जिदंगी की हर सांस के लिए जूझता रोगी। दवा से दुआ तक की मांग, लेकिन दवा कंपनियों और डॉक्टरों के नापाक गठजोड़ को चिंता है तो सिर्फ मुनाफे की। कैंसर जैसी बीमारी में भी यह अपना पूरा खेल खेल रहे हैं। इसका परिणाम है कि बाजार में दवाएं 3210 फीसदी तक महंगी बिक रही हैं। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के शोध और दैनिक जागरण के सर्वे में यह बात सामने आई है। एनपीपीए के शोध में पाया गया कि बाजार में कैंसर की पांच ऐसी दवाइयां हैं, जिन्हें कई कंपनियां बनाती हैं और हर कंपनी मनमाने दाम पर बेचती है। स्विट्जरलैंड की कंपनी नोवार्टिस स्तन कैंसर की दवा लेट्रोजोल करीब दो हजार रुपये में बेच रही है। हैदराबाद की हेटेरो कंपनी की इसी दवा की कीमत मात्र साठ रुपये है। एनपीपीए ने अपने शोध में पाया है कि विदेशी कंपनियां जिस दवा को ऊंचे दाम में बेचती हैं, स्वदेशी कंपनियां उसी दवा को काफी कम दाम में बेचने में समर्थ हैं। दैनिक जागरण ने कुछ अन्य बीमारियों की दवाओं का अध्ययन किया। इसमें नोवार्टिस कंपनी की इमाटिनिब 400 एमजी की 10 गोली की कीमत 41152 रुपये है, जबकि समान कार्य करने वाली ग्लेनमार्क कंपनी की यही दवा 3000 रु.में उपलब्ध है। नोजोलामाइड 250 एमजी 10 गोली की डॉ. रेड्डी की गोलियां सन फार्मास्यूटिकल की तुलना में चार गुनी महंगी हैं। इलीलिली पेमेट्रेक्सड 500 एमजी का एक इंजेक्शन 73660 रुपये रुपये में दे रही है तो ग्लेनमार्क 11990 रुपये में बेच रही है। यह अंतर भी छह गुना है। एक अन्य कंपनी फाइजर एक्समेस्टेन नाम की 25 एमजी की 30 गोलियां 4135 रुपये में दे रही है तो यही दवा नाक्टो नामक कंपनी 1290 रुपये में देती है। दवाओं की कीमतों में इतना अंतर होने के बावजूद महंगी दवाएं बेचने वाली कंपनियों मालामाल हैं। वजह यह है कि डॉक्टर भारी कमीशन मिलने के कारण मरीजों को उसी कंपनी की दवाएं लिखते हैं।
विक्रेता को एक पर एक फ्री का ऑफर :
बाजार के अध्ययन में यह भी पता चला कि कैंसर की दो दवाएं तो ऐसी हैं, जिनके निर्माता फुटकर और थोक विक्रेताओं को एक डिब्बा दवाई खरीदने पर एक डिब्बा मुफ्त प्रदान करते हैं(राहुल पांडे,दैनिक जागरण,मेरठ,11.12.2010)।
बहुत विचारणीय है.....
जवाब देंहटाएंसच कहा जिदंगी की हर सांस के लिए जूझता रोगी। दवा से दुआ तक की मांग, लेकिन दवा कंपनियों और डॉक्टरों के नापाक गठजोड़ को चिंता है तो सिर्फ मुनाफे की।
जवाब देंहटाएंजीवनदायनी दवा पर भी मुनाफा ही सोचते हैं लोंग
जवाब देंहटाएंअपसे सहमत। वैसे भी जितने साईड एफेक्ट देती हैं उतना लाभ नही। फिर साईड एफेक्ट के लिये भी दवा खाओ मतलव एक बार दवा शुरू तो सारी उम्र उसके गुलाम। जिन्दगी उतनी ही जीनी है जितना भगवान ने दी है। बाजारवाद मे डाक्टरों की और कम्पनियों की साँठ गाँठ से अब आदमी के भगवान भी राक्षस बन गये हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंinsaan ko kahin bhi uska zameer aawaaz nahi deta....kitni sharmnaak baat hai ki doctor jinhe jevan daan ka kam karna chaahiye yamraaj banne par utaaru hai.
जवाब देंहटाएंउपयोगी पोस्ट है!
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से सहमत हूँ!