पिछले करीब १५ वर्षों से पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम हमारे देश में चलाया जा रहा है। हर व्यक्ति के मन में यह जिज्ञासा है कि हम हमारे लक्ष्य से कितनी दूर हैं एवं छोटी माता के टीकाकरण से मुक्ति की तरह हम पोलियो की दवा हमारे बच्चों को पिलाना कब बंद करेंगे। यह आमजन के लिए अत्यंत चिंता का कारण हो सकता है कि पोलियो पर हमारे देश का ३.८५ करोड़ रुपए प्रतिदिन का खर्च जो प्रतिवर्ष १४०० करोड़ रुपए होता है, को बचा कर देश के अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में खर्च कर सकेंगे।
जब यह प्रश्न विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गठित एक्सपर्ट एडवाइजरी गु्रप (आईईएजी) से पूछा गया तो उनका जवाब था, चाहे कुछ देरी से ही सही परंतु भारत में उच्च गुणवत्ता का निगरानी तंत्र एवं यहां के स्वास्थ्य कर्मियों एवं समाज सेवियों का पूर्ण समर्पण और सेवा भाव हमें अतिशीघ्र लक्ष्य तक पहुंचा देगा।
जिस तरह ब्राजील में पोलियो का उन्मूलन हुआ है उसी तरह का परिदृश्य विश्व स्वास्थ्य संगठन को हमारे देश में भी देखने को मिल रहा है। वर्तमान में विश्व के चार स्थानिक (एंडमिक) देशों में पी १ वायरस का प्रभाव अत्यंत कम देखने में आया है, जिसमें मुख्य रूप से नाइजीरिया व भारत हैं। वर्तमान में भारत में ४२, पाकिस्तान में १३८, अफगानिस्तान में २५ एवं नाइजीरिया में १८ पोलियो के प्रकरण हैं। हमारे लिए यह एक सुखद जानकारी है कि वर्ष २०१० में उत्तर प्रदेश एवं बिहार में पी१ वायरस का कोई भी प्रकरण नहीं पाया गया, बिहार में जो तीन पी१ वायरस के प्रकरण पाए गए हैं, वे नेपाल से आए हुए थे। पोलियो उन्मूलन की रणनीति के अनुसार सफलता पाने के जो चार आधार स्तंभ हैं।
नियमित टीकाकरण, संवेदनशील क्षेत्रों में वृहत् स्तर पर टीकाकरण तथा राष्ट्रीय टीकाकरण दिवसों पर सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने में सफलता। १४ वर्र्ष तक के बच्चों में लकवा होने के प्रकरण की जानकारी सूचना जिला टीकाकरण अधिकार अथवा सर्वेलेंस मेडिकल आफिसर अथवा जिला टीकाकरण अधिकारी तक पहुंचाना एवं निराकरण करना कि लकवा पोलियो वायरस से हुआ है अथवा अन्य कारणों से हुआ है। वर्ष २००९ में संपूर्ण विश्व में १६०४ पोलियो के प्रकरण पाए गए थे जो २३ देशों में थे। वर्ष २०१० में १८४१ प्रकरण २० देशों में पाए गए थे। भारत में वर्ष २०१० में उत्तर प्रदेश में मात्र पी३ के १० प्रकरण है जो कि वर्र्ष २००९ में पी१ के ३३, पी३ के ५६८ एवं पी१+ पी३ के एक प्रकरण के साथ ६०२ थे।
वर्र्ष २०१० में भारी वर्षा के बावजूद पी१ का कोई प्रकरण नहीं पाया जाना एवं × ३ के १० प्रकरण पाया जाना हमारे लिए हर्ष का विषय है। इसी तरह बिहार में वर्ष २०१० में मात्र ९ पोलियो के प्रकरण पाए गए हैं, जिसमें पी१ के ३ (जो कि नेपाल के वायरस के कारण हैं) तथा पी३ के ६ प्रकरण पाए गए हैं जो कि, वर्ष २००९ के मुकाबले पी१ के ३८, पी३ के ७९, कुल ११७ के मुकाबले में अत्यंत कम हैं। वर्तमान में यदि हम विभिन्न प्रदेशों की स्थिति का आकलन करें तो उत्तर प्रदेश में १०, बिहार में ९, हरियाणा में १, महाराष्ट्र में ५, जम्मू-कश्मीर में १ एवं झारखंड में ८ प्रकरण पाए गए हैं। जो १७ राजस्व जिलों में हैं, जिसमें पी१ के १८ एवं पी३ के २४ प्रकरण हैं। इस सफलता के पीछे मुख्य रूप से बायवेलेंट दवा का इस्तेमाल है ।
