सुप्रीम कोर्ट ने गुटखा और पान मसाला की प्लास्टिक पाउच में बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुनाया है। फैसला स्वागत योग्य है लेकिन इससे तंबाकू के उपयोग, उससे होने वाली स्वास्थ्य हानि और ब़ढ़ते खतरनाक रोगों में कोई कमी आ जाएगी ऐसा नहीं लगता। सर्वोच्च न्यायालय ने कागज के पैकेट में बेचे जाने वाले सिगरेट को अपने इस फैसले से बाहर रखा है। जाहिर है इससे यह सवाल उठेगा कि प्लास्टिक ज्यादा खतरनाक है या तंबाकू?
आजादी की ल़ड़ाई के दौरान नशाबंदी को सबसे अहम मुद्दा मानने वाले महात्मा गांधी और अन्य समाजकर्मियों की लगातार कोशिशों का नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। पूर्ण नशाबंदी लागू नहीं हो पाई और निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना भी नहीं दिखती। सर्वोच्च न्यायालय के इस ताजा फैसले का निष्कर्ष यह है कि "तंबाकू को प्लास्टिक पाउच में न बेचा जाए बेशक उसे कागज के पाउच में बेचें।" सिगरेट लॉबी चूंकि ताकतवर है इसलिए इसके गिरेबान तक किसी कानून का हाथ नहीं पहुंचता। शराब की तो बात ही न करें। तथाकथित सभ्य समाज में स्टेट्स सिंबल बन चुके सिगरेट और शराब अब एक अलग इज्जत प्राप्त कर चुके हैं।"
बहरहाल तंबाकू के खतरे को नजरअंदाज करना न सिर्फ भयानक होगा बल्कि आत्मघाती भी होगा। तंबाकूजनित कुछ आंक़ड़ों पर भी गौर कर लें। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंक़ड़ा कहता है कि १९९७ के मुकाबले वर्ष, २००५ तक तंबाकू निषेध कानूनों के लागू करने के बाद वयस्कों में तंबाकू सेवन की दर में २१ से ३० प्रतिशत की कमी आई थी, लेकिन इसी दौरान हाईस्कूल जाने वाले १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तंबाकू का सेवन ६० प्रतिशत ब़ढ़ गया था। अमेरिकन कैंसर सोसायटी का आंक़ड़ा है कि प्रत्येक १० तंबाकू उपयोगकर्ता में से ९ महज १८ वर्ष की उम्र से पहले तंबाकू का सेवन शुरू कर चुके होते हैं। दुनिया में होने वाली हर ५ मौतों में से एक मौत तंबाकू की वजह से होती है। तंबाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेफ़ड़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिनका इलाज न केवल महंगा बल्कि जटिल भी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन २०५० तक २.२ अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे। इस आकलन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तंबाकू के खिलाफ कानूनी और गैर सरकारी अभियानों की क्या गति है और उसका क्या हश्र है। प्रत्येक ८ सेकेंड में होने वाली एक मौत तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के सेवन से होती है। फिर भी तंबाकू के उपभोग में कमी न होना मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर सवाल है। तंबाकू के ब़ढ़ते खतरे और जानलेवा दुष्प्रभावों के बावजूद इससे निपटने की हमारी तैयारी इतनी लचर है कि हम अपनी मौत को देख तो सकते हैं लेकिन उसे टालने की कोशिश नहीं कर सकते। यह मानवीय इतिहास की एक त्रासद घटना ही कही जाएगी कि कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका की सक्रियता के बावजूद स्थिति नहीं संभल रही। क्या तंबाकू के खिलाफ इस जंग में हमें हमारी नीयत ठीक करने की जरूरत नहीं है?(डॉ.ए.के.अरूण,नई दुनिया,दिल्ली,12.12.2010)
तम्बाकू धीमे जहर के रूप में समाज के सभी वर्ग के लोगों को प्रभावित कर रहा है। तम्बाकू के लिए जनजागरण में मीडिया के साथ ब्लॉगजगत की भी अहम भूमिका हो सकती है। और इसमें राधारमण जी आपने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है इस पोस्ट को लगा कर।
जवाब देंहटाएंज़हर तो ज़हर है , उसे मिट्टी के डोंगे में परोसें या सोने चांदी के ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय विषय है ।