बुधवार, 8 दिसंबर 2010

भापाल का राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कैंसर की अनोखी दवा बनाने के क़रीब

राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की एक रिसर्च प्रदेश और देश में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में उसे अलग पहचान दिला सकती है। विवि का दावा है कि वह कैंसर की ऐसी दवा बनाने के करीब है, जो कैंसर के इलाज में अधिक असरदार तो होगी ही,इसके साइड इफैक्ट्स भी नहीं होंगे। विवि की रिसर्च ऐसे परिणामों तक पहुंच चुकी है,जिसे विश्व नकार नहीं सकता।

कनाडा स्थित ओंटोरियो कैंसर रिसर्च सेंटर ने भी इसके परिणामों को हरी झंडी दे दी है। सबकुछ ठीक रहा तो कैंसर के मरीजों को जल्द ही बड़ी राहत मिल सकेगी।

कैंसर ऐसी बीमारी है,जिससे विश्व में हर साल 74 लाख(कुल मृत्यु दर का 13 फीसदी) लोगों की जानें जाती हैं। डॉक्टर जो भी उपचार करते हैं, वह कैंसर सेल के साथ नॉन कैंसर सेल से भी क्रिया कर लेता है और उसका विपरीत असर होने लगता है।

मतलब ये कि दवा का कितना असर होगा,ये उसकी चयन क्षमता (सिलेक्टिविटी)पर निर्भर करता है। यदि दवा, कैंसर सेल का चयन कर सीधे उसी पर अटैक करे तो इलाज अधिक कारगर होगा। रिसर्च कर रहे फॉर्मेसी छात्र सी कार्तिकेयन बताते हैं कि वे 7 साल से रिसर्च में लगे हैं। हाल में कनाडा के ओंटोरियो कैंसर रिसर्च सेंटर ने इसके परिणामों का विश्लेषण किया है। प्रयोग काफी कारगर साबित हुआ है।

साइड इफेक्ट खतरनाक
फिलहाल जिन दवाओं का उपयोग हो रहा है, वे कैंसर और नॉन कैंसर सेल दोनों पर एक जैसा प्रभाव डालती हैं। नॉन कैंसर सेल पर दवाओं के असर से बाल झड़ना, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, पाचन तंत्र में कमजोरी जैसे साइड इफेक्ट्स सामने आते हैं। कई बार तो साइड इफेक्ट ही मौत का कारण बन जाते हैं।

रिसर्च से होगा ये फायदा
विवि जिस मेडिसिन की रिसर्च में लगा है, वह सिर्फ कैंसर सेल पर ही असर करेगी। इससे ऐसे मॉलिक्यूल निकलते हैं, जो कैंसर सेल से ही क्रिया करेंगे। नॉन कैंसर सेल पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस रिसर्च में ड्रग डिलेवरी को बेहतर बनाया गया है, ताकि वह अन्य सेल के बजाय अपने लक्ष्य पर ही असर करे।

अब क्लिनिकल स्टडी
सी कार्तिकेयन बताते हैं कि 7 सालों में मेकेनेस्टिक रिसर्च पर काम पूरा हो चुका है। जिसें कनाडा के सेंटर ने हरी झंडी दे दी है। अब नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, मेरीलैंड, यूएस (4 लाख से अधिक कंपाउंड की लैब) में क्लिनिकल स्टडी की जाएगी। प्रक्रिया को पूरा होने में दो माह का वक्त लगेगा।

कैंसर के शिकार
-कैंसर मृत्यु
लंग कैंसर-10 लाख से अधिक
स्टमक कैंसर-8 लाख से अधिक
क्लोरेक्टल कैंसर-6 लाख से अधिक
लीवर कैंसर-6 लाख से अधिक
ब्रेस्ट कैंसर-5 लाख से अधिक
(आंकड़े डब्ल्यूएचओ के मुताबिक कैंसर से हर साल औसतन होने वाली मौतों के)

फिलहाल जिन दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है, उनसे इम्यून सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। बाल झड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने जैसे मामले अधिक देखने को मिलते हैं। रिसर्च के बाद ऐसी समस्या नहीं आनी चाहिए-डॉ.श्याम अग्रवाल,कैंसर रोग विशेषज्ञ

रिसर्च के परिणाम वाकई चौंकाने वाले हैं। हमने दो अंतरराष्ट्रीय लैब से समन्वय किया है। कनाडा की लैब से संतोषजनक परिणामों के बाद यूएस की लैब से क्लीनिकल स्टडी की जानी है। इसमें करीब दो माह लगेंगें। कैंसर की सबसे असरदार मेडिसिन एर्लाेटिनिब के परिणाम को भी हमने पीछे छोड़ दिया है-प्रो.पीयूष त्रिवेदी,कुलपति,आरजीपीवी(विहंट सालगट,दैनिक भास्कर,भोपाल,8.12.2010)

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