हर कोई शरमाता है। यहां तक कि बेशर्म कहे जाने वाले लोग भी शरमाते हैं। रोचक बात है कि शरमाना मानव जाति का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। शर्म या लज्जा को स्त्री का जेवर कहा गया है। शरमाते पुरुष भी हैं। निश्चित ही यह मानव भावनाओं में एक है जो चेहरे पर प्रकट होती है। सो हर कोई शरमाता है, मगर जरूरत से ज्यादा शरमाना भाव की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक गंभीर रोग है।
एक लम्बे समय तक इसे सहज शारीरिक क्रिया माना गया तो कई महत्वपूर्ण और रोचक गुत्थियां खुलीं। शर्म से जुड़े तथ्यों ने ही इसे रोग की श्रेणी में ला खड़ा किया और नाम दिया गया एरोथ्रोफोबिया। स्नायुतंत्र से संबंधित शर्म मस्तिष्क के निचले भाग हाइपोथैलमस द्वारा प्रभावित होती है। जब कोई शरमाता है तो हाइपोथैलमस हरकत में आ जाता है। यही निर्देश रक्त वाहिकाओं तक जा पहुंचता है, परिणामस्वरूप रक्त वाहिकाएं फैलने या सिकुड़ने लगती हैं। यह स्थिति चेहरे पर भाव परिवर्तन लाती है। इससे आंखों की पलकें विशेष अंदाज में उठने-गिरने लगती हैं। इसके अलावा, गालों के उभार पर एक थिरकन पैदा हो जाती है। इसी कारण चेहरे पर लालिमा आ जाती है। अंग्रेजी में इसे ब्लश करना कहा जाता है। सामान्य तौर पर यह सब क्षणिक होता है,मगर रोग की स्थिति में यह देर तक रहता है और बार-बार होता है।
रोगी इसमें आंतरिक आनंद की अनुभूति करता है,सो बार-बार शरमाना चाहता है और रोग बढ़ता जाता है। शरम के लक्षण शरीर में चेहरे पर ही नहीं, कई अन्य रूपों में भी देखे जा सकते हैं। मसलन,शरम की स्थिति में लड़कियां आंखें झुकाए पैर के अंगूठ से धरती या फिर फर्श को कुरेदने लगती हैं, बेवजह आंचल संवारने लगती हैं, उंगली पर दुपट्टा लपेटने लगती हैं। होठों पर उंगली रखना या फिर मुंह से उंगली दबा लेना भी शरम के लक्षण हैं। यही नहीं, शर्मसार होती लड़कियां अपना चेहरा भी छिपा लेती हैं। इस कृत्य से वह अपनी शर्म छुपाती नजर आती हैं, मगर हकीकत में यह शर्म को और उभारना है। चेहरे पर आई शर्म छिपाने से नहीं छिपती है बल्कि इस बात का स्पष्ट करती है कि शर्म का अतिरेक है, लाख छिपाने पर भी नहीं छिपेगा। कुछ बच्चे तो शरमाने के साथ ही भागने और छिपने लगते हैं। यह एक मस्तिष्क से जुड़ी प्रक्रिया है जो एक तरह से शरीर की गतिविधि को असामान्य बना देता है। शरमाने वाला स्वयं नहीं जान पाता है कि क्या हो गया। कहना न होगा कि वह इस दशा में अपने शरीर से अपन नियंत्रण खो बैठता है। मगर यह बार-बार होता रहे तो शरीर में ठहराव खत्म होने लगता है,अजीबो-गरीब विकृतियां पैदा हो जाती हैं(दुर्गेश शर्मा,हिंदुस्तान,दिल्ली,21.2.11)।
अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुमार राधारमण जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
अरे ! हया इतनी ख़तरनाक बीमारी भी हो सकती है ?
शर्माना कहीं रोग न बन जाए बहुत जानकारी वर्द्धक आलेख है । आपको भी और दुर्गेश शर्मा जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद !
♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण किया आपने वजह-बेवजह शरमाने का.
कोई भी भाव-विशेष यदि व्यक्तित्व को हीनता से ग्रस लेता है ... वह रोग बन ही जाता है.
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Hi Your Work very Good . I Like And Appreciate Keep it up .
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Neha Varma