अक्सर यह देखा जाता है कि मनपंसद वस्तु का ख्याल आते ही मुंह से लार टपकना शुरु हो जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा होने से आपकी खाने की उत्कंठा भी काफूर हो सकती है? जी हां,यह सच है ! एक नए शोध में बताया गया है कि किसी मनपंसद खाद्य के बारे में बार-बार सोचने व कल्पना करने से वास्तविक भूख प्रभावित हो सकती है। मसलन जैसे आपको गुलाब जामुन काफी पसंद है और उसके बारे में सोचने लगते हैं तो संभव है गुलाब जामुन खाने की वास्तविक उत्कंठा प्रभावित होगी, और इससे इच्छित मात्रा से कम संख्या में ही उसका सेवन कर पाऐंगे। कारनेगी मिलॉन यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों द्वारा किए इस नए शोध में कहा गया है कि इच्छित वस्तु के बारे में अधिक सोचने से उपभोग का वास्तविक स्तर गिर सकती है। नए शोध ने इस बात को झुठला दिया है कि जिन इच्छित वस्तु को खाने की इच्छा अधिक होती है उसे व्यक्ति अधिक मात्रा में खा जाता है। शोधार्थियों के एक दल ने इस संबंध में कई परीक्षण किए और इस नतीजे पर पहुंचे कि किसी खाद्य पदार्थ को खाने के बारे में बनाई गई धारणा और कल्पना से बॉडी की न्यूरल मशीनरी बाधित होती है, जो न केवल व्यक्ति के चित्त को प्रभावित होती हैं बल्कि इससे उसकी प्रवृत्ति, आदत व व्यवहार भी प्रभावित हो जाती है। शीर्ष शोधकर्ता व सोशल व डिसीजन साइंस प्रोफेसर कैरे मोरवेज कहते हैं कि नए शोध ने उस पुरानी मान्यता को गलत ठहरा दिया है जिसमें यह माना जाता था कि किसी खाद्य को खाने की इच्छा अथवा उत्कंठा को दबाने से उपभोग स्तर में वृद्धि होती है। क्योंकि शोध के दौरान पाया गया कि मारसेल नामक एक खाद्य पदार्थ को खाने से पूर्व लगातार कल्पना करने वाले लोगों ने उस खाद्य का कम मात्रा में सेवन किया जबकि इसकी तुलना में जिन लोगों ने इच्छित खाद्य को खाने के बारे में कम कल्पना की उनकी उपभोग मात्रा बिलकुल इसके उलट थी। शोधार्थियों ने कहा कि शोध से मिले परिणाम से भविष्य में ऐसी तकनीक विकसित की जा सकती है जिससे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थो जैसे अधिक चर्बी युक्त फूड सिगरेट, ड्रग्स की ओर लोगों की बढ़ती उत्कंठा व लालसा को कम किया जा सके। शोधार्थियों को उम्मीद है इससे स्वस्थ खाद्य पदार्थो के चुनाव में भी लोगों की मदद की जा सकेगी(दैनिक जागरण,भोपाल संस्करण,13.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।