दिल की बंद नली खोलने की एशिया की पहली अत्याधुनिक विधि भारत में सफल रही है। क्लीनिकल ट्रायल (परीक्षण) के तहत की गई इस नई प्रक्रिया में एक निष्क्रिय पदार्थ से बना ऐसा इम्प्लांट डाला गया जो दो साल में कार्बन डायऑक्साइड एवं पानी बन कर शरीर में ही घुल जाएगा।
दावा किया जा रहा है कि आने वाले समय में करीब ८० प्रतिशत एंजियोप्लास्टी इसी विधि से होने लगेगी। पारंपरिक एंजियोप्लास्टी की कुछ कमियां हैं। माना जा रहा है कि नई विधि में सारी कमियां दूर हो जाएंगी। एशिया में इस नई विधि को अंजाम दिया फोर्टिस एस्कॉर्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोवास्कुलर साइंसेज के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ ने। इस परीक्षण के लिए बिहार के ६५ वर्सीय एमपी सिंह को एशिया के पहले मरीज के तौर पर चुना गया। डॉ. अशोक सेठ ने बताया कि यूरोप, एशिया , कनाडा व लेटिन अमेरिका के सौ केंद्रों में एक हजार मरीजों पर यह परीक्षण होना है। अब तक दो सौ मरीजों में इस विधि का प्रयोग सफल हो चुका है। दिल्ली का एस्कॉर्ट इस विधि को अंजाम देने वाला भारत का पहला अस्पताल है। उन्होंने बताया कि इस इम्प्लांट के बाजार में बिकने के पहले उसे क्लीनिकल परीक्षण के तौर पर दिल के १०० मरीजों पर आजमाया जाएगा। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने इस क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दे दी है। पारंपरिक स्टेंट की यह लेटेस्ट पीढ़ी करीब डेढ़ साल में दिल के आम मरीजों में लगाया जाने लगेगा। दिल की बंद नली को खोलने के लिए लगाया जाने वाला धातु का स्टेंट पहले जीवन पर्यंत मरीज की दिल की नली में जस का तस रह जाता था। इस नई विधि में लगाया गया स्टेंट दो साल में गल कर शरीर में ही मिल जाएगा(नई दुनिया,दिल्ली,11.12.2010)।
हमारे लिए भी बिल्कुल नई जानकारी । बात करते हैं अशोक सेठ से ।
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