मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

कोलाइटिस

आंत की सूजन, जलन या दूसरी तरह की तमाम बीमारियों को कोलाइटिस कहते हैं। आमतौर पर पेट में होने वाली ऐंठन, दस्त, लगातार डायरिया रहना, नींद न आना, बुखार और वजन कम होना कोलाइटिस के लक्षण हैं। गर्भ निरोधक गोलियों का इस्तेमाल, खाने पीने में अनियमितता और स्मोकिंग भी कोलाइटिस की वजह बन सकते हैं। चूंकि ये कई वजहों से हो सकता है, इसलिए इसके इलाज के लिए भी अलग-अलग तरीक़े होते हैं। इलाज का पहला स्टेप ही यही है कि इसका पता लग जाए कि कोलाइटिस की वजह क्या है। एक तरह की कोलाइटिस बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के अतिक्रमण से होती है। अगर कोलाइटिस की वजह सालमोनला या कोई दूसरा बैक्टीरिया है तो इससे निजात पाने के लिए एंटीबायोटिक्स का सहारा लिया जा सकता है। एंटीबायोटिक्स का सहारा कोलाइटिस के इलाज के साथ ही कुछ मामलों में इसकी पहचान के लिए भी लिया जाता है। परजीवी या अमीबा से होने वाले कोलाइटिस में एंटीबायटिक के अलावा एंटी पैरासाइट दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। वायरस से होने वाले कोलाइटिस का इलाज थोडा मुश्किल होता है।
वायरस से होने वाले कोलाइटिस में मरीज के शरीर में पानी कम होने की शिकायत होती है। यह ज्यादातर बच्चों और बुजुर्गों को होता है। इसमें मरीज को ज्यादा पानी पीने की सलाह दी जाती है। अगर किसी के साथ समस्या बढ़ जाती है तो फिर उसे भर्ती कर नसों के जरिए ग्लूकोज दिया जाता है। कई मामलों में पहले से ही पता लगा जाता है कि ये कोलाइटिस के लक्षण हैं। जैसे आंत की बीमारी, जिसे क्रोन डिजीस के नाम से जानते हैं, में आंत में लगातार समस्या बनी रहती है। इससे लंबे समय तक प्रभावित रहने वाले मरीज की आंत में छेद भी हो जाते हैं। अगर किसी व्यक्ति में वायरस कोलाइटिस या आंत में छेद जैसे लक्षणों की आशंका होती है तो उसे तुरंत अपना इलाज कराना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को डायरिया (दस्त) और दो दिन से ज्यादा बुखार रहता है या साथ ही पेट में दर्द भी उठता है तो ये कोलाइटिस हो सकता है(हिंदुस्तान,दिल्ली,20.2.11)।

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