फास्ट फूड के कई नुकसान हैं। जहाँ से यह शुरू हुआ है उन देशों में भी इसे लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। हम अभी आधुनिक भागदौड़ की जिंदगी बढ़ते शहरीकरण और पश्चिमी संस्कृति के चलते बच्चों, विद्यार्थियों और युवाओं के जीवन और खान-पान बदल गया है। फटाफट खाओ और काम पर लग जाओ, न पकाने का झंझट और न किसी प्रकार की किल्लत जैसी मनोवृत्ति ने पिज्जा-पास्ता फास्ट फूड के कई नुकसान हैं। जहाँ से यह शुरू हुआ है उन देशों में भी इसे लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। हम अभी आधुनिक भागदौड़ की जिंदगी बढ़ते शहरीकरण और पश्चिमी संस्कृति के चलते बच्चों, विद्यार्थियों और युवाओं के जीवन और खान-पान बदल गया है। फटाफट खाओ और काम पर लग जाओ, न पकाने का झंझट और न किसी प्रकार की किल्लत जैसी मनोवृत्ति ने पिज्जा-पास्ता जैसी खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया है। इनके खाने से स्वास्थ्य से संबंधित नए खतरे पैदा हो रहे हैं।
पिज्जा, पास्ता, बर्गर, नूडल्स आदि विदेशी डिशे विभिन्ना फूड-प्रोसेस से बनाई जाती है। यह प्रोसेस बड़ा ही अस्वास्थ्यकर होता है, जिसमें वसा और शकर की मात्रा अधिक होती है, साथ ही इसमें मिलाया जाने वाला मैदा तो ब्रेड, नान, पिज्जा-डिश बनाता है,महीन गेहूं के आर्ट का होता है जिसमें चोकर यानी फाईबररूपी प्रोटीन का पूर्ण अभाव होता है जिससे यह मैदा हमारी आंतों में चिपक सकता है जो कई आंत्र रोगों को जन्म देता है। यही नहीं,मैदे का खमीर द्वारा किण्वीकरण कराया जाता है। सड़न पैदा करने की यह विशिष्ट प्रक्रिया जिससे ब्रेड मोटा,फूला हुआ बना रहे। कई बार मैदे के आर्ट सोडा वॉटर से भी गूंथा जाता है। ऐसे में इसके सेवन से पेट में जाने के पश्चात् कार्बनडाई ऑक्साइड गैस बनने लगती है,जो कई बार डकार के रूप में उल्टे मुंह के द्वारा बाहर आती है या फिर पेट में आफरा पैदा कर देती है।
फास्ट फूड से व्यक्ति को क़ब्जियत और शौच में अनियमितता का सामना करना पड़ता है। कोलाइटिस यानी आंतों में सूजन हो सकती है,बार-बार खाने से एसिडिटी और पेप्टिक अल्सर हो सकता है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसे लम्बे रहने वाले रोग हो सकते हैं,लंबे समय तक रेशाविहीन भोजन लेने से कोलोन कैंसर यानी आंतों का कैंसर हो सकता है। कब्जियत रहने से लंबे समय बाद बवासीर और भगंदर जैसे रोगों को न्यौता मिल जाता है।
पिज्जा-पास्ता और बर्गर से बच्चे काफी प्रभावित हैं। इनके खाने से बाल्यकाल में ही मोटापा शुरू हो जाता है। आजकल बच्चों में मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। हमारे देश का पारंपरिक भोजन एक संतुलित आहार है। उत्तर भारत में दाल,चपाती,चावल तो दक्षिण में इसकी प्रतिकृति इडली,डोसा,सांभर तथा मछली का समावेश होने से प्रोटीन,वसा और कार्बोहाइड्रेट परिपूर्ण रूप से हमारे पोषण में मिलते हैं(डॉ. सारांश नीमा,सेहत,नई दुनिया,प्रथमांक,2011)
अफ़सोस आजकल न बच्चे मानते हैं न बड़े ।
जवाब देंहटाएंफास्ट फ़ूड का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है ।
उपयोगी पोस्ट और सुझाव!
जवाब देंहटाएंबहुत सही सीख दी है आपने। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
बहुत बढिया जानकारी..
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ...थैंक यू
जवाब देंहटाएंबहुत सही जानकारी वैज्ञानिक सोच पर आधारित और ज्ञान वर्धक |उत्तम जानकारी के लिये आभार |
जवाब देंहटाएंआशा