विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर तीसरी औरत तथा चौथा आदमी कैंसर की चपेट में आने के मुहाने पर खड़ा है। देश में अनगिनत मरीज कैंसर के माकूल इलाज की तलाश में हैं। सरकारी अस्पतालों में कैंसर के इलाज की सुविधाएँ नहीं हैं, जबकि निजी अस्पतालों में इलाज की लागत इतनी अधिक है कि पहुँच से बाहर है। १९४१ में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की स्थापना की थी, तब से अब तक कैंसर के इलाज के क्षेत्र में केवल यही एक नाम लोकस्मृति में है। इसकी वजह यह है कि इस समर्पण भाव से कोई दूसरा अस्पताल नहीं बनाया गया। यूँ अब हर बड़े शहर में कैंसर का इलाज होता है। हर साल कैंसर के दो लाख से अधिक नए मरीजों की पहचान की जाती है। सर्जरी, कीमोथेरेपि से लेकर रेडियाथेरेपि तक बीते वर्षों में कई बदलाव आए हैं। पहले मरीज की जान बचाना प्रमुखता पर होता था, कैंसरग्रस्त अंग को बचाने की कोशिश ही नहीं की जाती थी। रेडिएशन थेरेपि के क्षेत्र में नए आइसोटोप्स और कम्प्यूटराइज्ड नई मशीनें आ गई हैं, जो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं पर ही हमला करती हैं। इसी तरह कीमोथेरेपि की नई औषधियाँ नए अनुसंधानों के जरिए सामने आ रही हैं। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में १९८३ में पहला बोनमॉरो ट्रांसप्लांट हुआ था। इतना सब होने के बावजूद ७३ प्रतिशत कैंसर के मरीज एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं। पहली स्टेज में ही कैंसर को पकड़ने के लिए जितने भी उपाय अब तक किए गए हैं, पर्याप्त साबित नहीं हो रहे हैं। अधेड़ हो रही महिलाओं के गर्भाशयग्रीवा और स्तन कैंसर को शुरुआती अवस्था में ही पकड़ने के लिए ४० प्लस क्लिनिक शुरू किए गए थे लेकिन इसके नतीजे उत्साहवर्धक नहीं रहे(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक,2011)।
प्राकृतिक आहार और नियमित दिनचर्या ही बीमारियों से बचने का रामबाण है, यह बात कैंसर के संदर्भ में भी दोहराई जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कैंसर के खतरे को देखते हुए अगले दस साल में विश्व भर में कैंसर के मरीजों की संख्या दो करोड़ होने का अनुमान लगाया है, जिसके अकेले दो प्रतिशत मरीज भारत में ही होंगे।
कैंसर की यह स्थिति एकदम नहीं आई है, विशेषज्ञों की मानें तो अनियमित दिनचर्या की क्रॉनिक आदत शरीर के किसी भी अंग में कैंसरयुक्त सेल्स को अनियंत्रित गति से बढ़ा देती है। यह भी यही है कि सौ प्रमुख तरह के कैंसर में अभी केवल 30 कैंसर कारक सेल्स की पहचान हो पाई है।
क्या है कैंसर
शरीर की रोजाना क्षतिग्रस्त होने वाले सेल्स जब अनियंत्रित गति से बढ़ने लगते हैं तो सेल्स का यह समूह टय़ूमर का रूप ले लेता है, जिसे कैंसर कहा जाता है। दरअसल, स्वस्थ्य सेल्स की कमी के कारण ही खंडित होने वाली का पुनर्निर्माण नहीं हो पाता और वह संगठित रूप ले लेती है। यह समूह लिम्फ और गांठ भी हो सकता है।
कैंसर उस स्थिति में गंभीर हो जाता है जबकि प्रभावित जगह से कैंसर युक्त सेल्स शरीर के अन्य भाग, फेफड़े, आमाशय, प्रोस्टेट या फिर मस्तिष्क में पहुंचती है। एक बार संगठित होने के बाद यह सेल्स अपने तरह की हजारों सेल्स का निर्माण कर लेती हैं इस स्थिति को एंजियोजेनिस कहते हैं। ज्यामितीय क्रम में बढ़ने वाली कैंसर की संक्रमित सेल्स को खत्म करने के लिए उनके ओरिजन यानी उत्पन्न होने वाली जगह की पहचान जरूरी कही गई है, जो निरंतर संक्रमित सेल्स बनाती रहती है।
जीन भी हैं कारगर
किसी भी व्यक्ति के जीन को सेल्स के खंडित होने के लिए कारगर माना गया है, जो शरीर की जरूरी प्रक्रिया है, चार प्रमुख तरह के जीन को सेल्स के विभाजन के लिए जिम्मेदार माना गया है। कारसिनो और ऑनको जीन को सेल्स के विभाजन के लिए प्रमुख बताया गया है।
तंबाकू का सेवन, रेडिएशन का अधिक संपर्क, एचआइवी, हेपेटाइटिस व अन्य बीमारियों का संक्रमण स्वास्थ्य सेल्स के रक्षा कवच को कमजोर करता है और आसानी से कारसिनो और ऑनको का प्रभाव बढ़ने लगते हैं, इस सबके बीच ब्लड सेल्स को प्रभावित करने वाले मैलिग्नेंसी कैंसर को भी गंभीर माना गया है।
प्रारंभिक पहचान व जानकारी है जरूरी
शरीर के किसी भी हिस्से या लिम्फ में दर्द युक्त या दर्द रहित गांठ का अनुभव होने पर एमआरआई, सीटी स्कैन, पैट (पोजिशिनिंग इमेजिन टोमोग्राफी) की मदद से बीमारी की पहचान की जाती है, हालांकि इससे पहले गांठ की एफएनएसी (फाइन नीडल एस्पिरेशन सायटोलॉजी) के जरिए साधारण सेल्स से कैंसरयुक्त सेल्स को पहचाना जाता है।
आधुनिक इलाज से बंधी उम्मीद
कैंसर के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए इलाज की आधुनिक विधि को भूमिका अहम हो गई है, रेडियोथेरेपी व कीमोथेरेपी के अलावा मॉलिक्यूलर, स्टेम सेल्स, नैनोटैक्नोलॉजी व टारगेटेट दवाओं के जरिए कैंसर सेल्स को बढ़ने से पहले खत्म किया जा सकता है, जिसमें स्टेम सेल्स थेरेपी को सबसे अधिक रामबाण माना गया है, सेल्यूलर विधि से मरीज के शरीर के ही रक्त को लेकर उसकी डेंडटराइन सेल्स की मदद से मरीज में स्वास्थ्य सेल्स पहुंचाए जाते हैं।
क्या है लक्षण
- किसी भी तरह की गांठ का अनियंत्रित बढ़ना
- शरीर में तिल या फिर दाग का गहरा होना
- एक घाव का लंबे समय तक ठीक न होने
- खाने-पीने में दिक्कत लिम्फ नोड्स को बढ़ाती है
- भूख का काम रहना, वजन कम होना
- थकान का बने रहना या फिर जल्दी आलस्य आना
स्वस्थ आहार है बेहतर उपाय
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल की डायटिशियन डॉ. किरन के अनुसार.
- ब्रोकली व काले अंगूर में कैंसर रोधी तत्व सबसे अधिक हैं इसका सेवन जरूरी
- हरे सेब, टमाटर, सलाद व फाइबर युक्त खाना बचाव का बेहतर उपाय
- गरम मसाले की निर्धारित मात्र सेल्स के पुर्ननिर्माण के जरूरी है, इसलिए खाने में बताए गए अनुपात के अनुसार मसालों का प्रयोग जरूरी।
- ओमेगा थ्री युक्त तेल को सेल्स को मजबूत कराने के लिए बेहतर बताया गया है।
रोकथाम के लिये कुछ उपाय-
- हर युवा चाहे वह पुरुष हो या महिला, सही उम्र में शादी करनी चाहिए और 25 साल से पहले ही पहले बच्चों का जन्म देना चाहिए।
- महिलाओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को 5 महीने से लेकर 12 महीने तक स्तनपान कराना कैंसर की रोकथाम में एक सुरक्षात्मक प्रभाव डालता है।
- पश्चिमी खानपान की आदतों, विशेषकर फास्ट फूड का सेवन नहीं करना चाहिए या न्यूनतम करना चाहिए।
- हर महिला को 40 साल की उम्र के बाद अपनी मैमोग्राफी करानी चाहिए।
- गर्भनिरोधक दवाइयों का लंबी अवधि तक सेवन नहीं करना चाहिए।
- आहार में सीमित मात्र में वसा को शामिल करें।
- एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक सेवन से बचें।
घरेलू इलाज
अचानक जी मिचलाना या लगातार उल्टियां होना परेशानी उत्पन्न कर देता है। तुरंत राहत पाने के लिए इन्हें अजमाकर देखें -
- सूखा धनिया या हरा धनिया कूट-पीसकर उसका पानी निचोड़ लें। पीड़ित व्यक्ति को 5-5 चम्मच बार-बार पिलाएं। गर्भवती स्तियों के लिए भी बेहतर है।
- चार नींबू का रस निकाल कर छान लें। 50 ग्राम सेंधा नमक पीसकर डालें। 125 ग्राम जीरा साफ करके रस में भिगा दें। जब रस बिल्कुल सूख जाए और केवल जीरा रह जाए तो इसे कांच की शीशी में भर कर रख लें। उल्दी महसूस होने पर मुंह में डाल लें।
- हरड़ को पीसकर शहद मिलाकर चाटने से भी उल्टी बंद हो जाती है।
- अदरक व प्याज का रस 2-2 चम्मच पिलाने से भी जी मिचलाने में राहत मिलती है। इसी तरह तुलसी की पत्तियों का रस पिएं। अथवा तुलसी का रस शहद मिलाकर चाट लें।
- जी मचलाने की स्थिति में 2 लौंग, एक कप पानी में डालकर उबालें और उस पानी को पी जाएं, फायदा होगा। लौंग चबा लें, उससे भी राहत मिलेगी। अखरोट की गिरी का सेवन भी जी मचलाने से राहत देता है।
(निशि भाट,हिंदुस्तान,दिल्ली,1.2.11)
आज के दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट कहती है कि पंचकर्म से भी कैंसर का इलाज संभव है। आयुर्वेद का उपचार कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने के सिद्धांत पर आधारित है। यह डीएनए स्तर पर होता है। इसका अर्थ है कि कैंसर कोशिकाएं पुन: सामान्य कोशिकाओं का रूप ले लेती है। नोएडा के लावण्य आयुर्वेदिक कैंसर हास्पिटल के चेयरमैन अशोक श्रीवास्तव के मुताबिक कैंसर का इलाज आयुर्वेद से संभव है। इसके लिए युक्तिव्यपश्रय पंचकर्म की सलाह दी जाती है। इसके पांच चरण होते हैं। इसके बाद शुद्धिकरण के पांच बड़े कदम उठाए जाते हैं। वमन, विरेचन, वास्ती, नास्या और रक्तमोचन। ऐसे में बीमारी के पुन: होने की आशंका जड़ से खत्म हो जाती है। आयुर्वेद में वात, पित्त व कफ को पंचकर्म सिद्धांत से संतुलित किया जाता है। कोशिकाओं का नियंत्रित रूप से बनना निश्चित रूप से एक से तीन माह में रुक जाता है। कैंसर वाल ट्यूमर रस-रसायन दवाईयों को पंचकर्म के प्रयोग से पूरी तरह घुल जाता है
आज के दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट कहती है कि पंचकर्म से भी कैंसर का इलाज संभव है। आयुर्वेद का उपचार कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने के सिद्धांत पर आधारित है। यह डीएनए स्तर पर होता है। इसका अर्थ है कि कैंसर कोशिकाएं पुन: सामान्य कोशिकाओं का रूप ले लेती है। नोएडा के लावण्य आयुर्वेदिक कैंसर हास्पिटल के चेयरमैन अशोक श्रीवास्तव के मुताबिक कैंसर का इलाज आयुर्वेद से संभव है। इसके लिए युक्तिव्यपश्रय पंचकर्म की सलाह दी जाती है। इसके पांच चरण होते हैं। इसके बाद शुद्धिकरण के पांच बड़े कदम उठाए जाते हैं। वमन, विरेचन, वास्ती, नास्या और रक्तमोचन। ऐसे में बीमारी के पुन: होने की आशंका जड़ से खत्म हो जाती है। आयुर्वेद में वात, पित्त व कफ को पंचकर्म सिद्धांत से संतुलित किया जाता है। कोशिकाओं का नियंत्रित रूप से बनना निश्चित रूप से एक से तीन माह में रुक जाता है। कैंसर वाल ट्यूमर रस-रसायन दवाईयों को पंचकर्म के प्रयोग से पूरी तरह घुल जाता है
बहुत ही काम की जानकारी राधारमण जी । आपका ब्लॉग मौलिक विषय के लिए भविष्य में एक धरोहर की संजोया जा रहा है कई स्थानों पर । बहुत बहुत शुभकामनाएं । आगे की कडियों के गठिया वात पर भी कोई जानकारी देने की कृपा करें
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