अम्लता रोग (एसिडिटी) आज के आधुनिक युग का बहु-प्रचलित रोग है। यह भोजन की अधिकता एवं व्यायाम के अभाव के कारण होते हैं। वैसे तो वात (गैस), पित्त (अम्ल) व कफ शरीर में हमेशा मौजूद रहते हैं। यदि इनमें असंतुलन आ जाता है व किसी की मात्रा सर्वाधिक हो जाती है तो हम उसे उस रोग के नाम से जानते हैं। युवा अवस्था में प्रायः तले-भुने हुए खाद्य पदार्थ, चाय, कॉफी व अन्य मादक द्रव्यों का सेवन अधिक करता है। इस वजह से उम्र के इस पड़ाव पर प्रायः युवा अम्ल रोग के शिकार होते हैं। वैसे ऐसिडिटी कब्ज का ही स्वरूप है।
शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़ गई है।
जागो, शरीर को क्षारीय आहार उपलब्ध कराओ ताकि शरीर में अम्ल बढ़ने से जो दुष्प्रभाव हो रहे हैं उन्हें अविलंब रोका जा सके। यदि संकेत मिलते ही आहार में क्षारीय आहार की मात्रा को बढ़ा दी जाए तो शरीर अम्लता के रोग से मुक्त हो जाता है। वैसे प्रकृति हमें जीवन में हर बार विभिन्ना लक्षणों जैसे डकार, उबासी, थकान, सिरदर्द, सर्दी व अन्य लक्षणों के माध्यम से शरीर के अंदर हो रहे व संभावित रोगों की जानकारी देती रहती है, किंतु हम प्रायः प्रकृति के संकेतों का उल्लंघन कर अपने आपको गंभीर रोगों का शिकार बनाते रहते हैं।
शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़ गई है।
रक्त की अम्लता को कम करने का सबसे सरल उपाय है कि भोजन में फल व सब्जियों की मात्रा को बढ़ा दिया जाए। हमारे भोजन का कुल ८० प्रश क्षारीय आहार होना चाहिए। जिससे प्रकृति द्वारा प्रदत्त समस्त आहार उसके मूल स्वरूप में क्षारीय आहार हैं। फल, सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, पानी में गले किशमिश, पानी में गले हुए अंजीर व गाय का धारोष्ण दूध क्षारीय आहार की श्रेणी में आते हैं।
मनुष्य द्वारा निर्मित समस्त खाद्य पदार्थ(दाल,चावल,मिक्सचर,कचोरी,चपाती,सेव,कॉफी,चाय,शराब,तंबाकू व अन्य आहार)अम्लीय आहार की श्रेणी में आते हैं। प्रायः,हमारा आहार 80 से 90 प्रतिशत अम्लीय होता है और महज दस प्रतिशत ही क्षारीय होता है। कई मामलों में तो 10 प्रतिशत आहार भी क्षारीय नहीं होता। जब हमारे आहार का 100 प्रतिशत हिस्सा अम्लीय होगा तो कैसे हमारे रक्त की प्रकृति क्षारीय हो सकती है?
