पुरातन समय से ही दादी के नुस्खों में बतौर दवा जगह पा चुकी हल्दी को दुनिया भर में पंजाब यूनिवर्सिटी की उस शोध से मान्यता मिल जाएगी जिसके बूते यह पता चला है कि हल्दी से निकले तत्व करक्यूमिन को अगर सीमित मात्रा में दिमाग तक पहुंचाया जाए तो इससे अलजाइमर्स, ब्रेन स्ट्रोक, डिप्रेशन और एंग्जाइटी (चिंता, उत्सुकता) की बीमारी पर रोक लगाई जा सकती है। मेडिकल जगत के लिए यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि होगी। इस शोध के जरिये प्री-क्लीनिकल ट्रायल तो हो चुके हैं, लेकिन हफ्ते-दो हफ्ते के भीतर ही पीजीआई में इनके क्लीनिकल ट्रायल भी शुरु हो जाएंगे। पंजाब यूनिवर्सिटी के यूनिवर्सिटी इंस्टीच्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस (यूआईपीएस) में पूरी हो चुकी शोध के हैरतंगेज नतीजे सामने आए हैं। जर्मन के मालीक्यूलर न्यूट्रीशन एंड फूड रिसर्च जर्नल में इस शोध को स्थान मिला है। यूआईपीएस विभाग की डॉ. इंदुपाल कौर, डॉ. कंवलजीत चोपड़ा, बंदिता कक्कड़ व गौरव दबास की टीम ने पिछले चार साल में हल्दी के इन बीमारियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच की। शोध में हैरतंगेज और उत्साहित करने वाले नतीजे सामने आए। हल्दी की ज्यादा मात्रा लेने का तो बीमारियों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन जब इसे नैनो पार्टिकल्स (छोटे कणों) के तौर पर चूहों के शरीर में ब्रेन तक पहुंचाया गया तो टीम को नतीजों में बड़ा उलटफेर देखने को मिला। डॉ. इंदुपाल कौर की टीम ने चूहों पर प्री क्लीनिकल ट्रायल किए और नैनो पार्टिकल्स की शक्ल में हल्दी की बहुत कम मात्रा चूहों के दिमाग तक पहुंचाई। डिप्रेशन में 1 मिली ग्राम से 2.5 मिली ग्राम तक और ब्रेन स्ट्रोक में 1 मिली ग्राम से 50 मिली ग्राम तक। देखने में आया कि हल्दी की एडीएमई (एब्सोर्पशन, डिस्ट्रीब्यूशन, मेटाबोलिज्म और एक्सक्रीशन) काफी प्रभावी रही। लीवर में हल्दी का मेटाबोलिज्म भी ठीक ठाक रहा। हल्दी छन कर बाहर आ गई। नतीजों में सामने आया कि ब्रेन स्ट्रोक 90 प्रतिशत उलट गया। बुजुर्गो में भूलने की लाइलाज बीमारी अलजाइमर में भी प्रभावी नतीजे देखने को मिले। डिप्रेशन और विशेष तौर पर रजोनिवृति (मीनोपॉज) से जुड़ी एंग्जाइटी में हल्दी ने कमाल दिखाया और न्यूरोन (ब्रेन सैल) की अवस्था पूरी तरह से बदल कर रख दी। चूहों के व्यवहार में जबरदस्त परिवर्तन देखने को मिला। मल्टी रिसेप्टर तक पहुंची हल्दी ट्रायल के दौरान चूहों को डिप्रेशन में 1 मिली ग्राम से लेकर 2.5 मिली ग्राम और स्ट्रोक में 1 मिली ग्राम से लेकर 50 मिली ग्राम हल्दी दी गई जो न केवल दिमाग के उन सभी मल्टी रिसेप्टरों तक पहुंची जहां ये तमाम बीमारियां पनपती हैं बल्कि इसने प्रभावी तरीके से उपचार भी किया। मेडिकल भाषा में पहले मल्टी रिसेप्टरों तक पहुंचने वाली ड्रग (दवा)को डर्टी (गंदी) ड्रग का नाम दिया जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरी दवाओं के बिलकुल उलट यह विशेष साइट पर न पहुंचकर मल्टी टारगेट यानि कई साइटों पर काम करती थी और उत्साहजनक असर डालती थी। मेडिकल भाषा में इसे प्लूरी फार्मेकोलॉजी कहा जाता है। डॉ.इंदुपाल कौर ने बताया कि अलजाइमर और कैंसर जैसी बीमारियों में भी विशेष साइट पर नहीं बल्कि कई टारगेट साइट पर पहुंचने की जरूरत होती है और हल्दी में शोध के दौरान यह विशेषता पाई गई। हल्दी के प्रभाव को जानने के लिए चूहों का हल्दी खिलाने के बाद डाइसेक्शन (काटना) किया गया तो विभिन्न न्यूरोंस (दिमाग के सैल) में हल्दी पहुंचने का टीम को पक्का सबूत मिल गया। डॉ. इंदुपाल कौर ने बताया कि करक्यूमिन फ्लोरोसेंट होती है । लिहाजा, डाइसेक्शन के दौरान दिमाग के विभिन्न हिस्सों में हल्दी अपनी चमकने की विशेषता से पहचानी गई। उन्होंने हल्दी की स्टेबिल्टी (ठहराव)के बारे बताया कि लिपिड नैनो पार्टिकल्स की शक्ल में हल्दी डीग्रेड नहीं होती। उन्होंने बताया कि हल्दी सॉलिड लिपिड की शक्ल में शरीर के भीतर पहुंची, जबकि अभी तक इन बीमारियों पर जो एक्सपेरीमेंट हुए उनमें पोलीमर्स से निर्मित दवा दी जाती थी जिसकी टॉक्सिीसिटी होती है(साजन शर्मा,दैनिक जागरण,चंडीगढ़,3.12.2010)।
हल्दी के गुण तो जाने माने हैं । लेकिन अब यदि चिकित्सा में व्यवसायिक रूप में भी प्रयोग होने लगे तो ये एक उपलब्धि होगी ।
जवाब देंहटाएंहल्दी अत्यंत चमत्कारी औषधि है । हल्दी का एक बड़े चम्मच की मात्रा को गर्म दूध के साथ सुबह और रात को सोते समय नियमित रूप से उपयोग करने पर ऑस्टियोआर्थराइटिस,संधिवात,गठिया निश्चित रूप से ठीक हो जाता है ।
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