बुधवार, 8 दिसंबर 2010

उत्तराखंड के बच्चों में बढ़ रही है विकलांगता

उत्तराखंड में पैदा होने वाला हर सातवां बच्चा किसी न किसी प्रकार की विकलांगता की चपेट में है। विकलांगता की गिरफ्त में आए मासूमों की संख्या सूबे में विकलांग पेंशन के लाभार्थियों से भी अधिक हो गई है। हर सातवीं कोख से पैदा होने वाली संतान में विकलांगता का ग्रहण नई चिंता व चुनौती का विषय है, लेकिन राज्य सरकार का अब तक इस ओर कोई ध्यान नहीं है। यह बात दीगर है कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने हालात की गंभीरता को महसूस किया है। मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाला स्वायत्तशासी संस्थान राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (निपसिड) ने उत्तराखंड सरकार को कारगर कार्य योजना तैयार करने की सलाह के साथ केंद्र के वित्तीय सहयोग का भरोसा जताया है। निपसिड ने गत दिवस उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तेरह राज्यों के बचपन बचाओ मुहिम से जुड़े विभागों और संगठनों की कार्यशाला आयोजित की। पांच दिन चलने वाली इस कार्यशाला में उत्तराखंड के समाज कल्याण विभाग के अधिकारी भी शामिल हुए। इस कार्यशाला में यह तथ्य सामने आया, जिसे सुन कर किसी भी राज्यवासी की पेशानी पर चिंता की लकीरें पड़ जाएंगी। ऐसा नहीं है कि यह आंकड़े कोई ढकी-छिपी चीज हों। सर्व शिक्षा अभियान के लिए सोशल एंड रूरल इंस्टीट्यूट द्वारा कराये गये आल इंडिया सर्वे के दौरान राज्य के यह आंकड़े सामने आये थे। प्रदेश के शिक्षा विभाग को इस स्थिति से अवगत भी करा दिया गया था, लेकिन बदहाल बचपन को बचाने व पुनर्वास करने के लिए न तो शिक्षा विभाग ने ही कुछ किया और नही समाज कल्याण विभाग गंभीर हुआ। हालांकि सरकार बदहाल बचपन बचाने व उनके पुनर्वास पर सालाना लाखों रुपये खर्च करती है, लेकिन ऐसे बच्चों के लिएपृथक से कोई योजना नहीं संचालित की जा सकी। विकलांग पेंशनर्स से ज्यादा संख्या है मासूमों की : राज्य में विकलांग पेंशन प्राप्त करने वाले कुल लाभार्थियों की संख्या 43,783 है। जबकि विभिन्न प्रकार की विकलांगता से ग्रसित बच्चों की संख्या 47,627 हो गई है। यह आंकड़े शून्य से 4 तथा 4 से 14 वर्ष के बच्चों के बीच कराये गये सर्वे में सामने आया है। उत्तराखंड में शोध की भी है जरूरत : राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (निपसिड) ने राज्य में तेजी से बढ़ती विकलांगों पर शोध की जरूरत पर बल दिया है। निपसिड का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में मासूमों के विकलांगता का शिकार होने की वैज्ञानिक वजह खोज कर उसके निराकरण की जरूरत है(दैनिक जागरण,हल्द्वानी,8.12.2010)।

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