रोटरी अंतर्राष्ट्रीय द्वारा वर्ष १९८५ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सी.डी.सी. (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) यूनिसेफ के साथ विश्व के सभी बच्चों के लिए यह वादा किया था, कि सन् २००५ तक हम सब मिलकर पोलियो के वायरस से होने वाली विकलांगता को समाप्त कर देगें, इस किए गए वादे में देरी अवश्य हुई है परंतु हम अपने लक्ष्य के अत्यंत निकट हैं।
वर्ष १९८८ में जहां प्रतिवर्ष विश्व मे ३,५०,००० (प्रतिदिन लगभग एक हजार) पोलियो के प्रकरण पाए जाते थे जो घट कर २०१० में ८४१ तक पहुंच गए हैं, इसी तरह भारत में यह आंकड़ा लगभग ५०० प्रतिदिन का था जो कि अब घट कर प्रतिवर्ष मात्र ४२ रह गया है। रोटरी का इस कार्यक्रम में सहयोग अभूतपूर्व रहा है। भारत का यह सहयोग प्रति रोटरी सदस्य रुपए ६१६०० है।
यदि पोलियो विश्व से समूल खत्म हो जाता है जो हम पोलियो पर प्रतिवर्ष होने वाले १ अरब ५० करोड़ रुपए के खर्च को बचा सकेंगे जिसे अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में व्यय किया जा सकेगा। एक नवीन अध्ययन के अनुसार यह पाया गया है कि यदि हम विश्व से पोलियो उन्मूलन में पूर्ण रूप से सफल हो गए तो ८० लाख बच्चों पर खर्च होने वाले ४० से ५० अरब अमेरिकी डॉलर के व्यय को वर्ष २०१२ और उसके पश्चात् बचा सकते हैं ।
उक्त रिसर्च १०४ देशों में की गई थी, उक्त रिसर्च में यह भी जानकारी दी गई है कि वर्ष १९८८ के मुकाबले पोलियो के ९९ प्रतिशत प्रकरण समाप्त हो चुके हैं, एवं ऐसी संभावना है कि वर्ष २०१२ तक संपूर्ण विश्व पोलियो से मुक्त हो जाएगा । मार्गरेट चान (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि रोटरी अभी तक ८.२ मिलियन डॉलर खर्च चुकी है, वह विश्व के १२ लाख रोटरी सदस्यों की अभूतपूर्व सकारात्मक सोच का परिणाम है। आगामी रोटरी वर्ष "जुलाई २०११" में जब भारतीय मूल के रोटरी अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष (भारत के तीसरे) कल्याण बनर्जी अपना पदभार ग्रहण करेंगे तब तक विश्व से पोलियो वायरस लगभग उन्मूलित हो चुका होगा।
पोलियो उन्मुलन कार्यक्रम की सफलता रोटरी अंतर्राष्ट्रीय जैसे समाजसेवी संगठनों के मनोबल को बढ़ाएगी। नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप (एनटीएजी) द्वारा सन् २००८ में भारत सरकार को रुबेला टीकाकरण एवं मिजल्स टीकाकरण हेतु आग्रह किया गया है, वह हमारे देश में भी लागू किया जा सकेगा। थाइलैंड एवं श्रीलंका जैसे देश इस संदर्भ में हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे जहां पर इस कार्यक्रम को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया है(डॉ. नलिनी लंगर,नई दुनिया,22.1.11) ।
वर्र्ष २०१० में भारी वर्षा के बावजूद पी१ का कोई प्रकरण नहीं पाया जाना एवं × ३ के १० प्रकरण पाया जाना हमारे लिए हर्ष का विषय है। इसी तरह बिहार में वर्ष २०१० में मात्र ९ पोलियो के प्रकरण पाए गए हैं, जिसमें पी१ के ३ (जो कि नेपाल के वायरस के कारण हैं) तथा पी३ के ६ प्रकरण पाए गए हैं जो कि, वर्ष २००९ के मुकाबले पी१ के ३८, पी३ के ७९, कुल ११७ के मुकाबले में अत्यंत कम हैं। वर्तमान में यदि हम विभिन्न प्रदेशों की स्थिति का आकलन करें तो उत्तर प्रदेश में १०, बिहार में ९, हरियाणा में १, महाराष्ट्र में ५, जम्मू-कश्मीर में १ एवं झारखंड में ८ प्रकरण पाए गए हैं। जो १७ राजस्व जिलों में हैं, जिसमें पी१ के १८ एवं पी३ के २४ प्रकरण हैं। इस सफलता के पीछे मुख्य रूप से बायवेलेंट दवा का इस्तेमाल है ।