बीमार होने पर हमारा सम्पूर्ण आहार क्षारीय हो जाता है। जैसे-जैसे हम फल और सब्जियों की पर्याप्त मात्रा का सेवन करने लगते हैं,रक्त का स्वभाव भी क्षारीय होता जाता है। जैसे ही रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है,जब रोगमुक्त हो जाते हैं।
जिस समय शरीर में अम्लता की मात्रा बहुत अधिक हो,उस समय खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस अवस्था में कुछ दिनों तक दूध,मौसम्बी,पपीता,केला,सेवफल,पका केला,अनार,खीरे का रस,गाजर का रस,तरबूज,किशमिश व खजूर का सेवन किया जा सकता है। कुछ दिनों तक उक्त आहार का सेवन करने के बाद,टमाटर व नींबू का सेवन किया जाना चाहिए ताकि रक्त का स्वभाव पूर्ण रूप से क्षारीय हो जाए। नींबू के बारे में भ्रांति है कि एसिडिटी में इसका सेवन नहीं करना चाहिए जबकि सच्चाई इसके विपरीत है।
नींबू का स्वाद तो अम्लीय है किंतु इसकी प्रकृति क्षारीय है, क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार प्रातःकाल शरीर में अम्ल की मात्रा न्यूनतम स्तर पर होती है और यदि नियमित रूप से नीबू का प्रातःकाल खाली पेट सेवन किया जाए तो अम्लता से शीघ्र मुक्ति मिल जाती है। नींबू के रस का गुनगुने जल के साथ सेवन करना चाहिए। इसके साथ शहद का भी सेवन किया जाए तो लाभ द्विगुणित हो जाता है। यदि सर्दी प्रकृति के रोगी इसमें अदरक का रस मिला लें,तो उन्हें सर्दी से भी मुक्ति मिल जाती है। भोजन के साथ नींबू का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाचन विलम्बित होता है और गैस की पूर्ण आशंका हो जाती है।
प्रायःयह देखा गया है कि शरीर में अम्लता बढ़ने पर सोडा(सोडियम बायकार्बोनेट)का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग तात्कालिक लाभ तो दे सकता है किंतु बाद में अधिक अम्ल पैदा होने लगता है। अतः,अम्लता की स्थिति में सोडे का प्रयोग गलत ही नहीं,शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला भी है।
जैतून का तेल भी अम्लता के निदान में सहायक है। भोजन के एक घंटे पूर्व 10 मिली. जैतून तेल का सेवन करने से आंतों को स्निग्धता प्राप्त होती है और पेट की अच्छी सफाई हो जाती है। जैतून का तेल हल्का,सुपाच्य,स्निग्धकारी व शरीर को शक्ति प्रदान करने वाला होता है।
अम्लता रोगी के लिए नारियल और नारियल का पानी श्रेष्ठ आहार है। नारियल में 50 प्रतिशत तक वसा होता है जो आंतों को स्निग्धता प्रदान करता है।
अम्लता के रोगी को चावल का सेवन पर्याप्त सब्जियों के साथ करना चाहिए और एकबार में ही खाने की बजाए थोड़ा-थोड़ा कर खाना चाहिए। प्रातःकाल गुनगुने जल का सेवन करने से भी अम्लता कम होती है। ठंडे पानी का सेवन करने से अम्ल का स्त्राव अधिक होता है।
पेट में जलन,आंखों का लाल होना,अधिक गर्मी का लगना,त्वचा का रूखापन आदि अम्लता के लक्षण हैं। अतः,अम्लता प्रकट होते ही मिर्च,मसाले,शक्कर,चाय,मांस,मदिरा और अन्य मादक पदार्थों का सेवन अविलंब बंद कर देना चाहिए।
योग से दूर करें एसिडिटी
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का साथ काफी पुराना है। प्राकृतिक चिकित्सा में कुंजल क्रिया को हाईपर एसिडिटी पर काबू पाने के लिए सुझाया जाता है। इसमें सुबह खाली पेट खूब सारा पानी पीने के बाद मुंह में उंगली के जरिए उल्टी की जाती है। इससे पेट में भरा हुए पानी के साथ रात भर में इकट्ठा हुआ एसिड बाहर आ जाता है। चिकित्सा विज्ञान मानता है कि सोते समय एसिडिटी बढ़ जाती है। यही वजह है कि हमारे देश में रात को सोने से पहले दूध पीने की सलाह दी जाती है।
