बच्चेदानी के मुँह (सर्विक्स) या गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर के ८० प्रतिशत मामले विकासशील देशों में पाए जाते हैं। ज्यादातर मामलों में बीमारी की पहचान अत्यधिक बढ़ जाने पर मर्ज के लाइलाज होने के बाद होती है। सही समय पर इसकी पहचान, निदान व उपचार मिले तो न केवल इससे शत-प्रतिशत रोगमुक्त हुआ जा सकता है बल्कि इस जानलेवा कैंसर से बचाव भी संभव है। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के ९९.७ प्रतिशत मामलों में इसके लिए एचपीवी विषाणु (ह्यूमन पैपीलोमा वायरस) को जिम्मेदार पाया गया है। अतः एचपीवी संक्रमण इस कैंसर के लिए सबसे बड़ा जोखिम घटक है। इस वायरस संक्रमण की सफलतापूर्वक रोकथाम के लिए अब एचपीवी वैक्सीन उपलब्ध हो गई है।
वीआईए टेस्ट
इसमें एसिटिक एसिड के ३ से ५ प्रतिशत तीव्रता के घोल को योनि मार्ग एवं गर्भाशय ग्रीवा पर लगाकर कम से कम एक मिनट पश्चात तेज रोशनी में सीधे आँखों से देखा जाता है। एसिटिक एसिड की क्रिया से रोगग्रस्त अथवा असामान्य ऊतकों का रंग बदल जाता है, जो चिकित्सक द्वारा देखकर पहचान लिया जाता है।
बचाव के लिए क्या करें-
पेप स्मीयर : इस जांच से गर्भाशय के कैंसर को शुरुआती अवस्था में पकड़ा जा सकता है। इसका पूर्ण उपचार भी संभव है। पेप स्मीयर सेंपल लेना एक अत्यंत सरल प्रक्रिया है जिसमें मात्र एक रुई के फोहे द्वारा योनि मार्ग से सेम्पल लेकर उसे प्रयोगशाला में कोशीय (साइटोलॉजी) जाँच हेतु भेज दिया जाता है। सभी महिलाओं में इस जाँच को वर्ष में एक बार किया जाना चाहिए। ३५ से ६४ वर्ष की आयु की महिलाओं को तो नियमित रूप से यह जाँच वर्ष में एक बार करा ही लेना चाहिए। इसी के साथ यदि कोई महिला मरीज अन्य किसी समस्या जैसे परिवार नियोजन, गर्भपात, प्रसूति आदि को लेकर भी डॉक्टर के पास आती है तो उसकी पेप स्मीयर जाँच भी साथ में कर लेना चाहिए। मात्र इसी साधारण जाँच से सर्विक्स के कैंसर का प्रभावी नियंत्रण संभव है।
कॉल्पोस्कोपी : कॉल्पोस्कोपी एक विशेष प्रकार का उपकरण होता है जिससे छोटे से छोटे ऊतक को बड़ा कर देखा जा सकता है। इस प्रकार कॉल्पोस्कोपी द्वारा योनि व गर्भाशय ग्रीवा में कैंसर की कोशा को अत्यंत प्रारंभिक व सूक्ष्म अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है। यदि पेप स्मीयर या अन्य किसी स्क्रीनिंग जाँच में कोई खराबी मिले, लगातार सफेद पानी (श्वेत प्रदर) जाने की शिकायत हो, अत्यधिक मासिक स्राव हो या माहवारी बंद होने के बाद रक्तस्राव होने लगे तो कॉल्पोस्कोपी कराना जरूरी है। इसके अलावा सर्विक्स के कैंसर के ऑपरेशन के बाद कॉल्पोस्कोपी द्वारा यह भी देखा जाता है कि कहीं कैंसर का कोई हिस्सा छूट तो नहीं गया है।
सर्विक्स के कैंसर का टीका
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से बचाव के लिए अब एक अत्यंत प्रभावशाली टीका भी उपलब्ध है। इस टीके की मदद से सर्विक्स के कैंसर से बचा जा सकता है। एचपीवी टीका दो प्रकार का होता है। एक बायवेलेंट और दूसरा क्वाड्रिवेलेंट। बायवेलेंट टीका १० से १५ वर्ष के आयु वर्ग एवं ट्रॉयवेलेंट टीका ९ से २६ वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं के लिए उपयुक्त पाया गया है। टीकाकरण के लिए सबसे उचित आयु १२ से १६ वर्ष होती है। बायवेलेंट टीके की ३ खुराकें (०, १ व ६ माह पर) व क्वाड्रिवेलेंट टीके की ३ खुराकें (०, २ व ६ माह पर) मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है। पहली दो खुराकों के बीच कम से कम ४ सप्ताह व दूसरी व तीसरी खुराक के बीच १२ सप्ताह का अंतर रखना जरूरी है। जिन महिलाओं को पहले भी कैंसर हो चुका हो, उन्हें भी यह टीका दिया जा सकता है। गर्भवती महिलाओं को यह टीका नहीं दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार गर्भधारण की योजना बनाते वक्त भी यह ध्यान रखें कि या तो टीके की सभी खुराकें पूरी होने के बाद गर्भधारण करें या गर्भावस्था पूर्ण होने के पश्चात ही टीके लगवाएँ।
स्तनपान कराने वाली महिलाएँ भी यह टीका लगवा सकती हैं। जिन महिलाओं को किसी अन्य टीके से पूर्व में रिएक्शन (प्रतिकूल क्रिया) हुई हो, उन्हें यह टीका भी नहीं लगाना चाहिए। कैंसर होने पर इसके उपचार में लगने वाले खर्च व शारीरिक कष्ट की तुलना में इससे बचाव के टीके लगवा लेना निश्चित रूप से फायदे का सौदा है।
1925 में विकसित हुई थी कॉल्पोस्कोपी
कॉल्पोस्कोपी प्रोसीजर १९२५ में एक जर्मन फीजिसिस्ट डॉ. हाँस हिंसेलमान द्वारा विकसित की गई थी। योनिद्वार अथवा गर्भाशय ग्रीवा के द्वार तक फैले क्षेत्र में ऊतकों में कैंसर से पहले तथा बाद की स्थिति का आँकलन इस उपकरण से किया जाता है। कॉल्पोस्कोप से इस क्षेत्र का मैग्निफाइड व्यू देखा जा सकता है। बड़ा कर के देखने पर सामान्य एवं कैंसरग्रस्त ऊतक में फर्क मालूम किया जा सकता है। यहीं से बायोप्सी के लिए भी ऊतक निकाले जा सकते हैं। कॉल्पोस्कोपी उपकरण का मुख्य उद्देश्य सर्विक्स के कैंसर की रोकथाम करना है। इसके जरिए कैंसर की शुरुआत होने से पहले दिख रहे लक्षणों को पकड़ा जा सकता है। बलात्कार या जबरदस्ती बनाए गए यौन संबंधों के प्रमाण एकत्रित करने में कॉल्पोस्कोपी की मदद ली जाती है।
(डॉ. मंजूश्री भंडारी,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक 2011)
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से बचाव के लिए अब एक अत्यंत प्रभावशाली टीका भी उपलब्ध है। इस टीके की मदद से सर्विक्स के कैंसर से बचा जा सकता है। एचपीवी टीका दो प्रकार का होता है। एक बायवेलेंट और दूसरा क्वाड्रिवेलेंट। बायवेलेंट टीका १० से १५ वर्ष के आयु वर्ग एवं ट्रॉयवेलेंट टीका ९ से २६ वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं के लिए उपयुक्त पाया गया है। टीकाकरण के लिए सबसे उचित आयु १२ से १६ वर्ष होती है। बायवेलेंट टीके की ३ खुराकें (०, १ व ६ माह पर) व क्वाड्रिवेलेंट टीके की ३ खुराकें (०, २ व ६ माह पर) मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है। पहली दो खुराकों के बीच कम से कम ४ सप्ताह व दूसरी व तीसरी खुराक के बीच १२ सप्ताह का अंतर रखना जरूरी है। जिन महिलाओं को पहले भी कैंसर हो चुका हो, उन्हें भी यह टीका दिया जा सकता है। गर्भवती महिलाओं को यह टीका नहीं दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार गर्भधारण की योजना बनाते वक्त भी यह ध्यान रखें कि या तो टीके की सभी खुराकें पूरी होने के बाद गर्भधारण करें या गर्भावस्था पूर्ण होने के पश्चात ही टीके लगवाएँ।
स्तनपान कराने वाली महिलाएँ भी यह टीका लगवा सकती हैं। जिन महिलाओं को किसी अन्य टीके से पूर्व में रिएक्शन (प्रतिकूल क्रिया) हुई हो, उन्हें यह टीका भी नहीं लगाना चाहिए। कैंसर होने पर इसके उपचार में लगने वाले खर्च व शारीरिक कष्ट की तुलना में इससे बचाव के टीके लगवा लेना निश्चित रूप से फायदे का सौदा है।
1925 में विकसित हुई थी कॉल्पोस्कोपी
कॉल्पोस्कोपी प्रोसीजर १९२५ में एक जर्मन फीजिसिस्ट डॉ. हाँस हिंसेलमान द्वारा विकसित की गई थी। योनिद्वार अथवा गर्भाशय ग्रीवा के द्वार तक फैले क्षेत्र में ऊतकों में कैंसर से पहले तथा बाद की स्थिति का आँकलन इस उपकरण से किया जाता है। कॉल्पोस्कोप से इस क्षेत्र का मैग्निफाइड व्यू देखा जा सकता है। बड़ा कर के देखने पर सामान्य एवं कैंसरग्रस्त ऊतक में फर्क मालूम किया जा सकता है। यहीं से बायोप्सी के लिए भी ऊतक निकाले जा सकते हैं। कॉल्पोस्कोपी उपकरण का मुख्य उद्देश्य सर्विक्स के कैंसर की रोकथाम करना है। इसके जरिए कैंसर की शुरुआत होने से पहले दिख रहे लक्षणों को पकड़ा जा सकता है। बलात्कार या जबरदस्ती बनाए गए यौन संबंधों के प्रमाण एकत्रित करने में कॉल्पोस्कोपी की मदद ली जाती है।
(डॉ. मंजूश्री भंडारी,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक 2011)
इस टिके के बारे में जब मैंने अपनी डाक्टर से बात की थी तो उनका कहना था की ये टिका महिलाओ के वर्जन रहने तक ही लगा सकते है उम्र ९-५० कुछ भी हो उसके बाद नहीं क्योकि ये तब असर नहीं करेगा |
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