रोटरी अंतर्राष्ट्रीय द्वारा वर्ष १९८५ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सी.डी.सी. (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) यूनिसेफ के साथ विश्व के सभी बच्चों के लिए यह वादा किया था, कि सन् २००५ तक हम सब मिलकर पोलियो के वायरस से होने वाली विकलांगता को समाप्त कर देगें, इस किए गए वादे में देरी अवश्य हुई है परंतु हम अपने लक्ष्य के अत्यंत निकट हैं।
वर्ष १९८८ में जहां प्रतिवर्ष विश्व मे ३,५०,००० (प्रतिदिन लगभग एक हजार) पोलियो के प्रकरण पाए जाते थे जो घट कर २०१० में ८४१ तक पहुंच गए हैं, इसी तरह भारत में यह आंकड़ा लगभग ५०० प्रतिदिन का था जो कि अब घट कर प्रतिवर्ष मात्र ४२ रह गया है। रोटरी का इस कार्यक्रम में सहयोग अभूतपूर्व रहा है। भारत का यह सहयोग प्रति रोटरी सदस्य रुपए ६१६०० है।
यदि पोलियो विश्व से समूल खत्म हो जाता है जो हम पोलियो पर प्रतिवर्ष होने वाले १ अरब ५० करोड़ रुपए के खर्च को बचा सकेंगे जिसे अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में व्यय किया जा सकेगा। एक नवीन अध्ययन के अनुसार यह पाया गया है कि यदि हम विश्व से पोलियो उन्मूलन में पूर्ण रूप से सफल हो गए तो ८० लाख बच्चों पर खर्च होने वाले ४० से ५० अरब अमेरिकी डॉलर के व्यय को वर्ष २०१२ और उसके पश्चात् बचा सकते हैं ।
उक्त रिसर्च १०४ देशों में की गई थी, उक्त रिसर्च में यह भी जानकारी दी गई है कि वर्ष १९८८ के मुकाबले पोलियो के ९९ प्रतिशत प्रकरण समाप्त हो चुके हैं, एवं ऐसी संभावना है कि वर्ष २०१२ तक संपूर्ण विश्व पोलियो से मुक्त हो जाएगा । मार्गरेट चान (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि रोटरी अभी तक ८.२ मिलियन डॉलर खर्च चुकी है, वह विश्व के १२ लाख रोटरी सदस्यों की अभूतपूर्व सकारात्मक सोच का परिणाम है। आगामी रोटरी वर्ष "जुलाई २०११" में जब भारतीय मूल के रोटरी अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष (भारत के तीसरे) कल्याण बनर्जी अपना पदभार ग्रहण करेंगे तब तक विश्व से पोलियो वायरस लगभग उन्मूलित हो चुका होगा।
पोलियो उन्मुलन कार्यक्रम की सफलता रोटरी अंतर्राष्ट्रीय जैसे समाजसेवी संगठनों के मनोबल को बढ़ाएगी। नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप (एनटीएजी) द्वारा सन् २००८ में भारत सरकार को रुबेला टीकाकरण एवं मिजल्स टीकाकरण हेतु आग्रह किया गया है, वह हमारे देश में भी लागू किया जा सकेगा। थाइलैंड एवं श्रीलंका जैसे देश इस संदर्भ में हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे जहां पर इस कार्यक्रम को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया है(डॉ. नलिनी लंगर,नई दुनिया,22.1.11) ।
निश्चय ही यह समाजसेवी संगठन के लिए मनोबल बढाने वाली बात है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी आपने
जवाब देंहटाएंसकारात्मक परिणाम आगे भी दिशा दिखाते हैं....
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