तापमान घट रहा है। पारा गिरना शुरू हो चुका है। ठंडी हवाओं ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसका असर बच्चों, बुजुर्गों व कफ प्रकृति के लोगों पर अधिक होता है। इन दिनों अस्पताल में आने वाले मरीजों में से हर १० में से छह मरीज ठंड की वजह से किसी न किसी रूप से पी़ड़़ित होकर आ रहा है। जा़ड़े में घर का कोई सदस्य पेट दर्द, फ्लू व थकान की शिकायत करे तो संभव है उसे कोई दूसरी बीमारी हो। हर कोई जानता है कि सर्दी फ्लू, जो़ड़ों में दर्द आदि के लिए अनुकूल मौसम है, लेकिन ज्यादातर लोगों को यह नहीं मालूम है कि यह दिल के दौरे के लिए भी यह बेहद अनुकूल मौसम होता है। राजधानी में ६० फीसदी दिल के दौरे जा़ड़े में ही प़ड़ते हैं। ठंड के शुरुआती अटैक से यदि नहीं बचे तो वायरल, अस्थमा, अर्थराइटिस व एंफ्लूएंजा जैसी बीमारियां प्रभावित कर सकती हैं।
मेदांता मेडिसिटी के इंटर्वेंशनल कार्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रवीण चंद्रा के अनुसार जा़ड़े के दिनों में दिल के दौरों का खतरा गर्मी के दिनों से दो गुना ज्यादा हो जाता है। यही नहीं इस मौसम में दिल के दौरे की संभावना वर्ष के किसी भी अन्य मौसम से ज्यादा रहती है। इस मौसम में तापमान में गिरावट व ठंड के ब़ढ़ने से हृदय रोगियों की तकलीफ ब़ढ़ जाती है।
उनके अनुसार ठंड खून में थक्के का खतरा पैदा करने वाले प्रोटीन के स्तरों के साथ-साथ रक्तचाप को ब़ढ़ा देता है। मौसम के ठंड होने पर शरीर की गर्मी बनाए रखने के लिए क़ड़ी मेहनत की जरूरत होती है ताकि हृदय की धमनियां न जमे। इस मौसम में धमनियां सख्त हो जाती हैं, जिससे रक्तसंचार में रुकावट आती है और हृदय को ऑक्सीजन कम मिलती है। इन तत्वों के साथ साथ होने पर दिल का दौरा प़ड़ता है, खासकर हृदय रोगियों व बुजुर्गों को।
जा़ड़े के मौसम में अधिकतर सूर्य के ढंके होने से धूप की कमी हो जाती है। धूप की कमी से मूड की समस्याओं के साथ-साथ तनाव का खतरा ब़ढ़ जाता है, जिसका बुरा असर हृदय पर प़ड़ता है। दिल के दौरे के मरीजों के अध्ययन से पता चला है कि उनमें विटामिन डी का स्तर स्वस्थ्य लोगों की तुलना में कम होता है। जा़ड़े में दिल के दौरे में होने वाली वृद्घि का एक अन्य कारण फ्लू है।
एस्कॉर्ट हार्ट अस्पताल के इंटरवेंशन कॉर्डियोलॉजी के निदेशक डॉ. अतुल माथुर के अनुसार जा़ड़े में गर्म रहें। ठंड के कारण खून की नलियां सिकु़ड़ जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह कम हो जाता है। जिन लोगों की धमनियां पहले से ही प्लाक से अवरुद्घ हों, उनमें खून की नलियों के बंद होने का खतरा अधिक रहता है।
सर्दी से बचाव का ज़रूर रखें ध्यान
*घर से गर्म कप़ड़े पहन कर निकलें
* हवा से खुद को बचाएं
* पूरे शरीर को ढंक कर रहें। सिर का ढंका होना जरूरी है
* खानपान पर विशेष ध्यान दें
* शरीर को गर्म कप़ड़ों से ढंक कर रखें ताकि पर्याप्त गर्मी मिलती रहे
* ठंड की वजह से लोग पानी नहीं पीते, जिससे डिहाइड्रेशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। कम से कम १० गिलास पानी रोज पीएं
* मधुमेह, हाइपरटेंशन के शिकार लोग व वृद्घों को एंफ्लूएंजा शॉट लें।
* अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखें
* यदि आप व्यायाम नहीं करते हैं तो जोश में आकर जरूरत से ज्यादा श्रम न करें
* बहुत अधिक अल्कोहल का सेवन न करें
* कैलोरी से भरा आहार लें
* यदि अनियंत्रित उच्च रक्तचाप से प्रभावित हों तो सुबह टहलने के लिए न जाएं
सर्दी सताए तो ये उपाय अपनाएँ-
एलोपैथी उपचार
महाजन नर्सिंग होम के निदेशक डॉ. राकेश महाजन के मुताबिक ठंड का असर बच्चों पर ब़ड़ों से ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। नाक बहना, जुकाम, खांसी, सिर दर्द व बुखार को सकता है। साइनस की समस्या हो सकती है। बच्चे न्यूमेनिया के शिकार हो जाते हैं। एलोपैथी में अपने आप दवा लेने की जगह डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ब़ड़े लोग भाप ले सकते हैं और बच्चों को गर्म पानी का बचाव के साथ भाप दिला सकते हैं।
आयुर्वेदिक उपचारः
आयुवर्धक हेल्क केयर के निदेशक ठंड ने यदि असर कर दिया है तो हाथ-पैर में कंपकंपी, बदन व सिर दर्द, उल्टी, दस्त और अरुचित हो सकती है। आयुर्वेद में ठंड लगने पर संजीवनी वटी, चित्रकआदि वटी, आनंद भैरव रस और सुदर्शनगंध वटी जैसी दवाएं चलाई जाती हैं।
