अमीर देशों के संगठन ओईसीडी ने मध्य आय वाले और उभरते देशों के स्वास्थ्य को लेकर एक व्यापक सर्वे कराया है। मुख्यत: मोटापे को लेकर कराए गए इस सर्वे का नतीजा यह है कि जिन भी देशों में खाने-पीने की खुशहाली आ रही है, वहां अपने वजन का ध्यान न रख पाने से जुड़ी खतरनाक बीमारियां भी तेजी से पांव पसार रही हैं।
मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित इस सर्वे के सारांश बताते हैं कि इस श्रेणी में आने वाले छह शीर्ष देशों रूस, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, चीन और भारत में पिछले दस-बारह वर्षों के दौरान मोटापा बड़ी तेजी से बढ़ा है। मोटापे की दो श्रेणियां मानी जाती हैं, जिनमें पहली है ओवरवेट। यानी जरूरत से ज्यादा वजन। इससे दिल और सांस से जुड़ी कई सारी बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन खान-पान और दिनचर्या सुधार कर इसे नियंत्रित भी किया जा सकता है।
इससे ऊंचे स्तर का मोटापा, ओबेसिटी कहलाता है, जो ढेर सारी बीमारियों का आधार होने के अलावा खुद में एक बीमारी है, और जिसे डॉक्टर की मदद के बिना ठीक नहीं किया जा सकता। अमेरिका और यूरोपीय देश इन दोनों पैमानों पर काफी आगे जा चुके हैं। हमारे दिमाग में इनके निवासियों की छवि आज भी लंबे-छरहरे लोगों जैसी है लेकिन इनमें आधे से दो तिहाई तक लोग ओवरवेट या ओबेस हैं। रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक पक्ष यह है कि इसके मुताबिक चीनी और हिंदुस्तानी भी इधर बड़ी तेजी से मोटे हो रहे हैं।
चीन में तीस फीसदी और भारत में करीब बीस फीसदी लोग मोटापे से जुड़ी किसी न किसी परेशानी से ग्रस्त हैं। भारत में भुखमरी या कुपोषण के शिकार लोगों का प्रतिशत सत्तर के आसपास माना जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि अपने यहां लोगों को पेट भर खाना मिलते ही उनके मोटे होने की शुरुआत हो जाती है। खाने की खराब क्वालिटी और शारीरिक श्रम का अभाव मोटापे की दो बड़ी वजहें मानी जाती हैं, और शहरी भारत में दोनों की बहुतायत है।
कार से चलना, एसी में रहना, खाना ऑर्डर करना और लेट नाइट पार्टियों के मजे लेना खाते-पीते भारत का आदर्श बन चला है। ऐसी आदतों और जीवन मूल्यों को लेकर समय रहते चेत जाना जरूरी है, क्योंकि अपने दिमाग का तेल निकालकर जो पैसा हम कमाते हैं, वह खुशहाली के बजाय बीमारी की वजह बन जाए तो कमाने का फायदा क्या है!(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली12.11.2010)
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