जनवरी के पहले पखवाड़े में दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने एक विज्ञापन जारी कर उपभोक्ताओं को ‘नीम-हकीमों’ से सावधान रहने के प्रति सचेत किया। दुर्भाग्य से विज्ञापन यह संदेश देने में असफल रहा कि ‘नीम-हकीमों’ की पहचान कैसे की जाए। डॉक्टर की डिग्री असली और प्रमाणित है या नहीं, इसकी जानकारी कैसे हो। कई डॉक्टर अपनी डिग्री आदि की गलतबयानी करते हैं, जिसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है। कई मामलों में शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने डॉक्टरों को उनकी डिग्री की गलतबयानी का दोषी पाया और जुर्माना किया। ऐसे में जरूरी है कि सभी राज्य सरकारें एलोपैथिक सहित सभी मान्य पद्धतियों में इलाज करने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन करे और इसकी सूची स्थानीय भाषाओं में गांवों के पोस्ट आफिसों में उपलब्ध कराए।
मरीज अपने डॉक्टर की जानकारी सुनिश्चित कर लें
विगत 13 जनवरी अपने एक आदेश में शीर्ष उपभोक्ता ने भी स्पष्ट किया कि कैसे सही सूचना के अभाव में उपभोक्ता ‘नीम-हकीमों’ के चक्कर में पड़ जाते हैं। डॉ. एम कुमार बनाम विजय कुमार श्रीवास्तव (आरपी नं. 2772, 2010) के मामले में शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने डॉक्टर को अपनी डिग्री की गलतबयानी व मरीज को भ्रमित करने का दोषी पाया। बिहार के गोपालगंज निवासी विजय कुमार श्रीवास्तव अपने आठ वर्षीय बेटे की दांत की समस्या का उपचार कराने डॉ. कुमार की क्लीनिक गए। डॉ. कुमार ने अपनी योग्यता बीडीएस (बैचलर इन डेंटल सर्जरी) दिखा रखी थी। डॉ. कुमार की सलाह पर विजय ने अपने बच्चे के दांत निकलवा दिए। बाद में पता चला कि लड़के ने दो दांत हमेशा के लिए खो दिए। श्रीवास्तव डॉ. कुमार के खिलाफ जिला उपभोक्ता अदालत में गए। गोपालगंज जिला अदालत ने श्रीवास्तव की अर्जी को पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत न करने का हवाला देकर खारिज कर दिया।
बाद में राज्य उपभोक्ता अदालत डॉ. कुमार को उसकी डिग्री की गलतबयानी का दोषी पाया और शिकायतकर्ता को 50,000 रुपये मुआवजा व 5,000 रुपये अन्य खर्चे के रूप में देने का आदेश दिया। शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने भी डॉ. कुमार द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी और राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही ठहराया। इस दौरान आयोग को मालूम हुआ कि डॉ. कुमार के पास बीडीएस की नहीं बल्कि बीडीएस (वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति) की डिग्री है। दूसरी ओर, भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, यूनानी, योगा, नेच्युरोपैथी आदि के जरिए इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी सरकार ने आयुष विभाग के जरिए मान्यता दे रखी है, जिससे मरीज को इन पद्धतियों में योग्य डॉक्टर सुनिश्चित करने में आसानी हो। जरूरी है कि मरीज इलाज कराने से पूर्व अपने डॉक्टर की शिक्षा, योग्यता और पंजीयन आदि सुनिश्चित कर लें।
(पुष्पा गिरिमाजी,अमर उजाला,16.1.11)
बाद में राज्य उपभोक्ता अदालत डॉ. कुमार को उसकी डिग्री की गलतबयानी का दोषी पाया और शिकायतकर्ता को 50,000 रुपये मुआवजा व 5,000 रुपये अन्य खर्चे के रूप में देने का आदेश दिया। शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने भी डॉ. कुमार द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी और राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही ठहराया। इस दौरान आयोग को मालूम हुआ कि डॉ. कुमार के पास बीडीएस की नहीं बल्कि बीडीएस (वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति) की डिग्री है। दूसरी ओर, भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, यूनानी, योगा, नेच्युरोपैथी आदि के जरिए इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी सरकार ने आयुष विभाग के जरिए मान्यता दे रखी है, जिससे मरीज को इन पद्धतियों में योग्य डॉक्टर सुनिश्चित करने में आसानी हो। जरूरी है कि मरीज इलाज कराने से पूर्व अपने डॉक्टर की शिक्षा, योग्यता और पंजीयन आदि सुनिश्चित कर लें।
(पुष्पा गिरिमाजी,अमर उजाला,16.1.11)
विचारणीय है यह....सार्थक सलाह
जवाब देंहटाएंकुछ डाक्टर आयुर्वेद आदि में डिग्री ले कर एलोपैथिक में प्रैक्टिस करते है | पर उन डाक्टरों का क्या जो एम बी बी एस होने के बाद भी अपने क्षेत्र के नई खोजो दवाइयों और इलाज के बारे में नहीं जानते है | कुछ दिन पहले टीवी पर देखा की आई पिल दवा आने के पहले दिल्ली मुंबई के ४०% डॉ को पता ही नहीं था की ऐसी कोई दवा होती है जबकि बाजार में दस बारह दवा इस तरह की थी और तो और जिनको इस बारे में मालूम था उनमे से भी ३३% को ये पता नहीं था की दवा कैसे काम करती है | ये महानगरो का हाल है गांवो का क्या होगा |
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