यूनानी उपचारः
केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहायक निदेशक डॉ. सैयद अहमद खां के मुताबिक ठंड के मौसम में सुबह-शाम काली मिर्च, लौंग, अदरख व तुलसी की पत्ती डालकर चाय बनाएं और उसे पीएं। चाय में जाफरान भी ले सकते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता ब़ढ़ती है।
यदि ठंड लग गई हो तो सरसों तेल में लहसन व आजवाइन पका लें और उसे सीने व तलवे पर मालिश करें। सुबह-शाम दूध में पांच ग्राम हल्दी उबालकर पीएं, इससे बलगम नहीं बनेगा और न्यूमेनिया का खतरा कम हो जाएगा। खमीरा आपरेशम, सीराउन्नावबाला जैसी यूनानी हवाइयां आधा-आधा चम्मच गर्म पानी से लेने में आराम मिलता है(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,13.12.2010)।
जा़ड़े के मौसम में अधिकतर सूर्य के ढंके होने से धूप की कमी हो जाती है। धूप की कमी से मूड की समस्याओं के साथ-साथ तनाव का खतरा ब़ढ़ जाता है, जिसका बुरा असर हृदय पर प़ड़ता है। दिल के दौरे के मरीजों के अध्ययन से पता चला है कि उनमें विटामिन डी का स्तर स्वस्थ्य लोगों की तुलना में कम होता है। जा़ड़े में दिल के दौरे में होने वाली वृद्घि का एक अन्य कारण फ्लू है।
एस्कॉर्ट हार्ट अस्पताल के इंटरवेंशन कॉर्डियोलॉजी के निदेशक डॉ. अतुल माथुर के अनुसार जा़ड़े में गर्म रहें। ठंड के कारण खून की नलियां सिकु़ड़ जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह कम हो जाता है। जिन लोगों की धमनियां पहले से ही प्लाक से अवरुद्घ हों, उनमें खून की नलियों के बंद होने का खतरा अधिक रहता है।
सर्दी से बचाव का ज़रूर रखें ध्यान
*घर से गर्म कप़ड़े पहन कर निकलें
* हवा से खुद को बचाएं
* पूरे शरीर को ढंक कर रहें। सिर का ढंका होना जरूरी है
* खानपान पर विशेष ध्यान दें
* शरीर को गर्म कप़ड़ों से ढंक कर रखें ताकि पर्याप्त गर्मी मिलती रहे
* ठंड की वजह से लोग पानी नहीं पीते, जिससे डिहाइड्रेशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। कम से कम १० गिलास पानी रोज पीएं
* मधुमेह, हाइपरटेंशन के शिकार लोग व वृद्घों को एंफ्लूएंजा शॉट लें।
* अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखें
* यदि आप व्यायाम नहीं करते हैं तो जोश में आकर जरूरत से ज्यादा श्रम न करें
* बहुत अधिक अल्कोहल का सेवन न करें
* कैलोरी से भरा आहार लें
* यदि अनियंत्रित उच्च रक्तचाप से प्रभावित हों तो सुबह टहलने के लिए न जाएं
सर्दी सताए तो ये उपाय अपनाएँ-
एलोपैथी उपचार
महाजन नर्सिंग होम के निदेशक डॉ. राकेश महाजन के मुताबिक ठंड का असर बच्चों पर ब़ड़ों से ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। नाक बहना, जुकाम, खांसी, सिर दर्द व बुखार को सकता है। साइनस की समस्या हो सकती है। बच्चे न्यूमेनिया के शिकार हो जाते हैं। एलोपैथी में अपने आप दवा लेने की जगह डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ब़ड़े लोग भाप ले सकते हैं और बच्चों को गर्म पानी का बचाव के साथ भाप दिला सकते हैं।
आयुर्वेदिक उपचारः
आयुवर्धक हेल्क केयर के निदेशक ठंड ने यदि असर कर दिया है तो हाथ-पैर में कंपकंपी, बदन व सिर दर्द, उल्टी, दस्त और अरुचित हो सकती है। आयुर्वेद में ठंड लगने पर संजीवनी वटी, चित्रकआदि वटी, आनंद भैरव रस और सुदर्शनगंध वटी जैसी दवाएं चलाई जाती हैं।
यूनानी उपचारः
केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहायक निदेशक डॉ. सैयद अहमद खां के मुताबिक ठंड के मौसम में सुबह-शाम काली मिर्च, लौंग, अदरख व तुलसी की पत्ती डालकर चाय बनाएं और उसे पीएं। चाय में जाफरान भी ले सकते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता ब़ढ़ती है।
यदि ठंड लग गई हो तो सरसों तेल में लहसन व आजवाइन पका लें और उसे सीने व तलवे पर मालिश करें। सुबह-शाम दूध में पांच ग्राम हल्दी उबालकर पीएं, इससे बलगम नहीं बनेगा और न्यूमेनिया का खतरा कम हो जाएगा। खमीरा आपरेशम, सीराउन्नावबाला जैसी यूनानी हवाइयां आधा-आधा चम्मच गर्म पानी से लेने में आराम मिलता है(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,13.12.2010)।
Bade kaam ki jankari..... dhanywad
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