रविवार, 19 दिसंबर 2010

कैंसर के आयुर्वेदिक इलाज़ की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति

कैंसर पर एक और जीत। आयुर्वेद इस असाध्य बीमारी के मरीजों के लिए जीने की ताकत बनेगा। शोध से पता चला है कि प्रारंभिक अवस्था में कैंसर को रोकने के साथ ही द्वितीय, तृतीय या चतुर्थ चरण के मरीजों में भी आयुर्वेदिक रसायनों का उपयोग एलोपैथिक इलाज के साथ करने से कैंसर पर नियंत्रण पाया जा सकता है। खास बात यह कि आयुर्वेदिक योग में हीरा व गोमूत्र को कैंसर के प्रभाव को रोकने में विशेष रूप से कारगर माना गया है। बंगलुरु में 9-13 दिसंबर तक आयोजित चतुर्थ विश्र्व आयुर्वेद कांग्रेस में राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय हंडिया (इलाहाबाद) के प्रो.जीएस तोमर और इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी, कैलीफोर्निया के प्रो.सेंथामिल सेलवन ने आयुर्वेद की इस उपलब्धि पर शोध प्रस्तुत किया। डॉ.तोमर के मुताबिक आयुर्वेदिक रसायनों की मदद से कैंसर को प्रारंभिक अवस्था में ही रोका जा सकता है। हीरे की भस्म, बिलावा, अश्र्वगंधा, आंवला, भुई आंवला, गुलूची व गोमूत्र से तैयार आयुर्वेदिक योग कैंसर पर नियंत्रण पाने में प्रभावी हैं। इनमें हीरे की भस्म और गोमूत्र कैंसर की वृद्धि रोकने में सबसे अहम हैं। दरअसल, हीरा में ऐसा उत्प्रेरक प्रभाव होता है जो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि पर लगाम लगाता है। गोमूत्र भी कोशिकाओं की झिल्ली पर जमे अपशिष्ट पदार्थो को हटाकर रक्त में औषधियों की बायो एबिलिटी को बढ़ाता है। शोध के दौरान 45 मरीजों पर इस आयुर्वेदिक योग के बेहतर परिणाम रहे। प्रो.सेंथामिल सेलवन ने भी इन्हीं आयुर्वेदिक रसायनों के जरिए किए गए शोध में पता लगाया कि इनकी मदद से द्वितीय, तृतीय या चतुर्थ अवस्था यानि बेहद गंभीर स्थिति के कैंसर रोगियों का इलाज भी सुगम बनाया जा सकता है। एलोपैथी इलाज के साथ इन आयुर्वेदिक रसायनों का प्रयोग करिश्माई असर करता है(अमित पांडे,दैनिक जागरण,इलाहाबाद,18.12.2010)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीदिसंबर 19, 2010

    बदिया जानकारी के लिए धन्यवाद

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  2. अच्छी जानकारी दी। आभार आपका।

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  3. अब जल्दी से ये इलाज हर अस्पताल मे पहुंचे तो मर्मातंक पीड़ा से लोगो को आऱाम मिले। इस बीमारी ने न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया है। पर इंसान की फितरत सुधरती ही नहीं है।

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