हेल्थ कैपिटल कही जाने वाली दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है। आलम तो यह है कि किसी भी बड़े अस्पताल में आईसीयू में कोई जगह नहीं है, यानी यहां एक भी बेड खाली नहीं है।
एम्स, राममनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय, लोकनायक जयप्रकाश, बाड़ा हिंदूराव, लाल बहादुर शास्त्री जैसे नामी अस्पताल भी इसका अपवाद नहीं हैं। चिंताजनक बात यह है कि सभी अस्पताल प्रशासन को इस समस्या की जानकारी है।
इसके बावजूद इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। ज्यादातर अस्पतालों के आला अधिकारियों का कहना है कि अगर गंभीर हालत में कोई मरीज आएगा तो दूसरे अस्पतालों में रेफर कर देंगे। कुछ प्रशासकों का कहना है कि आईसीयू वार्डो के बाहर बेड लगाकर आईसीयू जैसी सुविधा देने की कोशिश करेंगे।
राजधानी के अस्पतालों की यह हालत तब है जब कुछ दिन पहले ही एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर करने के दौरान एक मरीज की मौत हो गई। बताते चलें कि इस मामले को हाईकोर्ट ने भी गंभीरता से लिया था।
बाड़ा हिंदू राव अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. पीपी सिंह कहते हैं कि अस्पताल में आईसीयू का एक भी बेड खाली नहीं है। अगर किसी गंभीर मरीज को लाया जाएगा तो आईसीयू में पहले से भर्ती किसी मरीज को वार्ड में शिफ्ट कर एडजस्ट करने की कोशिश करेंगे।
इसी प्रकार, डीडीयू के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. जिलेदार सिंह कहते हैं कि गंभीरमरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर करने के सिवाए कोई और चारा नहीं है। एलबीएस के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरए गौतम कहते हैं कि अस्पताल काफी छोटा है और यहां कुल सौ बेड हैं। आईसीयू में तो केवल छह बेड हैं।
ऐसे में एक भी बेड खाली रहने का सवाल ही नहीं उठता है। इसके अलावा, बच्चों के लिए भी अलग से कोई आईसीयू बेड नहीं है। एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा कहते हैं कि इस मौसम में सांस संबंधित शिकायतों को लेकर काफी संख्या में मरीज आते हैं, इसलिए, नेबूलॉजर, मेडिसिन आदि की विशेष व्यवस्था की गई है।
अगर कोई गंभीर स्थिति में मरीज आता है तो आईसीयू वार्ड के बाहर ही बेड लगाकर आईसीयू सूविधा देने की कोशिश करते हैं। वैसे भी मरीजों की समस्याएं बढ़ाने में मौसम भी अपनी भूमिका निभा रहा है।
इन दिनों दिल्ली सहित पूरा एनसीआर कड़ाके की ठंड की चपेट में है और घने कोहरे ने भी दस्तक दे दी है। विशेषज्ञों के मुताबिक बुजुर्ग, बच्चे, तथा दिल व सांस की बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए तो यह मौसम काफी नाजुक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक ठंड में हृदयघात के सर्वाधिक मामले प्रकाश में आते हैं।
अस्पताल-आईसीयू बेडों की संख्या
एम्स 600
लाल बहादुर अस्पताल 06
डीडीयू 10
एलएनजेपी 20
बाड़ा हिंदूराव 12(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,18.12.2010)
ऐसे में एक भी बेड खाली रहने का सवाल ही नहीं उठता है। इसके अलावा, बच्चों के लिए भी अलग से कोई आईसीयू बेड नहीं है। एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा कहते हैं कि इस मौसम में सांस संबंधित शिकायतों को लेकर काफी संख्या में मरीज आते हैं, इसलिए, नेबूलॉजर, मेडिसिन आदि की विशेष व्यवस्था की गई है।
अगर कोई गंभीर स्थिति में मरीज आता है तो आईसीयू वार्ड के बाहर ही बेड लगाकर आईसीयू सूविधा देने की कोशिश करते हैं। वैसे भी मरीजों की समस्याएं बढ़ाने में मौसम भी अपनी भूमिका निभा रहा है।
इन दिनों दिल्ली सहित पूरा एनसीआर कड़ाके की ठंड की चपेट में है और घने कोहरे ने भी दस्तक दे दी है। विशेषज्ञों के मुताबिक बुजुर्ग, बच्चे, तथा दिल व सांस की बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए तो यह मौसम काफी नाजुक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक ठंड में हृदयघात के सर्वाधिक मामले प्रकाश में आते हैं।
अस्पताल-आईसीयू बेडों की संख्या
एम्स 600
लाल बहादुर अस्पताल 06
डीडीयू 10
एलएनजेपी 20
बाड़ा हिंदूराव 12(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,18.12.2010)
जब बीमार खूब सारे होंगे
जवाब देंहटाएंमरने को तैयार नहीं होगी बीमारी भी
तो जगह कैसे मिलेगी
हिन्दी ब्लॉगिंग में टेढ़ापन नहीं है : सीधे सीधे कह रहे हैं पाबला जी
अस्पतालों में बेड्स की संख्या , आबादी के अनुपात में नहीं बढ़ी । इसलिए शोर्टेज हमेशा रहती है ।
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि बेड के साथ ही आईसीयू में बैड बढ़ा देने चाहिए। क्योंकि अधिकतर मरीज चंद दिन में वार्ड में ही चले जाते हैं।
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - एक सलाह - पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु आगे आएं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा