महिलाओं में होने वाले सर्वाइकल कैंसर के महंगे और विवादित टीकों का भारत की गरीब लड़कियों पर परीक्षण जारी रहेगा। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने ट्रायल के दौरान हुई मौतों के मामले में इन टीकों को पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है। इस मामले की जांच कर रहे पीजीआई, लखनऊ के पूर्व निदेशक एसएस अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति ने स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आंध्र प्रदेश के खमम जिले में जिन तीन आदिवासी लड़कियों की मौत का कारण इन टीकों को बताया जा रहा है, उनकी मौत दरअसल दूसरे कारणों से हुई थी। लड़कियों को ह्यूमन पेपीलोमा वायरस (एचपीवी) के टीके लगाए जरूर गए थे, लेकिन इनकी मौत की वजह ये टीके नहीं थे। एसएस अग्रवाल समिति ने इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। इसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्त्री रोग विशेषज्ञ सुनीता मित्तल और स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्व महानिदेशक एसपी अग्रवाल सहित कई विशेषज्ञ शामिल थे। अग्रवाल समिति की इस रिपोर्ट से पहले इस साल की शुरुआत में ही आईसीएमआर ने स्वास्थ्य मंत्रालय को अपनी आकलन रिपोर्ट सौंपी थी। तब भी कहा गया था कि इस टीके में कोई खराबी नहीं है। आंध्र प्रदेश और गुजरात के दो जिलों में बहुत बड़ी संख्या में दस से 14 साल की लड़कियों को ये टीके लगाए गए थे। दरअसल, भारत में दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्वास्थ्य मंत्रालय ने अक्टूबर 2008 में ही सर्वाइकल कैंसर के टीके बेचने की इजाजत दे दी थी। यहां बिना क्लीनिकल ट्रायल के ही इन्हें यह इजाजत दे देने की वजह से विवाद हुआ तो पिछले साल इन कंपनियों ने यह ट्रायल शुरू कर दिया। इससे पहले सर्वाइकल कैंसर के टीके तब विवाद में आए थे, जब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने बिना इजाजत लिए ही इसका विज्ञापन जारी कर दिया था। भारत में हर साल 1.32 लाख महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर हो रहा है। इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां इसका बड़ा बाजार देख रही हैं(दैनिक जागरण,दिल्ली, ११.12.2010)।
महिलाओं में नंबर एक कैंसर को रोकना बहुत ज़रूरी है । आशा करते हैं कि ये ट्राइल सफल रहे ।
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