प्राणायाम करें : हाईपर एसिडिटी के तत्काल इलाज के लिए दो तरह के प्राणायाम करने के लिए कहा जाता है। पहली तरह के प्राणायाम में दोनों होंठ खुले रखते हुए अपने जबड़ों को बंद कर लें। अब दाँतों के बीच से श्वास खींचें। इससे मुंह के गीलेपन में लिपटी हवा फेफड़ों तक पहुंचेगी। इससे पेट की जलन में तत्काल फायदा होता है। श्वास मुंह के जरिए लेना है और नाक से छोड़ना है। इसके अलावा दूसरे आसन में जीभ को गोल पाइप की तरह सिकोड़ लें। होंठ खुले रखते हुे अब श्वांस भरें, इसे फेफड़ों में रोकें और नाक के जरिए छोड़ दें।
सर्दियों का मेवा-पिंड खजूर
पिंडखजूर ठंड के दिनों में पूरे भारत में आसानी से उपलब्ध रहता है। इसका वृक्ष ३० से ४० फुट लंबा, ३ फुट चौड़ा हल्का भूरा रंग व पत्तियाँ १० से १५ फुट लंबी होती हैं। यह १ से डेढ़ इंच लंबा, अंडाकार आकार व गहरे लाल रंग का फल होता है। पिंडखजूर के अंदर का बीज अत्यधिक कड़क रहता है।
पिंड खजूर इनके कार्य में भी सहायक
लिवर : यकृत के कार्य के लिए आवश्यक पाचक रस को बढ़ाने में मदद करता है।
कब्जियत : फाइबर की अधिकता होने के कारण कब्जीयत दूर करता है।
वजन बढ़ाने में: कार्बोहाइड्रेड व कैलोरी की मात्रा ज्यादा होने के कारण वजन बढ़ाने में सहायक।
तंत्रिका तंत्र : शकर की मात्रा अधिक होने के कारण मस्तिष्क क्रियाओं की क्षमता बढ़ाने में सहायक।
मिनरल : आयरन व कैल्शियम की अधिक मात्रा होने के कारण शरीर में खून बढ़ाने व हड्डियों को मजबूत करने में सहायक।
अन्य लाभ
थकान व चक्कर दूर करता है।
शरीर में रक्त संचार की क्रिया में मजबूती प्रदान करता है।
संक्रामक रोग, जैसे सर्दी, खाँसी, जुकाम, बुखार से बचाव।
पिंड खजूर में पोषक तत्वों की मात्रा
प्रोटीन - १.२ प्रतिशत
फेटी एसिड- ०.४ प्रतिशत
कार्बोज - ८५ प्रतिशत
मिनरल - १.७ प्रतिशत
कैल्शियम - ०.०२२ प्रतिशत
पोटेशियम - ०.३२ प्रतिशत
कैलोरी - ३१७
(डॉ. सुनीता जोशी तथा डॉ. संगीता मालू का यह आलेख सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर,2010 तृतीय अंक में प्रकाशित है)
पिंड खजूर में पोषक तत्वों की मात्रा
प्रोटीन - १.२ प्रतिशत
फेटी एसिड- ०.४ प्रतिशत
कार्बोज - ८५ प्रतिशत
मिनरल - १.७ प्रतिशत
कैल्शियम - ०.०२२ प्रतिशत
पोटेशियम - ०.३२ प्रतिशत
कैलोरी - ३१७
(डॉ. सुनीता जोशी तथा डॉ. संगीता मालू का यह आलेख सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर,2010 तृतीय अंक में प्रकाशित है)
कुमार साहब,
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग के माध्यम से आप अच्छा कार्य कर रहे हैं। हर बार कमेंट नहीं करता हूँ, लेकिन लाभान्वित होते हैं। उसके लिये आभार स्वीकार करें।
अब इस पोस्ट से अलग बात, ’http://chalaabihari.blogspot.com/2010/12/blog-post_29.html" पर आपका निम्न कमेंट देखा,
’बंटी को मिली बबली!’ आपका ईमेल पता नहीं मिला, इसलिये पूर्ण विनय से आपसे निवेदन कर रहा हूँ कि कृपया थोड़ा विस्तार से बतायें कि मैंने किसके यहाँ से क्या चुराया है ताकि क्षमा मांग सकूँ। आशा है नये वर्ष में मुझ जैसे को सुधरने का मौका देंगे। मेरी ईमेल आई.डी. पर भी जवाब दे सकते हैं, मेरे ब्लाग पर भी, चला बिहारी..... ब्लाग पर, या आपके ब्लाग पर। जहाँ आपको उचित लगे।
अच्छी जानकारी. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
अच्छी जानकारी ।
जवाब देंहटाएंलेख थोडा लम्बा है ।
एसिडिटी के इलाज़ के साथ इसका कारण जानना भी ज़रूरी है , विशेषकर बुजुर्गों में ।
किसी स्पेशलिस्ट की राय ज़रूर लेनी चाहिए ।
एसिडिटी --एंजाइना और कैंसर का भी लक्षण हो सकता है ।
बहुत ही उपयोगी लेख.....
