सीजोफ्रेनिया रोग किशोरावस्था या युवावस्था में शुरू होता है और जीवन भर रहता है। लगभग एक प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। परिवारीजनों, मित्रों, पड़ोसियों पर शक करना, बेवजह भयभीत रहना, अकेले में बुदबुदाना, बड़बड़ाना, हंसना, रोना या सबसे दूर भागना बीमारी के लक्षण हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मानसिक रोग विभाग के हेड प्रो.पीके दलाल का कहना है कि सीजोफ्रेनिया कई कारणों से हो सकता है। इसमें अनुवांशिक, शुरुआती जीवन और जीवनशैली रोग का कारण बन सकते हैं। हर १०० में से एक व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रस्त है। इनमें से कम से कम पांच लाख सीजोफ्रेनिया के रोगी हैं। देश में इलाज के लिए सिर्फ २८ हजार बिस्तर ही हैं। पीजीआई चंडीगढ़ के मानसिक रोग विभाग के हेड प्रो. परमानंद कुल्हाड़ा के अनुसार, मानसिक रोगियों और उनका इलाज करने वालों के बीच काफी अंतर है। २५० जिलों में इसे लागू कर दिया गया है। प्रत्येक जिला अस्पताल में डॉक्टरों को मानसिक रोगियों की पहचान करने व इलाज करने की सुविधा दी गई है। मेडिकल कॉलेजों में भी मानसिक रोग विभाग को संसाधन मुहैया कराए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देश के ३९ मेंटल हॉस्पिटल में व्यवस्थाएं सुधारी जा रही हैं। वर्तमान में देशभर में ३५०० मानसिक रोग विशेषज्ञ हैं। जरूरत एक लाख की आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर की है(अमर उजाला,लखनऊ,15.3.11)।
जानकारी का आभार...
जवाब देंहटाएंसीजोफ्रेनिया रोग यदि बढ़ जाए तो बहुत परेशानी होती है और ऐसे मैं रोगी के लिए घर वालों कि ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है.
जवाब देंहटाएंकई पुरुष और महिला ब्लागरों को यह रोग है एक महिला ब्लॉगर को तो बहुत क्रानिक और असाध्य !:)
जवाब देंहटाएंमानसिक रोगी मतलब 'सैकड़ों में एक'
जवाब देंहटाएंमानसिक रोग विशेषज्ञ मतलब 'लाखों में एक'
मानसिक ब्लॉग विशेषज्ञ मतलब '100 करोड़ में एक'
स्थिति चिंताजनक है....
जवाब देंहटाएंजानकारी परक लेख हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंदुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ।
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