सृष्टिकर्ता की कृपा से ही जन्मों में मानव-जन्म और प्रभुप्रदत्त वरदानों में मानव-मस्तिष्क मानवीय सत्ता की अनुपम निधि है। मस्तिष्क का प्रधान गुण है चिंतन करना। मानव-मस्तिष्क में उठने वाले विचार ही उसके चिंतन का आधार होते हैं। चिंतन सात्विक और संतुलित होने पर सामान्य मस्तिष्क भी पग-पग पर सफलताएं प्राप्त करने की सामर्थ्य रखता है। संसार में अनेक ऐसे उदाहरण विद्यमान हैं, जिन्होंने अपने चिंतन के आधार पर ही दुरूह और अप्रत्याशित सफलताएं प्राप्त कर असाधारण और महान व्यक्तित्व के धनी बनकर समाज में श्रेष्ठता प्राप्त की है। सदाचारी व्यक्ति का सात्विक और संतुलित चिंतन ही उसे नर से नारायण और पुरुष से पुरुषोत्तम बना सकने में सक्षम होता है। वहीं व्यक्ति का असंतुलित और असात्विक चिंतन उसे अनैतिक, अत्याचारी, और अव्यावहारिक बनाकर समाज में अवांछनीय व्यक्ति के रूप में छोड़ देता है। चिंतन ही व्यक्ति को ऊंचा उठाता है। वस्तुत: चिंतन ही उसके जीवन में प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसलिए व्यक्ति को अपने चिंतन को कलुषित और विकृत न होने देने के लिए उपयोगी, सार्थक और सात्विक विचार ही मस्तिष्क में आने देना चाहिए। वस्तुत: व्यक्ति के विचार ही उसका प्रतिबिंब होते हैं और उसके चिंतन की प्रेरणा-शक्ति भी। व्यक्ति के मस्तिष्क में पहले विचार उठता है फिर उस पर चिंतन-मंथन प्रारंभ होता है। चिंतन-प्रक्रिया के बाद योजना का निर्धारण और क्रियान्वयन संभव होता है। विचार जितना ही सात्विक, व्यावहारिक, पुष्ट, दृढ़ और लक्ष्ययुक्त होता है उसकी योजना का क्रियान्वयन उतना ही सफलता से संपन्न होता है। विचारों के आधार पर व्यक्ति के चिंतन की प्रबलता और श्रेष्ठता ही उसको प्रतिभावान, विवेकवान और महान बनाता है। वहीं संस्कारहीन और विकारयुक्त चिंतन व्यक्ति को विकृत और अधोगामी बना देता है। सात्विक और संतुलित चिंतन व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है(डॉ.राजेन्द्र दीक्षित,दैनिक जागरण,29.11.2010)
बिल्कुल सही संतुलित चिंतन हमारे स्वस्थ जीवन और स्वस्थ समाज... राष्ट्र के लिए आवश्यक है....
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