उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर ने अपनी रिसर्च की बदौलत जर्मनी और ब्रिटेन तक मेरठ का परचम लहरा दिया। इस रिसर्च से 50 हजार में होने वाले ऑपरेशन की कीमत मात्र दो हजार तक आ गई। इसी रिसर्च पर डॉक्टर को क्लीनिकल सर्जरी में बेस्ट रिसर्च का अवार्ड मिला है। कान में तकलीफ वाले मरीजों में से 40 चालीस फीसदी से ज्यादा कान की हड्डी और पर्दा गलने की समस्या से ग्रस्त होते हैं। इसे बैक्टीरियल इंफेक्शन कहा जाता है। इससे कान की तीन हड्डियों में से एक हड्डी और पर्दा गल जाता है और मरीज को उस कान से सुनाई नहीं देता है। डॉक्टरों के मुताबिक इसका समाधान ऑपरेशन ही होता है। ऑपरेशन करके कान के गले हिस्से को निकाल दिया जाता है। अब तक ऑपरेशन के दौरान ही कान की हड्डी वाली जगह पर टाइटेनियम या गोल्ड का टुकड़ा डाला जाता था। इस सारे काम में पचास हजार रुपये या इससे ज्यादा खर्च होते हैं। कई बार तो कान में लगाया गया सामान शरीर स्वीकार नहीं करता था। मेडिकल कॉलेज में ईएनटी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मनु मल्होत्रा ने कान से ही एक टुकड़ा निकाला और उसे प्लेट की शक्ल दे दी। दो हड्डियों में से एक को प्लेट से जोड़कर उसे वही छतरी नुमा शक्ल दी। यह छतरी पर टाइटेनियम या गोल्ड से बनाई जाती थी। अब विधि से सफल इलाज किया जा रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि शरीर इसे तुरंत स्वीकार कर लेता है। डॉ. मनु की रिसर्च कामयाब हुई और ब्रिटेन के में डॉक्टरों के सबसे सम्मानित जनरल लैरिंगॉलिजी एंड ओटालॉजी और जर्मनी के जनरल लैरिंगॉलिजी एंड ओटालॉजी में प्रकाशित हुई। रिसर्च प्रस्तुतीकरण के लिए डॉ. मनु को लखनऊ में केजीएमयू (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) में बुलाया गया। ज्यूरी ने उन्हें प्रदेश के सभी नौ मेडिकल कॉलेज में बेस्ट रिसर्च का अवार्ड दिया(दैनिक जागरण,मेरठ,24.1.11)।
कौक्लियर ट्रांसप्लांट हमारे अस्पताल में भी होता है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन इतना सस्ता इलाज़ वास्तव में एक क्रन्तिकारी कदम है ।