सोमवार, 13 दिसंबर 2010

गुटखा और मुख-स्वास्थ्य

तंबाकू में मौजूद निकोटिन का असर पूरी बॉडी पर प़ड़ेगा। इससे पेट और गले का कैंसर हो सकता है। आपकी सेहत का राज छिपा है आपके दांतों में। अगर आपके दांत तंदुरुस्त नहीं हैं तो समझिए बॉडी भी तंदुरुस्त नहीं। युवाओं में गुटखा खाने का चलन ब़ढ़ता जा रहा है जिसका नतीजा दांतों और मसू़ढ़ों को भुगतना प़ड़ता है। लगातार गुटखे के सेवन से सबम्यूकस फाइब्रोसिस हो जाता है जिससे मुंह खुलना बंद हो जाता है। मुंह नहीं खुलेगा तो दांतों और मसू़ड़ों की सफाई कैसे होगी। मुंह नहीं खुलना कैंसर से ठीक पहले के लक्षण हैं।

आजकल लोग १२ से १३ साल की उम्र में गुटखा खाना शुरू कर देते हैं जिससे उनके दांत अधे़ड़ लोगों की तरह घिस जाते हैं। दांतों पर लगा इनेमल घिस जाता है और दांत संवेदनशील बन जाते हैं। दांतों के पेरिओडोंटल टिश्यू (दांत की हड्डी) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और दांत ढीले हो जाते हैं। भारत में ७० फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। दांतों की गंदगी और नियमित साफ-सफाई न होने के कारण ७०० तरह के बैक्टीरिया खून में पहुंच जाते हैं जो दिल की बीमारी का कारण बनते हैं। लगातार तंबाकू के इस्तेमाल से दांत का रंग भी काला हो जाता है। तंबाकू को लगातार मुंह में रखने से गाल का वह हिस्सा गल जाता है जहां तंबाकू रहता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन और चूना गाल के टिश्यूज को जला देता है यह टिश्यू जलकर कैंसर का कारण बन जाते हैं। शारीरिक रूप से कमजोर युवाओं पर गुटखेका असर सबसे ज्यादा प़ड़ता है। संतुलित खान-पान न होने से गुटखा इन युवाओं में जहर का काम करता है। लगातार गुटखे के सेवन से दांतों के जरिए युवाओं में मुंह का कैंसर, पेट का कैंसर और दिल की बीमारी हो जाती है। 
दांतों पर असर
लगातार गुटके के इस्तेमाल से दांत समय से पहले ढीले व कमजोर हो जाएंगे
पेरिओडोंटल टिश्यू क्षतिग्रस्त होंगे जो कैंसर का कारण बने सकता है
तंबाकू के इस्तेमाल से बैक्टीरिया दांतों में अपनी जगह बना लेंगे जिससे दांत गल सकते हैं(डॉ. बी.के.शिवा,नई दुनिया,दिल्ली,12.12.2010)

ओरल सबम्यूकल फायब्रोसिस का खतरा ४०० गुणा ज्यादा
आज गुटखा माउथफ्रेशनर के लिए एक आम नाम बन गया है। इसमें तंबाकू, सुपारी के साथ कई अन्य खतरनाक पदार्थों को बारीक कर प्लास्टिक पाउच में बेचा जाता है। गुटखे के सेवन से मुख कैंसर के अलावा एक और गंभीर बीमारी होती है जिसे ओरल सबम्यूकस फायब्रोसिस कहते हैं। इस बीमारी में मुंह में तंतु एक फीते की तरह ब़ढ़ता है, जिससे म्यूकस अपना लोच खो देता है और मुंह खोलने की क्षमता कम हो जाती है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मुंह पूरी तरह बंद हो जाता है जिसे बाहरी युक्ति द्वारा खोला जाता है। कैंसर को मुंह में पनपने के लिए यह बीमारी बहुत ज्यादा जिम्मेदार होती है लेकिन इस बीमारी के बारे में जानकारी कम ही है। गुटखा न चबाने वालों की तुलना में गुटखा लेने वाले लोगों में इस बीमारी का खतरा ४०० गुणा ज्यादा होता है।

भारत में पान मसाला का उपयोग माउथ फ्रेशनर की तरह होता है। पान मसाला में मुख्य रूप से सुपारी, खैर, इलाइची, चूना और कई तरह के खूशबू देने वाले कुदरती पदार्थ मौजूद होते हैं। गुटखा पान मसाला का ही एक रूप है जिसमें तंबाकू को पान के फ्लेवर के साथ चबाया जाता है। भारत में पान को लोग भोजन के बाद खाते थे।

ऐसा माना जाता था कि इसमें पाचनकारी गुण पाए जाते हैं लेकिन बदलते जीवनशैली के साथ पान की जगह गुटखा ने ले ली है जो स्वाभाविक रूप से एक आदत सी बन जाती है। पान मसाला की पैठ ८.६ प्रतिशत की दर से शहरों में और ६.६ फीसदी की दर से ग्रामीण इलाकों में ब़ढ़ रही है।

तम्बाकू उत्पादों के ख़तरेः
अत्यधिक हार्ट अटैक
लकवा की संभावना
सभी तरह के कैंसर
महिलाओं में समय से पहले बु़ढ़ापा और प्रजनन शक्ति में ह्रास
पुरुषों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन
पेप्टिक अल्सर
डिमेंशिया(डॉ.के.के. अग्रवाल,नई दुनिया,दिल्ली,12.12.2010)

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक बेहद जरूरी आलेख । आज अनजाने ही बहुत से युवा सही जानकारी न होने से गुटखा आदि के सेवन से मुख-कैंसर से ग्रस्त हो रहे हैं।

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  2. पीट डालना चाहिए इन दुष्टों को जो ये गुटका खाते और खिलाते हैं। सही लिखा आपने। आय ऑलसो डोण्ट लाइक दिस ब्लडी गुट्का।

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