शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

अब क्यों नहीं हो पाती नॉर्मल डिलीवरी?

पड़ोस वाले शर्माजी की बड़ी बहू सरला हो या फिर पीछे वाले बंगले में रहने वाले चटर्जी बाबू की बेटी, हर दूसरे घर में आने वाले नन्हे मेहमान को लेकर अपनों के चेहरे पर खुशियों के साथ-साथ परेशानियों की लकीर भी आज साफ नजर आती हैं। आखिर क्या बदल गया है आज? कौन-सी बात है जो आज की गर्भवती महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी से दूर कर रहा है? इस संबंध में फोनिक्स अस्पताल से जुड़ी आईवीएफ विषेशज्ञ डॉ़ शिवानी सचदेव गौड़ की मानें तो महिलाओं के लिए गर्भाधारण की सही उम्र 21 से 35 साल है, लेकिन करियर और शादी में देरी के कारण उनकी गर्भधारण संबंधी प्रक्रिया में परेशानी देखने को मिल रही हैं।

गर्भाधारण से जुड़ी जानकारियां
विशेषज्ञों की मानें तो उम्र के साथ महिलाओं में गर्भाधारण को लेकर परेशानियां भी बढ़ती जाती हैं। जहां 19 से 25 साल तक की महिलाओं में प्रतिमाह 50 प्रतिशत तक प्रेगनेंसी के चांसेज रहते हैं, वहीं 30 साल की उम्र के बाद इसके चांसेज 30 प्रतिशत रह जाते हैं और गर्भपात की दर बढ़ती जाती है और 35 साल की महिलाओं के गर्भवती होने के चांसेज 20 साल की महिला के मुकाबले आधी हो जाती है।

डॉ़ शिवानी के अनुसार तकरीबन 40 प्रतिशत जोड़ों को स्पर्म से जुड़ी समस्याओं की वजह से गर्भाधारण की समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। ऐसे जोड़ों को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि संभोग के दौरान शुक्राणु और अंडाणु के मिलने के लिए 24 घंटे तक का समय ही रखें, ताकि गर्भाधारण में किसी भी तरह की समस्या न आए। वैसी महिलाएं जिन्हें 21 से कम या 35 से ज्यादा दिनों के अंतर में पीरियड्स हो रहे हों, को जल्द से जल्द किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।

अंधविश्वास
तमाम बातों के बावजूद यह भी एक मिथक है कि बड़ी उम्र में महिलाओं को सिजेरियन होना लाजिमी है। पर सिजेरियन बेबी का एक अन्य मुख्य कारण पंडितों पर किए जाने वाला अंधविश्वास भी है। तेज दिमाग और बेहतर भविष्य वाले बच्चों की चाहत में पंडितों के दिशा निर्देश से उनके जन्म को लेकर सही समय तय कर लिया जाता है। तय समय पर नॉर्मल डिलीवरी न होने पर माता-पिता सिजेरियन करवाने तक के लिए जोर डालने लगते हैं। जबकि इसके लिए महत्वपूर्ण सलाह केवल चिकित्सकों से ही ली जानी चाहिए।

मोटापा व अन्य बीमारियां
नॉर्मल डिलीवरी न होने की एक अन्य वजह गर्भवती महिला के मोटापे का शिकार होना भी है। गर्भावस्था के दौरान या उससे पहले युवती का अधिक मोटा होना बच्चों के जन्म के समय परेशानी का कारण बन जाता है। यही वजह है कि मोटापे पर नियंत्रण रखने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा यदि मां को मधुमेह, थॉयराइड या फिर उच्च रक्तचाप हो तो भी नॉर्मल डिलीवरी में परेशानियां आती ही हैं। गर्भाधारण से लेकर डिलीवरी तक बीच-बीच में गर्भवती महिला को डॉक्टर की निगरानी में अल्ट्रासाउंड करवाते रहना चाहिए। इससे पहली बार मां बनने जा रही महिलाएं प्री-मैच्योर डिलीवरी और प्रेगनेंसी के दौरान एबनार्मल ब्लीडिंग आदि की समस्याओं से काफी हद तक मुक्त रह सकती हैं।

सावधानियां
अक्सर महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहती हैं। शादी के बाद में फिट रहना उनके लिए और जरूरी हो जाता है। इसके लिए जरूरी है कि वे
- नियमित रूप से व्यायाम अवश्य करें।
- तनावमुक्त रहने की कोशिश करें।
- जहां तक हो सके, जंक फूड का सेवन न करें।
- शराब या सिगरेट से बचें।
- नियमित रूप से योग, ध्यान आदि करें।
नोट - डॉ़ शिवानी कहती हैं कि हर गर्भवती महिला को फॉलिक एसिड की गोलियां अलग से लेनी चाहिए। विटामिन की ये अतिरिक्त गोलियां गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद जरूरी हैं(हिंदुस्तान,दिल्ली,15.2.11)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अब क्यों नहीं हो पाती नॉर्मल डिलीवरी?

    एक बहुत बड़ा कारण आज कल के डाक्टर भी है ... जिनको हर मरीज के रूप में केवल नोटों के बण्डल ही दिखते है ... वह हर हाल में मरीज के घर वालों को मजबूर कर देते है कि वो सिजेरियन करवाने के लिए तैयार हो जाए ... और फिर नॉर्मल डिलीवरी में कमाई भी तो नहीं होती ! मैनपुरी में आये दिन यही देखता हूँ ... खास कर एक डाक्टर तो यहाँ मशहूर है केवल सिजेरियन करवाने के मामले में ! काफी बार उसका और मिडिया का आमना सामना भी हो चूका है और उस पर केस भी चल रहा है !

    वैसे आपने काफी बढ़िया जानकारी दी इस आलेख के माध्यम से ... आभार !

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  2. सभी डॉक्टर को एक तराजू में तोलना ठीक नहीं . मातृत्व की बढती आयु ,बढ़ता तनाव और घटता शारीरिक श्र्रम भी नार्मल डिलीवरी में बाधक है .

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  3. सिजेरियन डिलेवरी सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों में होती है सरकारी अस्पतालों में आज भी ज्यादा तर सामान्य डिलेवरी ही होती है ये डाक्टरों का पैसे कमाने का खेल ज्यादा है |

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