शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय में हुआ बाहर आए मूत्राशय का इलाज़

छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विवि के एक डॉक्टर ने चिकित्सा क्षेत्र के इतिहास में एक और पन्ना जोड़ा है। विवि के पीडियाट्रिक सर्जरी के विभागाध्यक्ष प्रो.एसएन कुरील ने एक्सट्रॉफीग्रस्त उस 13 वर्षीय बच्ची का सफल इलाज किया है जिसके शरीर से हमेशा मूत्र टपकता रहता था। इस जन्मजात बीमारी ने उसका जीवन कष्टदायी बना दिया था। बच्ची स्कूल भी नहीं जा पा रही थी। यह सर्जरी इसलिए भी खास है क्योंकि इसे करने में देश के ही नहीं अमेरिका के डॉक्टर भी असफल हो गए थे। चिकित्सा विवि में डॉ.एसएन कुरील के ऑपरेशन करने के बाद बच्ची सामान्य है। गुरुवार को बच्ची माता-पिता के साथ मुंबई अपने घर वापस चली गई। डॉ.कुरील ने बताया कि जन्म के समय बच्ची का मूत्राशय शरीर के बाहर था जिसमें से हमेशा मूत्र रिसता रहता था और जननांग भी खुले हुए थे। बच्ची का पहला ऑपरेशन वर्ष 1997 में मुंबई के एक बड़े अस्पताल में किया गया लेकिन इसके बाद भी समस्या बनी रही। वर्ष 2003 में अमेरिका के एक मशहूर यूरोलॉजिस्ट ने दोबारा उसका ऑपरेशन आंध्र प्रदेश में किया। छह घंटे तक लगातार चला यह ऑपरेशन भी असफल रहा। वर्ष 2004 में लंदन के ग्रेट ऑरमॉण्ड स्ट्रीट के विशेषज्ञ ने मुंबई में इस बच्ची को देखा और सलाह दी कि इसका इलाज यही है कि कैथेटर लगाकर हर आधे घंटे में मूत्र निकाला जाए। इन असफलताओं के चलते बच्ची तकलीफ को लगातार झेलती रही। इसी वर्ष फरवरी में डॉ.एसएन कुरील ने मुंबई के एक अस्पताल में जब इस बीमारी पर व्याख्यान दिया तो इससे प्रेरित होकर इस अनोखे केस को चिकित्सा विवि रेफर कर दिया गया। यहां बीते 22 नवंबर को बच्ची का ऑपरेशन किया गया। सर्जरी आठ घंटे चली जो सफल रही। 24 दिन के भीतर बच्ची के सभी कैथेटर एक-एक करके निकाल दिए गए। कैथेटर निकलने के बाद बच्ची सामान्य ढंग से मूत्र त्याग करने लगी। अब उसकी समस्या पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। डॉ.कुरील ने बताया कि इस पूरी सर्जरी में लगभग 75 हजार रुपये खर्च हुए हैं। हालांकि इसके पहले उसके माता-पिता लाखों रुपये खर्च कर चुके थे(दैनिक जागरण,लखनऊ,17.12.2010)।

अमर उजाला की रिपोर्टः
छत्रपति शाहू जी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जन ने वह कर दिखाया जो मुंबई, अमरीका और इंग्लैंड के डॉक्टर भी नहीं कर पाए। १३ साल से पेशाब टपकने की जन्मजात बीमारी के साथ जी रही बेबी शेट्टी को चिविवि के पीडियाट्रिक सर्जन प्रो. एसएन कुरील ने एक नई जिंदगी दे दी। आठ घंटे तक चली लंबी सर्जरी के बाद बेबी शेट्टी को पेशाब टपकने की समस्या से निजात मिल गई। सर्जरी के बाद बृहस्पतिवार को अपने माता-पिता के साथ मुंबई वापस चली गई।
प्रो. एसएन कुरील ने बताया कि बेबी शेट्टी १६ अप्रैल १९९७ को मुंबई में पैदा हुई थी। उसे जन्मजात विकृति एक्सट्रॉफी थी। इस बीमारी में पेशाब की थैली जन्म से ही बाहर निकली रहती है। इसकी वजह से पेशाब लगातार बाहर टपकता रहता है। उन्होंने बताया कि बच्ची के पैदा होते ही मुंबई के नानावती अस्पताल के पीडियाट्रिक यूरोलॉजिस्ट ने उसकी सर्जरी कर पेशाब की थैली बंद कर दी। इसके बावजूद बेबी की पेशाब रिसने की समस्या ठीक नहीं हुई। जिससे उसके पास से लगातार बदबू आती रहती थी। जब शेट्टी छह साल की हुई तो मुंबई के चिकित्सकों की सलाह पर यूएसए के एक चिकित्सक ने आंध्र प्रदेश के सत्य साईं इंस्टीट्यूट में उसकी सर्जरी की। इस सर्जरी में बेबी के माता-पिता का लाखों का रुपये खर्च हुए लेकिन उसे पेशाब रिसने की समस्या से निजात नहीं मिली। इसके एक साल बाद मुंबई में ही इंग्लैंड के एक यूरोलॉजिस्ट ने बेबी को देखा और सर्जरी के लिए मना करते हुए उसके कैथेटर लगाने की सलाह दी।
प्रो. कुरील ने बताया कि २२ फरवरी २०१० को मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल ने उन्हें एक्सट्रॉफी की सर्जरी के बारे में लेक्चर देने के लिए बुलाया था। यहां उन्होंने वीडियो लेक्चर देकर इस जन्मजात विकृति को सही करने के बारे में बताया था। इस लेक्चर को सुनने के बाद मुंबई के डॉक्टरों ने बेबी को सर्जरी के लिए उनके पास रेफर कर दिया। उन्होंने कई हफ्तों की जांच और पड़ताल के बाद २२ नवंबर को चिविवि में आठ घंटे तक सर्जरी की। उसे पीडियाट्रिक आईसीयू में रखा। १६ दिसंबर को बेबी के सभी कैथेटर निकाल दिए गए। इसके बाद न तो उसे पेशाब रिसने की समस्या हुई और न ही पेशाब त्यागने में कोई दिक्कत।

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