वाल्व सर्जरी के क्षेत्र में रॉस-टू तकनीक का सहारा लेकर जीबी पंत अस्पताल के कार्डिएक थोरासिक एंड वस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग ने चिकित्सा जगत में नया अध्याय जोड़ दिया है। विभाग प्रमुख का कहना है कि देश में वर्ष 1987 में एम्स द्वारा की गई सर्जरी के बाद दूसरी बार इस तकनीक की मदद से सर्जरी की गई है। इसमें मैकेनिकल वाल्व की जगह मरीज के शरीर से ही वाल्व निकालकर सर्जरी को सफल बनाया गया है। जामा मस्जिद इलाके में रहने वाले निसार अहमद (35) की वाल्व खराब हो गई थी। सीटीवीएस प्रमुख डाक्टर डीके सत्संगी ने बताया कि मरीज की कम उम्र को देखते हुए इस तकनीक का सहारा लिया गया। आंकड़े बताते हैं कि मैकेनिकल वाल्व की औसत उम्र 15 साल होता है और हमेशा दवा खानी पड़ती है। इस मरीज को मैकेनिकल वाल्व लगाने पर उसे पचास साल की उम्र में फिर से हार्ट की दूसरी सर्जरी से गुजरना पड़ता जो खतरनाक होता है। इसलिए सर्जरी में रॉस टू तकनीक का सहारा लिया, जो सफल रहा।
मरीज के शरीर से ही निकाला पाल्मोनरी वाल्व :
डॉ. सत्संगी ने बताया कि वाल्व लगाने के लिए मरीज के शरीर से ही पाल्मोनरी वाल्व निकाला गया। इसे 27 एमएम (व्यास) साइज की वाल्व बनाना था, जिसे तैयार करने के लिए रॉस टू तकनीक का सहारा लिया गया। वाल्व को सेट करने के लिए होल्डर की जरूरत थी, ताकि वाल्व अपने स्थान पर टिक सके। हमने अस्पताल में ही ड्राइकॉन कपड़े का अलग अलग साइज का होल्डर तैयार किया। यह अस्पताल की अपनी तकनीक है। फिर वाल्व को शरीर के बाहर ही होल्डर के साथ सेट किया गया, जो लंबी प्रक्रिया थी। तब जाकर माइट्रल वाल्व की जगह उसे लगाया गया। पिछले सप्ताह हुई सर्जरी के बाद से मरीज आईसीयू में है, मरीज पूरी तरह ठीक है। एक दो दिन में उसे अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है।
न्यूनतम खर्च में बेहतर रिजल्ट देता है रॉस टू तकनीक :
डॉ. सत्संगी का कहना है कि रॉस टू तकनीक न्यूनतम खर्च में बेहतर रिजल्ट देता है। इससे मरीजों की परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। मैकेनिकल वाल्व की कीमत 60 हजार से एक लाख तक होती है, इस खर्च से मरीज बच जाता है। मैकेनिकल वाल्व लगाने से दूसरी सर्जरी की भी नौबत आ सकती है। लेकिन रॉस टू तकनीक से सर्जरी में भले समय ज्यादा लगता है, लेकिन सफलता का दर बेहतर हो सकता है। बढ़ती महंगाई और इसके रिजल्ट को देखते हुए इसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
संक्रमण की वजह से खराब होते हैं वाल्व :
सर्जन साकेत के अनुसार, खांसी, सर्दी, वायरल इंफेक्शन का असर लीवर और वाल्व पर भी होता है। यह सामान्य समस्या है जो आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गो में ज्यादा होता है। संक्रमण की वजह से वाल्व धीरे धीरे खराब हो जाता है। ऐसी स्थिति में इसे बदलना ही एकमात्र विकल्प होता है। वाल्व का काम एक दिशा में रक्त की आपूर्ति करना होता है(दैनिक जागरण,दिल्ली,11.2.11)।
इस तरह की surgery कितनी आम है किसी भी अस्पताल में...शायद कम है....अच्छी बात है अगर इस को ज्यादा आम किया जाए.. इसमें क्या problem है जिस वजह से ये मुश्किल होता है?
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