जवाब देंहटाएं@ मो सम कौन
जवाब देंहटाएंमालूम न था कि नववर्ष की शुरूआत ऐसी होगी। फिर भी,आपकी जिज्ञासा के लिए आभार। मेरी टिप्पणी फिल्म बंटी औरर बबली से प्रेरित थी। उस फिल्म में भी दोनों मिलकर चुराने का धंधा करते हैं। अपने ब्लॉग जगत में भी एक बंटी चोर है जिसने ब्लॉगरों की नींद हराम कर रखी है। मिस पूजा को मैंने उसी प्रकृति का जोड़ीदार पाया। इसलिए,उसे बबली का प्रतीक मानकर ऐसी टिप्पणी की।
मैं आपके लेखन का अनन्य प्रशंसक हूं। यदि मुझे कोई बात अप्रिय लगेगी तो मैं टिप्पणी से बचना या कुछ दो टूक कहना चाहूंगा न कि परोक्ष रूप से कोई व्यंग्य करना चाहूंगा। अभद्र टिप्पणियों से मैं बचता हूं,ऐसा वे तमाम लोग स्वीकारेंगे जिनके ब्लॉग पर मैं अक्सर जाता रहा हूं।
विश्वास है कि भ्रम की स्थिति दूर होगी। आपके मन में आशंका पैदा हुई,यह सोचकर अपरोध-बोध हो रहा है। क्षमा करेंगे।
लिखते रहें। नववर्ष की शुभकामनाएं लें।
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना .....धन्यवाद जानकारी देने के लिए
जवाब देंहटाएंआपको व आपके परिवार को नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकुमार साहब,
जवाब देंहटाएंनववर्ष की इससे बेहतर शुरुआत हो ही नहीं सकती थी। आपसे पूछकर अच्छा ही किया। सच है कि कुछ भ्रम हुआ था, वजह वो विश्वास था जो बहुत परिचय न होने पर भी मुझे आप पर था(और खुद की परख पर)। सुबूत मेरा कमेंट ही है, मैंने आपको पूरा सम्मान देते हुये सिर्फ़ जिज्ञासा व्यक्त की थी कि मुझसे कहाँ चूक हुई जिसे मैं सुधार कर सकूँ, after all none of us is perfect. वो छोटी सी टिप्पणी कुछ भ्रमात्मक तो लगी ही थी मुझे, सोचा क्यूँ न आपसे पूछ ही लूँ। फ़िर यहाँ आग में तेल डालने वाले तो तेल का कनस्तर हाथों में लिये घूमते ही हैं, देखिये फ़ौरन बाद बेनामी जी अवतरित हो ही गये थे सलिल जी की पोस्ट पर:)
रही बात अनन्य प्रशंसक होने की, मेरा ख्याल है कुछ भी एकतरफ़ा नहीं होता। मैं भी आपको एक मौन साधक मानता हूँ, जो चुपचाप अपना काम कर रहा है। आपसे ये अपेक्षा तो कर ही सकता हूँ कि जब उचित लगे, मार्गदर्शन या आलोचना भी करें, मुझे और अच्छा लगेगा।
आपके कमेंट ने सब भ्रम खत्म कर दिया है, अपराधबोध को मेरे ईमेल एड्रैस पर भेज दीजिये, i will handle it:)
हृदय से
सही बताऊँ, तो आपका ब्लॉग पर आज ही आना हुआ, कई पोस्ट पढ़ रहा हूँ, .......... और ये पोस्ट का प्रिंट निकाल रहा हूँ, कि समय समय पर इससे स्वास्थ्य लाभ लेता रहू,....
जवाब देंहटाएंबहुत ही व्यवाहरिक कार्य कर रहे हैं आप ब्लॉगजगत में..
साधुवाद