कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) के वैज्ञानिक ने मसूर की नयी प्रजाति विकसित की है जो पचने में आसान है। पीले रंग की मसूर का दाना पुरानी प्रजाति के मुकाबले जहां दो गुनी उपज देगा वहीं फसल के तैयार होने में समय भी कम लगेगा। इतना ही नहीं नयी प्रजाति पकने में भी बहुत कम समय लेगी। कुकर की पहली सीटी बजने के भी पहले मसूर की दाल पक जायेगी।
सीएसए के दलहन विभाग ने अब तक 57 प्रजातियां रिलीज की हैं। उर्द, मसूर, मटर व मूंग की चार नयी प्रजातियां रिलीज होने की कगार पर हैं। सीएसए के अर्थ वनस्पति शास्त्रीय दलहन डॉ. एएस राठी ने बताया कि मसूर की बाहर से जो प्रजाति लाए थे वह भारतीय परिवेश में तैयार होने में 180 दिन लेती थीं। क्रास कराने के बाद मसूर की नयी प्रजाति केएलबीबी विकसित की है। जो 110 दिन में तैयार हो जायेगी। पीले रंग की मसूर की इस प्रजाति का दाना पुरानी प्रजाति की तुलना में दोगुने आकार का है जिससे नमकीन में इस प्रजाति की खास मांग होगी। खास बात यह है कि इसको पकाने में गैस भी कम खर्च होगी क्योंकि सीटी बजने के पहले यह कुकर में पक जायेगी। अब तक मसूर की नौ प्रजातियां विकसित कर चुके हैं।
कम समय में खेत पर तैयार होगा हरा उर्द
डॉ. राठी ने बताया कि हरे उर्द में रोग लग जाता था तो उपज 13 से 14 कुंतल प्रति हेक्टेयर आती थी। इसको तैयार होने में 110 में 140 दिन लगते थे। इस पर उर्द की प्रजाति शेखर विकसित की। यह प्रजाति पाचक है, खाने में इससे गैस नहीं बनती। जायद में यह 75 दिन में तैयार होती है। इसकी उपज 19 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। उर्द की दस प्रजातियां विकसित की जा चुकी हैं।
जय व इंद्र : डॉ. राठी ने बताया कि मटर की प्रजाति जय और इंद्र से उपज 38 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह 120 दिन में तैयार हो जाती है। चने की आठ प्रजातियां विकसित हुई हैं(दैनिक जागरण,कानपुर,29.12.2010)।
जय व इंद्र : डॉ. राठी ने बताया कि मटर की प्रजाति जय और इंद्र से उपज 38 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह 120 दिन में तैयार हो जाती है। चने की आठ प्रजातियां विकसित हुई हैं(दैनिक जागरण,कानपुर,29.12.2010)।
आद.राधा रमण जी,
जवाब देंहटाएंनई जानकारी के लिए शुक्रिया !
इस शोध से अगर इंधन बचाता है तो माध्यम वर्ग को बहुत राहत मिलेगी !
धन्यवाद!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
इस नई और उपयोगी जानकारी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.