रविवार, 6 फ़रवरी 2011

दुःख का लक्षण है भूख-प्यास और नींद का अभाव

हम जानते हैं कि सुख और दुख धूप-छांव की तरह आते-जाते रहते हैं। ठीक-ठीक याद कीजिए आपको दुख का समय, सुख की अपेक्षा अधिक लंबा लगता है न? यह इसलिए कि हमारी फितरत ही दुख को पकड़कर रखने की है। सुख की यादें हम तुरंत भूल जाते हैं, लेकिन दुख की यादें जिंदगीभर पकड़े रखते हैं। इससे हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सीधा प्रभावित होता है। हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज तथा यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने मनुष्य पर दुखों के बढ़ते बोझ और उसके प्रभावों पर शोध किया, जिसमें जिंदगी पर दुख के बोझ को कम करने के लिए कई आसान उपाय सुझाए गए हैं।

जब भी हम दु:ख से पीड़ित होते हैं तो उसकी यादें हमारे मस्तिष्क में काफी समय तक रहती हैं और हमें परेशान करती हैं। इस विषय पर जितने भी शोध हुए हैं, वे भी यही बताते हैं कि ये दु:खद यादें हमारे शरीर के साथ सपनों को भी प्रभावित करती हैं। दरअसल, मस्तिष्क की तंत्रिकाएं दु:खद क्षणों को याद कर संकुचित होने लगती हैं, जिससे शरीर की सामान्य क्रियाएं प्रभावित होती हैं। विभिन्न परीक्षणों में पाया गया है कि नींद और दु:ख, परस्पर विरोधी हैं। अच्छी नींद के लिए सुखद क्षणों का मस्तिष्क में होना, बेहद आवश्यक है। हमें खुशी पाने के लिए दु:ख के साथ लड़ना होगा अन्यथा दु:खद यादें हमारे मस्तिष्क को बर्बाद कर सकती हैं। हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट बताती है कि छोटे से छोटा दु:ख भी तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है। हम तनाव में रहते हैं और यह तनाव जब बढ़ने लगता है तो चेहरे पर दिखने लगता है और आंतरिक अंगों तक को प्रभावित करता है। भूख मरने लगती है, स्वास्थ्य बिगड़ता है।


यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के सामाजिक मनोविज्ञान की रिपोर्ट, इस विषय पर काफी महत्वपूर्ण है। यहां कार्यक्रम निदेशक प्रो. जॉन कैसिप्पी के अनुसार, ‘गहरे दु:ख से पीड़ित व्यक्ति स्वयं को एकाकी मानता है और असहाय महसूस करता है। वह धीरे-धीरे समाज से कटने लगता है। ऐसे में जहां से उसे सहानुभूति मिलती है, वह उसी ओर आकर्षित होने लगता है। ऐसे में भटकाव और अस्थिरता, होती है। किसी को सहारा बनाकर, दु:ख को कम करना कोई स्थाई समाधान नहीं है’। रिपोर्ट के अनुसार, अगर आप किसी गहरे दु:ख से पीड़ित हैं तो ऐसा जज्बा पैदा कीजिए जो आपको उबारे और स्थिति से लड़ने का हौसला दे। 

चिकित्सीय अध्ययन बताते हैं कि गहन दु:ख की स्थिति में पहली चोट भूख पर पड़ती है, खाने-पीने का मन नहीं करता। इस तरह, आपमें दु:ख से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है और आप अनिद्रा का शिकार होने लगते हैं(डॉ. कुलदीप शर्मा,हिंदुस्तान,दिल्ली,5.2.11)।

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