इलाहाबाद के करीब चार हजार एचआइवी पॉजिटिव व्यक्ति लापता हो गए हैं। ये कहां हैं और क्या कर रहे हैं, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। चिन्ता यह भी है कि जाने-अनजाने ये लोग अपने संपर्क में रहने वाले अन्य लोगों को तो संक्रमित नहीं कर रहे। आइसीटीसी (इंटीग्रेटेड काउन्सिलिंग एंड टेस्टिंग सेन्टर) पर जांच में एचआइवी पॉजिटिव पाए गए इन लापता पीडि़तों को कायदे से इस समय एआरटी सेंटर पर इलाज के लिए दर्ज होना चाहिए था। उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी की रिपोर्टो में प्रदेश के सबसे संवेदनशील पांच जिलों में इलाहाबाद भी शामिल है। चार अन्य जिले इटावा, मऊ, बांदा आर देवरिया हैं। इलाहाबाद जिले के सौ से भी अधिक गांव अत्यंत जोखिम वाले घोषित किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जिले में 5852 लोग एचआइवी संक्रमित हैं जबकि मात्र 1579 लोगों को ही एआरटी सुविधा मुहैया कराई जा रही है। बाकी संक्रमित कहां व किस स्थिति में हैं, इस बात की जानकारी न तो सोसाइटी के पास है और न ही एड्स नियंत्रण से जुड़ी संस्थाओं के पास। संस्थाओं की मानें तो एचआइवी पीडि़तों में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। विडंबना है कि यहीं पर एड्स नियंत्रण की मुहिम अनियंत्रित हो रही है। 10 से 15 फीसदी पीडि़त ऐसे हैं जिन्हें ढज्ंढ पाना ही मुश्किल है। दरअसल,ये ऐसे हैं जो आइसीटीसी सेंटर पहुंचे तो, लेकिन इनमें से कई ने अपने संपर्क नंबर नहीं दिए तो कई ने नाम और पते ही फर्जी दर्ज करवा दिए। एआरटी सेंटर में जो भी इलाज करवा रहे हैं, अधिकांश शहर और सटे ग्रामीण क्षेत्रों के ही हैं। उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी की सलाहकार डॉ. संगीता पांडे का कहना है कि यह जागरूकता का ही असर है कि जो आइसीटीसी पर इतने ग्रामीण जांच के लिए पहुंचे। जहां तक एआरटी सेंटर तक इन्हें पहुंचाने की बात है तो इनकी स्थिति को देखते हुए ही इन्हें रेफर किया जाता है। वहीं, आइसीटीसी के एक चिकित्सक बताते हैं कि सेंटर पर केवल काउंसिलिंग और जांच का ही काम होता है। जांच में एचआइवी पॉजिटिव पाए गए पीडि़तों को आगे के इलाज के लिए तुरंत एआरटी सेंटर रेफर कर दिया जाता है क्योंकि सरकार से दवाओं का फंड एआरटी को ही जारी होता है। इलाहाबाद में एकमात्र एआरटी सेंटर एसआरएन अस्पताल में स्थापित है। उधर नैनी जेल में एचआइवी पोजिटिव बंदियों की जांच के लिए एक सेल स्थापित किया गया है। जो ऐसे बंदियों की पहचान कर उनकी देखरेख व खानपान के साथ ही दवाओं की व्यवस्था करता है। साथ ही बंदियों पर नजर रखता है। पिछले कुछ सालों से नैनी जेल के कुछ बंदियों में भी एचआइवी के लक्षण पाये गए हैं जिसके बाद यहां भी बीमारी पर रोकथाम की कवायद शुरू कर दी गई है(अमित पांडेय,दैनिक जागरण,इलाहाबाद,22.12.2010)।
टेस्टिंग और काउंसेलिंग सेंटर पर उपचार का उपलब्ध न होना मुसीबत बन सकता है ।
जवाब देंहटाएंसरकार को सोचना होगा ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - पराजित होती भावनाएं और जीतते तर्क - सब बदल गए - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा