दिल्ली के पुरूष साइकोसेक्सुअल तो महिलाएं ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) की तेजी से हो शिकार हो रही हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) और राममनोहर लोहिया अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में आने वाले मरीजों में ब़ड़ी संख्या में साइकोसेक्सुअल व ओसीडी के मरीज आ रहे हैं। महानगर की भागदौ़ड़ भरी जिंदगी, अवसाद, काम का दबाव, पारिवारिक विघटन, पति-पत्नी में तनाव और सामाजिक असमानता ने लोगों की कुंठाओं को ब़ढ़ाया है, जिससे मानसिक बीमारियां ब़ढ़ रही हैं।
राममनोहर लोहिया अस्पताल की मनोचिकित्सा विभाग की प्रमुख डॉ. एसएन देशपांडे के अनुसार अस्पताल के मनोचिकित्सा क्लीनिक में प्रति सप्ताह ऐसे करीब १५ पुरूष आ जाते हैं, जो साइकोसेक्सुअलिटी के शिकार होते हैं। ऐसे लोग सेक्सुअल एंग्जाइटी से पी़िड़त होते हैं। इनमें सबसे अधिक पार्टनर को सेक्सुअली सेटीस्फाइड न करने की बीमारी के शिकार होते हैं। आम तौर पर इसे धात सिंड्रॉम कहते हैं। ऐसे लोगों को नींद में भी लगता रहता है कि उनका धात यानी वीर्य निकल रहा है। उन्हें नींद नहीं आती। घबराहट होती रहती है। ये लोग पार्टनर से सेक्स करने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि वह यदि सेक्स करेंगे तो जल्दी डिस्चार्ज हो जाएंगे। इस डर के साथ सेक्स करने पर उनका वीर्य पात शीघ्र हो जाता है। यौन शिक्षा नहीं होने की वजह से लगातार इनके आत्मविश्वास में कमी आती चली जाती है।
डॉ. देशपांडे के अनुसार ऐसे लोग जब क्लिनिक में आते हैं तो उनकी काउंसलिंग की जाती है। काउंसलिंग से उन्हें आराम मिलता है और उनकी ५० फीसदी समस्या समाप्त हो जाती है। बची हुई समस्या को दूर करने के लिए कुछ दवाओं की मदद ली जाती है।
ओसीडी के बारे में एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर कहते हैं कि इस बीमारी के लिए बहुत सारी वजहें होती हैं। पुरूष व महिलाएं दोनों इसके शिकार होते हैं, लेकिन महिलाएं इससे अधिक पी़िड़त हैं। ओसीडी में मस्तिष्क के दो हिस्सों में संवाद की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे इंसान के अचेतन मन में दबे विचार गाहेबगाहे बाहर आते रहते हैं। धीरे-धीरे यह बीमारी एक सनक कर रूप ले लेती है और रोगी बार-बार एक ही क्रिया को दुहराने लगता है। जैसे बार-बार हाथों को धोना, ताला बंद है या नहीं यह चेक करना, किसी को स्पर्श करना, प्रार्थना करने के लिए बुदबुदाते रहना जैसी क्रियाएं व्यक्ति बार-बार दुहराता है। इससे रिश्ते प्रभावित होने लगते हैं।
ओसीडी मरीज का इलाज लंबा चलता है, लेकिन समस्या यह है कि बीच में ही लोग इलाज छो़ड़ देते हैं। महिलाओं के मामले में ऐसा अक्सर देखने को मिलता है। जबकि सच यह है कि ओसीडी विकलांगता की दस ब़ड़ी वजहों में से एक है(संदीप देव,नई दुनिया,4.2.11)।
ओसीडी के बारे में एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर कहते हैं कि इस बीमारी के लिए बहुत सारी वजहें होती हैं। पुरूष व महिलाएं दोनों इसके शिकार होते हैं, लेकिन महिलाएं इससे अधिक पी़िड़त हैं। ओसीडी में मस्तिष्क के दो हिस्सों में संवाद की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे इंसान के अचेतन मन में दबे विचार गाहेबगाहे बाहर आते रहते हैं। धीरे-धीरे यह बीमारी एक सनक कर रूप ले लेती है और रोगी बार-बार एक ही क्रिया को दुहराने लगता है। जैसे बार-बार हाथों को धोना, ताला बंद है या नहीं यह चेक करना, किसी को स्पर्श करना, प्रार्थना करने के लिए बुदबुदाते रहना जैसी क्रियाएं व्यक्ति बार-बार दुहराता है। इससे रिश्ते प्रभावित होने लगते हैं।
ओसीडी मरीज का इलाज लंबा चलता है, लेकिन समस्या यह है कि बीच में ही लोग इलाज छो़ड़ देते हैं। महिलाओं के मामले में ऐसा अक्सर देखने को मिलता है। जबकि सच यह है कि ओसीडी विकलांगता की दस ब़ड़ी वजहों में से एक है(संदीप देव,नई दुनिया,4.2.11)।
ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंराधारमण जी , बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख............... एक नई जानकारी हुई.
जवाब देंहटाएंआपकी दांत के ऊपर की कई पोस्ट पढ़ी बहुत ही अच्छी जानकारी है. आप ऐसे ही स्वास्थ के बारे अलख जलाये रहे. आभार.
विचारणीय जानकारी ...
जवाब देंहटाएंउपयोगी रहा यह समाचार!
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त और सुन्दर व्याख्या साइको -सेक्स्युअलिति और ओब्सेसिव कम्पल्सिव दिस -ऑर्डर की .कई मेडिकल कोलिज के मनो -रोग विभाग साइको -सक्सुअल क्लिनिक चलातें हैं .यहाँ यौनिकता के मानिसक और संवेगात्मक भावात्मक और रागात्मक पक्षों पर विमर्श और सलाह मश्बिरा दिया जाता है .
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक आलेख...
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