनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। देखा जाए तो फलों-सब्जियों के साथ-साथ अन्य फसलों में भी नुकसानदेह कीटनाशकों का प्रचलन बढ़ा है। इसका एक कारण कृषि मित्र जीव-जंतुओं का विनाश भी है। पहले देसी कीटनाशकों का प्रयोग होता था, लेकिन जैसे ही रासायनिक कीटनाशक आए वैसे ही इन्हें अनुपयोगी मान लिया गया। नए कीटनाशकों ने मिट्टी की उर्वरता नष्ट करने और हवा-पानी को जहरीला बनाने के साथ ही कीटनाशकों की जरूरत को बढ़ा दिया। इससे किसानों पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ा। इसे कपास के उदाहरण से समझा जा सकता है। 1960 के शुरू में कुल सात कीट ही कपास किसानों को परेशान कर रहे थे, लेकिन आज किसानों को 120 कीटों से जूझना पड़ रहा है जिनमें 70 बड़े कीटों की श्रेणी में आ गए हैं। जागरूकता के अभाव में कीटनाशकों का अनावश्यक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है। उदाहरण के लिए फिलीपींस स्थित अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) ने बताया कि एशिया में धान पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पूरी तरह से धन और समय की बर्बादी है। इस बात का अहसास तब हुआ जब फिलीपींस, वियतनाम और बांग्लादेश के किसानों ने बिना रासायनिक कीटनाशकों के पहले से भी अधिक धान का उत्पादन किया। भारत में भी कीटनाशकों के बिना खेती का प्रचलन शुरू हो चुका है। आंध्र प्रदेश के 18 जिलों के ढाई लाख किसान बगैर कीटनाशकों के इस्तेमाल के फसल उगा रहे हैं और पैदावार में कोई गिरावट नहीं आई है। अब किसानों को अवांछित कीटों से नहीं जूझना पड़ रहा है। इससे न केवल पर्यावरण बिल्कुल साफ और सुरक्षित हो गया है, बल्कि कीटनाशकों के विषैले तत्वों का मानव और पशुओं पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ रहा है। ऐसे में कीटनाशक विहीन खेती का दायरा बढ़ाने की जरूरत है(रमेश दुबे,दैनिक जागरण,18.3.11)।

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