ब्लड कैंसर और गांठों के कैंसर में सबसे कारगर लेटेस्ट तकनीक बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा करीब 5 महीने पहले नोएडा के एक निजी अस्पताल में शुरू हुई। बता दें ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए यह तकनीक इतनी कारगर साबित हो रही है कि 5 महीनों में ही यहां पर 8 मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया। इनमें से 6 मरीजों को ब्लड कैंसर था। डॉक्टरों का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराने के बाद मरीज को हमेशा के लिए ब्लड कैंसर से छुटकारा मिल जाता है। यही वजह है कि मंहगी होने के बाद भी इस तकनीक को लोग अपना रहे हैं। नोएडा में अभी फोर्टीस अस्पताल में यह सुविधा शुरू हुई है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. राकेश ओझा ने बताया कि अब तक आए 8 मरीजों में से 6 को ब्लड कैंसर था, जो कि पूरी तरह ठीक हो गए। इनमें एक बच्चा भी था, जिसकी उम्र 14 साल थी। ब्लड कैंसर और गांठों के कैंसर के अलावा यह तकनीक ए प्लास्टिक अनीमिया के मरीजों के लिए भी कारगर है। अप्लास्टिक अनीमिया में मरीज का इम्यून सिस्टम उसी के बोन मैरो के खिलाफ काम करने लगता है, जिससे मरीज का खून बनना बंद हो जाता है।
कैसे किया जाता बौन मैरो ट्रांसप्लांट
बोन मैरो हड्डियों में पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है, जो शरीर में खून बनाने का काम करता है। ब्लड कैंसर होने, गांठों का कैंसर होने व अप्लास्टिक एनीमिया होने पर मरीज का बोन मैरो सिस्टम काफी हद तक डैमेज हो जाता है। ट्रांसप्लांट के दौरान मरीज के भाई बहन में से जिसका बोन मैरो मरीज से मैच कर जाता है, उसी से ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है और मरीज ठीक हो जाता है।
फोर्टिस अस्पताल के डायरेक्टर अशोक चौदरिया का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के करीब 9 महीने बाद पेशेंट बिल्कुल नॉर्मल हो जाता है। हां पहले की अपेक्षा उसे थोड़ा नियमित खान पान व इन्फेक्शन आदि से थोड़ा बचाव करने की जरूरत तो होती है, लेकिन उसे रेग्युलर दवाएं खाने व अन्य कोई इलाज कराने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती। इसमें मरीज की कंडीशन के हिसाब से खर्च आता है। मौटे तौर पर इसमें करीब 10 से 15 लाख का खर्च आता है।
फोर्टिस अस्पताल के डायरेक्टर अशोक चौदरिया का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के करीब 9 महीने बाद पेशेंट बिल्कुल नॉर्मल हो जाता है। हां पहले की अपेक्षा उसे थोड़ा नियमित खान पान व इन्फेक्शन आदि से थोड़ा बचाव करने की जरूरत तो होती है, लेकिन उसे रेग्युलर दवाएं खाने व अन्य कोई इलाज कराने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती। इसमें मरीज की कंडीशन के हिसाब से खर्च आता है। मौटे तौर पर इसमें करीब 10 से 15 लाख का खर्च आता है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद बदल जाता है डीएनए भी
डॉ. चौदरिया ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद मरीज का डीएनए भी बदल जाता है। जिसका बोन मैरो मरीज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, 9 महीने बाद डोनर का ही डीएनए ही मरीज की बॉडी में डिवेलप हो जाता है। जैसे कि किसी में फीमेल में मेल का बोन मैरो इस्तेमाल किया गया है तो ब्लड ग्रुप डिवेलप होने के साथ ही इनका डीएनए भी मेल के डीएनए के समान ही हो जाएगा। हालांकि महिलाओं की प्रेगनेंसी व अन्य शारीरिक रचनाओं पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। सब पहले की तरह नॉर्मल होता है।
(नवभारत टाइम्स,नोएडा,4.2.11)
डॉ. चौदरिया ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद मरीज का डीएनए भी बदल जाता है। जिसका बोन मैरो मरीज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, 9 महीने बाद डोनर का ही डीएनए ही मरीज की बॉडी में डिवेलप हो जाता है। जैसे कि किसी में फीमेल में मेल का बोन मैरो इस्तेमाल किया गया है तो ब्लड ग्रुप डिवेलप होने के साथ ही इनका डीएनए भी मेल के डीएनए के समान ही हो जाएगा। हालांकि महिलाओं की प्रेगनेंसी व अन्य शारीरिक रचनाओं पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। सब पहले की तरह नॉर्मल होता है।
(नवभारत टाइम्स,नोएडा,4.2.11)
उत्साहजनक समाचार।
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ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
GOOD INFORMATION SIR.
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