रविवार, 2 जनवरी 2011

शराब की लत का होम्योपैथी में इलाज़

यह एक ऐसे अधेड़ व्यक्ति का केस है जिसे लगभग दस साल से कब्ज की गंभीर शिकायत थी। कब्ज की शुरुआत सामान्य बदहजमी से हुई थी। पहले-पहल मरीज को पेडू में भारीपन के साथ मलत्याग करने में परेशानी महसूस हुई थी। इसे सामान्य घटना मानते हुए उसने अपने आपको दिलासा दे दिया कि पिछली रात अधिक मात्रा में मसालेदार भोजन करने के कारण उसे यह समस्या हुई होगी। कुछ दिनों तक बदहजमी बनी रही और बाद में ठीक हो गई। कुछ दिन बीतने के बाद उसे फिर से बदहजमी महसूस हुई। इस बार पेडू में भारीपन पहले की अपेक्षा अधिक था। अब भी इलाज के नाम पर कुछ नहीं किया गया। थोड़े समय बाद कब्ज की समस्या गायब हो गई। मरीज बदहजमी को टालता रहा और इसके प्रति लापरवाह रहा। धीरे-धीरे बीमारी के लक्षण बढ़ते जा रहे थे, अब मरीज को पेडू में भारीपन के साथ दर्द भी रहने लगा। इसी के साथ उसे मितली आने की शिकायत भी बढ़ गई। इस बार मरीज ने भारी और मसालेदार भोजन पर लगाम लगा दी। इससे मर्ज थोड़ा काबू में आया लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुआ। मरीज ने पारिवारिक चिकित्सक को दिखाया। चिकित्सक ने एंटासिड खाने की सलाह दी। औषधि से समस्या का कुछ समय के लिए निराकरण हो गया।

कुछ हफ्तों बाद मरीज को पुनः कब्ज ने चपेट में ले लिया। मुलायम मल निकलता था लेकिन मरीज को पूर्ण मलत्याग हो गया है ऐसा संतुष्टि का भाव नहीं पैदा होता था। पूरी तरह मलत्याग के लिए उसे दिन में कई बार संडास जाना पड़ता था। ऐसा एक साल तक चला और बाद में कब्ज फिर से रहने लगा। मरीज को अब एक-दो दिन तक मलत्याग की इच्छा नहीं होती थी। पेडू में भारीपन के साथ मितली आने की शिकायत जरूर बनी रही। कभी-कभी उल्टियाँ भी हो जाती थीं। दिनोदिन बीमारी के लक्षण गंभीर होते जा रहे थे। मरीज के परिजनों ने पेटरोग विशेषज्ञ की सलाह ली। पेटरोग विशेषज्ञ ने कब्ज साफ होने की दवा के साथ एंटासिड भी खाने के लिए कहा। जब तक दवाएँ चलीं, तब तक सब कुछ ठीक रहा लेकिन दवाएँ बंद होते ही समस्या गंभीर हो गई। ६ महीने बाद परिजनों ने शहर के पेटरोग विशेषज्ञ को दिखाया। परीक्षणों के नतीजों में कोई सुधार न होते देखकर पेटरोग विशेषज्ञ ने छोटी और बड़ी आँत में किसी खराबी की पड़ताल के लिए एंडोस्कोपी करने का निर्णय लिया। इस परीक्षण से भी कुछ भी सामने नहीं आया।

पेट रोग विशेषज्ञ ने मरीज़ को अपनी जीवन-शैली में सुधार करने की सलाह दी। इलाज़ के दौरान मरीज़ ने पेटरोग विशेषज्ञ को बताया कि वह शराब पीने का आदी है। चिकित्सक ने तत्काल शराबखोरी बंद करने की सलाह दी। मरीज़ चूंक लत का शिकार हो चुका था इसलिए कुछ नहीं हो पाया। चिकित्सक के अधिक दबाव देने पर मरीज़ ने इलाज़ बीच में ही छोड़ दिया और आयुर्वेदिक इलाज़ शुरू कर दिया। चूंकि आयुर्वेदिक इलाज़ के साथ शराबखोरी चलती रही,इसलिए विशेष फायदा नहीं हुआ। कुछ अर्से बाद कब्ज इतनी बढ़ गई कि दो-तीन दिन में एक बार सख़्त मल का त्याग हो रहा था। परिजनों ने शराब छुड़वाने की बहुतेरी कोशिशें की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंतिम उपाय के तौर पर होम्योपैथी को आजमाना तय हुआ।

मरीज़ की हिस्ट्री लेने के साथ ही तय हो गया कि वह आदतन शराबी है और इससे छुटकारा पाना चाहता है। हमने एसिडिटी और क़ब्ज़ की समस्या के निदान के लिए नक्स वोम नामक दवा से इलाज़ शुरू किया। इलाज़ के साथ शराब पर सख्ती से रोक लगाने को कहा। सात-आठ महीनों को सतत इलाज के बाद मरीज की कब्ज की समस्या में सुधार आने लगा। मरीज़ को पुरानी दवा बन्द कर सल्फ्यूरिकम एसिडम नामक दवा शुरू की गई। इससे मरीज़ के मन में शराब के प्रति अरूचि पैदा हो गई। बीच-बीच में हम मरीज को नक्स वोम दवा भी दे रहे थे। दो साल के इलाज़ के बाद मरीज शराब की लत से मुक्त हो चुका था। इसी के साथ उसकी असाध्य कब्ज की भी छुट्टी हो गई(डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षित,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर,2010 तृतीय अंक)

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