पाइल्स या बवासीर एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी का स्वास्थ्य काफी दयनीय हो जाता है। साथ ही असहनीय पीड़ा भी सहन करना पड़ती है। योग शास्त्र में इस रोग की पीड़ा से निपटने के लिए श्रेष्ठ मुद्रा महामुद्रा बताई गई है।
महामुद्रा की विधि
किसी स्वच्छ और साफ स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं। अब दाहिने पैर को मोड़ते हुए एड़ी को गुदा द्वार के नीचे रखें। इसके बाद झुकते हुए बाएं पैर के अंगूठे को दोनों हाथों से पकड़ें तथा सांस लें। मूल बंध एवं जालंधर बंध लगाएं। कुंभक करते हुए अंतर्चेतना को ऊध्र्वमुखी बनाने का प्रयास करें। कुण्डली चक्रों का ध्यान करें एवं बंध हटाएं। धीरे-धीरे रेचक क्रिया करें। यही क्रम दाहिने पैर से करें। एवं यथा संभव कुंभक करें। यह मुद्रा कम से कम 4-5 बार करें।
जालंधर बंध, पूरक, रेचक, कुंभक आदि से संबंधित लेख पूर्व में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
मुद्रा के लाभ
इस मुद्रा से पेट संबंधी रोग जैसे कब्ज, एसीडिटी, कब्ज, अपच जैसी बीमारियां दूर होती हैं। बवासीर और प्रमेह का नाश होता है। ध्यान के लिए उत्कृष्ट एवं कुंडली जागरण में यह मुद्रा काफी फायदेमंद है। बढ़ी हुई तिल्ली एवं क्षय रोग (टीबी) में भी यह मुद्रा लाभ पहुंचाती है। पुराना बुखार भी इस मुद्रा से ठीक हो जाता है(दैनिक भास्कर,उज्जैन,12.12.2010)।
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