स्तन कैंसर को शुरूआत में पकड़ लिया जाए,तो इलाज़ कराना आसान हो जाता है। स्तन की स्वयं जांच करने का प्रशिक्षण 40 साल के बाद हर महिला को मिलना चाहिए। अधेड़ावस्था प्रारंभ होने के साथ ही मेमोग्राफी और ब्रेस्ट स्कैनिंग जैसी जांचें हर साल करानी चाहिए।
स्तन अनगिनत कोशिकाओं से मिल बना है। स्तन बनने की शुरुआत मासिक धर्म की शुरुआत के साथ होती है। इसका संबंध एस्ट्रोजेन नामक हारमोन से होता है। स्तन बनने की अवस्था से लेकर माहवारी बंद होने की अवस्था तक स्तन कोशिकाओं में निरंतर बदलाव की प्रक्रिया चलती रहती है। स्तन के सामान्य परिवर्तन शऱीर के हार्मोन में परिवर्तन के साथ-साथ होते हैं, जैसे कि स्तनों में माहवारी के पहले भारीपन आना तथा थोड़ा-थोड़ा दर्द होना। गर्भावस्था के दौरान आकार में बढ़ोतरी होना, माहवारी बंद होने के दौरान आकार में छोटा हो जाना एवं निपल को दबाने पर कई बार हल्के पीले रंग का पानी आना एक सामान्य बदलाव का हिस्सा है। यह सारे सामान्य परिवर्तन कोशिकाओं में निरंतर होते रहते हैं जोकि हार्मोन्स कोशिकाओं के रिसेप्टर एवं जीन्स (आनुवांशिक कोशिकाएं) के तालमेल से एक व्यवस्थित एवं अनुशासित समूह की तरह आजीवन कार्य करते रहते हैं। निरंतर चलने वाली प्रक्रिया में अगर थो़ड़ा भी बदलाव आता है या कोशिकाएं अनियंत्रित हो जाती हैं तो इसके फल स्वरूप स्तन में गांठ या निपल से खून के रिसाव के रूप में सामने आती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ८० प्रतिशत तक स्तन में होने वाले असामान्य परिवर्तन कैंसर कारक नहीं होते है। स्तन में असामान्य बदलाव को लेकर यदि १०० महिलाएं चिकित्सक के पास जाती हैं तो इसमें से सिर्फ ३-५ महिलाओं को ही स्तन कैंसर की आशंका होती है।
कैंसर शब्द हमारे अंतर्मन में केवल एक छाप छोड़ता है-यह एक ऐसी बीमारी है जो पूरा इलाज कराने के बाद फिर से हो सकती है। जिसका पूरी तरह निदान संभव नहीं है। पर सच्चाई कुछ और है। आज सन २००९ में यह धारणा निराधार और गलत है। स्तन कैंसर से निपटने के लिए आज हमारे पास पांच तरह के हथियार हैं। इसमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, हार्मोन थेरेपी तथा टार्गेटेड थेरेपी प्रमुख हैं। जबकि सिर्फ एक दशक पहले तक ऐसा नहीं था। अध्ययन बताते हैं कि पहले मरीज तीसरी और चौथी अवस्था में पहुंचने के बाद ही चिकित्सक तक आ पाता था। आज स्तन कैंसर के मरीज पहली अथवा दूसरी स्टेज में ही चिकित्सकीय सलाह के लिए आने लगे हैं। आमतौर पर मरीज की गाँठ २-५ सेंटीमीटर के बीच की होती है जिससे स्तन कैंसर होने के बाद भी स्तन को बचाने का ऑपरेशन किया जा सकता है। कई बार,स्तन कैंसर शुरूआती अवस्था में ही पकड़ लिया जाता है जिससे मरीज़ को कीमोथैरेपी भी देने की ज़रूरत नहीं होती। चिकित्सा विज्ञान आज इस बीमारी का पूरी तरह निदान करने में सक्षम हो गया है। इसका बहुत सारा श्रेय उन मरीजों को भी जाता है जिन्होंने स्तन कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में इलाज़ कराने की इच्छाशक्ति जाहिर की है। शोधकार्यों में ऐसे मरीज़ महत्वपूर्ण होते हैं।
क्या करें-
महिलाएं स्वयं के स्वास्थ्य के जागरूक रहें।
प्रौढ़ावस्था आने पर स्वयं स्तन परीक्षण करना सीखें।
समय-समय पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ की देखरेख में स्तन परीक्षण सहित शरीर के अन्य हिस्सों की जाँचें करवाएं।
याद रखें कि ३० साल की उम्र होने से पहले माँ बनकर एक वर्ष तक स्तनपान कराने से स्तन कैंसर का जोखिम कम हो जाता है।
(डॉ. फरीद खान,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक 2011)
स्तन कैंसर के बारे में ही,हिंदुस्तान,दिल्ली संस्करण में 1 फरवरी,2011 को प्रकाशित निशि भाट के आलेख का यह अंश भी देखिएः
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ऑनकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पी.के. झुल्का कहते हैं कि सही समय पर पहचान के बाद स्तन कैंसर का शत प्रतिशत इलाज है। अधिक उम्र में विवाह, स्तनपान न कराना व सिगरेट एल्कोहल आदि के प्रयोग से महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा चार गुना बढ़ा गया है।
हाल ही में स्तन कैंसर के कारक जीन बीआरसीए वन व बीआरसीए टू की पहचान की गई। मैमोग्राफी व एफएनएसी जांच के बाद सर्जरी कर महिलाओं को बीमारी मुक्त जीवन दिया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में पुरुषों में भी स्तन कैंसर की बीमारी देखी गई है, जिसे गाइनिकॉस्मेटिया कहा जाता है। पुरुषों के स्तन कैंसर का भी इलाज ऐसे ही संभव है
बीस वर्ष की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आईने में देखिए। नीचे ब्रा-लाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती हैं।) देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।
स्तन कैंसर के बारे में ही,हिंदुस्तान,दिल्ली संस्करण में 1 फरवरी,2011 को प्रकाशित निशि भाट के आलेख का यह अंश भी देखिएः
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ऑनकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पी.के. झुल्का कहते हैं कि सही समय पर पहचान के बाद स्तन कैंसर का शत प्रतिशत इलाज है। अधिक उम्र में विवाह, स्तनपान न कराना व सिगरेट एल्कोहल आदि के प्रयोग से महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा चार गुना बढ़ा गया है।
हाल ही में स्तन कैंसर के कारक जीन बीआरसीए वन व बीआरसीए टू की पहचान की गई। मैमोग्राफी व एफएनएसी जांच के बाद सर्जरी कर महिलाओं को बीमारी मुक्त जीवन दिया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में पुरुषों में भी स्तन कैंसर की बीमारी देखी गई है, जिसे गाइनिकॉस्मेटिया कहा जाता है। पुरुषों के स्तन कैंसर का भी इलाज ऐसे ही संभव है
बीस वर्ष की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन के बीच किसी दिन (बुजुर्ग महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आईने में देखिए। नीचे ब्रा-लाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन अंगुलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो। (यह जांच शॉवर में या लेट कर भी कर सकती हैं।) देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।